Friday 20 October 2017

प्यार की पहचान पार्ट-3

  1. प्यार करने वाले के लिए पूरा जीवन सादा और सरल हो जाता है। 
  2. प्यार कोई जरुरी नहीं दोनों तरफ से हो ।
  3. मुझे प्यार हो गया परंतु यह जरुरी नही उसे भी मुझसे प्यार है।
  4. प्यार हो जाने के बाद संसार का मोह छूट जाता है  कुछ भी पाने की इच्छा नहीं रहती है।
  5. प्यार जब केवल एक तरफा हो जाता है तो न जीने का मन करता है और न ही मरने का ।
  6. मै भी चाहता हु की मै जिससे प्यार करता हु उसे भी बता दू बस यही मेरे जीवन की इच्छा है
  7. मैं उससे कैसे और कब बताऊ की मै तुमसे प्यार करता हूं  यदि मैं बता देता हु तो वह क्या महसूस करेगी और क्या वह मुझसे प्यार करेगी या नफरत।
  8.  मई उससे कुछ भी कहने से डरता हु।क्योकि कही वह मुझसे नफ़रत न करने लगे
  9. जब इस संसार में लोगो को पता चलेगा तो क्या लोग सोचेगे 
  10. मन करता है प्यार पर बहुत सारी किताबें लिख डालू
  11. क्या ऐसा प्यार मुझे ही हुआ है किसी और को नहीं।
  12. प्यार कैसे हो जाता है मैं अपने प्यार की कहानी आपको बताना चाहता हु जिससे मैं प्यार करता हु उसमे ख़ास बात क्या है यह तो मै नहीं जानता मुझे क्यों और कैसे प्यार हो गया और कब हो गया यह मै आपको कैसे बताऊ मेरे दिल में प्यार का एहसास है।
  13. क्या किसी के face और eyes को देखकर प्यार हो जाता है
  14. क्या उससे बातचीत के दौरान उससे प्यार हो जाता है बातें करना हँसी मजाक करना प्यार होता है।
  15. मुझे प्यार का एहसास कब हुआ यह मैं आपको बता सकता हु यह एहसास मुझे उसके साथ रहने से नहीं बिछड़ने से हुआ  तब मुझे उसकी छोटी बड़ी हर प्रकार की बातें याद आने लगी तब मै समझ नहीं पा रहा था की क्यों बातें याद आने लगी अब मन करने लगा की मैं उससे बहुत सारी बातें करूँ और वह मेरे सामने रहे और समय वही पर रुक जाये मै उसे देखता रहू पर इन बातों और यादों की वजह से मुझे प्यार का गहरा एहसास और बेचैनी होने लगी। मैं कब उससे मिलूँगा और उससे क्या कहुगा ऐसा मन हो रहा की मै उससे मिलू और मिलकर सब उससे बता दू 
  16. मैंने बहुत इंतजार किया और पढ़ाई जारी रखी लेकिन पढाई में मेरा बहुत मन नहीं लगता था लेकिन मै कोई काम भी करता था तो मन नहीं लगता था उस समय ऐसा लगता था मै उससे बहुत नफरत करूँ क्योकि मुझे ऐसा प्रतीत होता था की मैं बहुत ही मुसीबत में आ गया हु की मेरा मन ही नहीं लगता है किसी काम को करने में  तो अब मै क्या करू सबकुछ बेकार लगने लगा और कुछ भी समझ नहीं आ रहा था  उस समय न ही मरने का मन कर रहा था और न ही जीने का अब मै बहुत ही दुविधा में आ गया।और मैंने यह बात किसी को नहीं बताई और दिन गुजरते चले गए  यदि मैं किताब देखु तो उसका चेहरा नजर आये  इस प्रकार से दिन गुजरते चले गए exam ख़त्म हो गए गर्मियो को holiday आ गयी  अब तो उसकी याद और आने लगी और फिर से जीवन अच्छा नहीं लग रहा था। और एक दिन अचानक वह मेरे सामने आ गयी तो मुझे क्या एहसास हुआ यह केवल मैं ही जान सकता हु लेकिन जब वह मेरे सामने आ गयी तो मुझे उससे बात करने की इच्छा हुई पर मै उससे कुछ कह नहीं पा रहा था उस समय मुझे ऐसा लग रहा था की क्या वह भी मुझसे ऐसे ही प्यार करती है की फिलहाल मै अपनी बहुत सारी बातों को अपने दिल में रखा रहूँ यह मेरे लिए अच्छा है यह मैंने समझा। तब मैंने उससे इस विसय में कोई भी नहीं की। उससे मिलने के बाद मुझे यह एहसास हुआ की काश मै अपने दिल की बात कह देता लेकिन मैंने समझा की क्या वह मेरी बात को किस तरीके से समझेगी  इसलिए मैंने उससे कोई बात नहीं की। मुझे शक ही रहा था की वह भी मुझसे प्यार करती है । पर शायद मेरी तरह मुझसे कह नहीं पा रही थी  लेकिन मैं आजतक नहीं जान पाया हु की वह मुझसे प्यार करती है या नहीं। लेकिन यह जरूर जान गया हु की मै उससे प्यार करता हूँ। 
मेरे अनुसार वह कैसी दिखती है  वह कैसी है  तो मैं बस यह कहुगा की वह दिल की तो बहुत अच्छी है  पर वह बोलती बहुत है शायद मुझे यही बात बहुत अच्छी लगी । ऐसा लगता है वह संसार में सबसे सुन्दर है  और यह बात मैंने सुनी और किताबो में पढ़ी है  है की कोई प्रेम करने वाला अपनी प्रेमिका को सबसे यही कहता है वह मुझे बहुत अच्छी लगती है और ऐसा लगता है की उससे अच्छा कोई नहीं है। 

Thursday 28 September 2017

प्यार की पहचान-2


  • प्यार एक अलग संसार है जिसमे डूब जाने का मन करता है। 
  • प्यार करने वाले के लिए यह संसार बहुत अच्छा और प्यारा लगता है।
  • प्यार हो जाने से कोई भी चीज पाने की इच्छा नहीं रहती है।
  • प्यार को कोई सामान्य प्राणी नहीं समझ सकता है।
  • प्यार को पाने के लिए मेहनत परिश्रम की आवश्कता नहीं होती है प्यार तो स्वयं हो जाता है।
  • किसी को इस बात का पता नहीं हो पाता की प्यार कब कैसे क्यों और किससे हो जाता है।
  • प्यार का एहसास मिलने से नहीं बिछड़ने से होता है। 
  • प्यार वह एहसास जो न ही मीठा और न ही कडुवा होता है। इस एहसास को शब्दों में नहीं कहा जा सकता है।  इस एहसास में यह नहीं कहा जा सकता है की प्यार सुख है या दुःख है।  प्यार कने वालो के लिए सुख और दुःख एक समान प्रतीत होते है। इस एहसास में न तो जीने का मन करता है और न ही मरने का मन करता है। 
  • प्यार के एहसास में ईस्वर की वास्तविकता का ज्ञान होता है। 
  • मेरे अनुसार-प्यार ही जीवन है पर इस संसार में प्यार का अपमान सदियो से होता चला आ रहा है । इस संसार में सच्चा प्यार करने वालो को न कोई समझ पाया है और न कोई समझ पायेगा। 
  • मेरे अनुसार प्यार को कभी भी पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए यदि ईस्वर पर विश्वास है तो प्यार स्वयं मिल जाता है। 
  • मेरे अनुसार प्यार की तड़प केवल प्यार करने वालो को ही मालूम होती है। 
  • मेरे अ

Wednesday 27 September 2017

प्यार की पहचान

वो लम्हे ये दूरी तेरे बिन सही न जाये,तेरी याद में ये जीवन भी रास न आये,न ही भूख लगे और न ही नींद आये ,बस एक तू ही तो है जिससे मेरी जिंदगी गुजर जाये । जीवन तो एक संघर्ष है प्यार बिना जिया भी न जाये । आज मैं भ्रमित हु की प्यार हो तो अच्छा न हो तो अच्छा कुछ भी मेरी समझ में न आये। दिल भी क्या चीज है कुछ शब्दों में कहा भी न जाये प्यार के कितने रूप यह समझ में न आये । दिल की बातो को मुख से कहा भी न जाये किस तरह प्यार का इजहार करू कुछ भी समझ में न आये। मेरे दिल में क्या है कुछ भी जुबा पर ना आये दिल में एक बैचैनी होती है
 किस तरह कहू की समझ न आये । प्यार वास्तव में क्या चीज है कुछ भी समझ में न आये। थोडा थोडा समझ रहा हु फिर भी समझ न पाऊ हर दिन हर पल तेरी याद आती है कैसे यह बता पाऊ। यह जीवन भी अब अच्छा न लगे कैसे मै तुझे समझा पाऊ।प्यार में जीवन न जिया जाये  न ही  मरा जाये कुछ भी समझ में न आये। प्यार एक ऐसा एहसास है जिसमे खट्टा मीठा कडुआ भी एहसास हो जाये  जिसने प्यार नहीं किया वह इसको कभी समझ न पाये ।
याद कितनी आये जुबा से कुछ भी कहा न जाये दिल क्या चीज है कुछ भी समझ न आये। प्यार के विष्ाय में कुछ कहा जाए बहुत कम है प्यार एक मीठा एहसास है  जो धीरे धीरे सताता है  प्यार में भूख तो लगती है पर खाने का मन नहीं करता है जिस तरह आँखों में नींद आती है पर आंखे बंद करने का मन नहीं करता है  प्यार में पागल हो जाने को जी चाहता है पर पागल होने से डर लगता है जी चाहता है प्यार में पूरी तरह डूब जाऊ पर डूबने से डर लगता है  प्यार को किस तरह परिभाषित करू  कुछ भी समझ न आये।

Monday 18 September 2017

विचारो की शक्ति और ज्ञानदीप


  • विचारों से ही कर्म करने की प्रेरणा मिलती है और कर्म से विचार पनपते है। शुभ और दिव्य विचार विधाता के विशिष्ट वरदान है । सच कहा जाये तो विचार व्यक्ति की आत्मा है । आत्मा एक शरीर तक सीमित नहीं है इसलिए विचार भी अपने में सबको और सभी में अपने को समेटे हुए है । विचार शुद्ध है । विचार हताशा की दवा है सुविचार वरदान स्वरुप होते है । विचार के साथ जब विश्वास का समायोजन होता है तब मानो ह्रदय और आत्मा का समायोजन होता है । सदविचार और विश्वास से सब कुछ संभव है । विश्वास से विश्व है विश्वास से ही ब्रम्हाण्ड है । इससे ही सागर बून्द बन जाती है । अंश पूर्ण हो जाता है और अकेलेपन का अन्त हो जाता है । विचार सजीव और सूक्षम होते है  कर्म इनकी देन है । विचार अपरिजेय जीवनी शक्ति है । हमे अपने प्रति ईमानदार होना होगा ताकि मेहनत पर विश्वास हो । आवश्यक नहीं की किये हुए काम पर सफलता मिलने पर ही खुशी मनाई जाये । असफलता पर भी निराश नहीं होना है । उसे हटाने के लिए संकल्पबद्ध होना होगा। अपनी हिम्मत और लगन के प्रति आस्था पैदा करनी होगी। विचारो में बड़ा जादू है यह हमे गिरा भी सकते है और उठा भी सकते है । आत्म विश्वास को मजबूत करते हुए है मानव का target होना चाहिए  ।

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए मनुष्य को कार्य को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए।
ज्ञानदीप-भीतर के ज्ञानदीप को जलाकर मीरा ने सत्य का दीदार किया था 

  • सकारात्मक सोच भीतर के ज्ञानदीप को जलाकर मन में वासना की काली बदली को दूर करो। जैसे सुर्यास्त कभी नहीं होता वैसे ज्ञानदीप कभी नहीं बुझता इसलिए अपना दीपक स्वयं बनो और भव बंधन से मुक्त हो जाओ। अज्ञान का पर्दा उठाइये ,ज्ञान का सूर्य चमकने लगेगा।

Friday 8 September 2017

कर्मक्षेत्र और मोक्ष

विधि के विधान के अनुसार जीव को कर्म भोग के लिए संसार में आना पड़ता है और यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कर्मक्षेत्र में किये कर्मो के फल से मुक्त नहीं हो जाता है । जीव का शरीर पांच महान विभूतियो से बना है-पृथ्वी, जल,अग्नि,वायु और आकाश द्वारा होता है। इस आवरण में अहंकार , बुद्धि, और प्रकृति के तीनो गुणो-सतो, रजो, और तमो का समावेश होने के कारण इन गुणो की अवस्था उसके व्यक्त्तिव का निर्माण करती है।हर शरीर में यह तीनो गुण अलग अलग अनुपात में विद्यमान रहते है। इसके साथ शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रिया-नाक,कान,नेत्र,जीभ और त्वचा होती है। जिनके द्वारा वह संसार का अनुभव करता है। और मन इन ज्ञानेन्द्रियों का स्वामी है वह इन इन्द्रियों से प्राप्त सुचना के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया हाथ पैर जीभ आदि से देता हुआ अलग अलग प्रकार के कर्म करता है कभी इस प्रकार के कर्म करता है जिनका फल उसे भविष्य में भोगना पड़ता है  इस प्रकार जीव के कर्मक्षेत्र का निर्माण प्रक्रति के 24 तत्वों द्वारा होता है।
जीव का संसार में जन्म लेने का परम उद्देश्य केवल कर्मफल से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करना है, परंतु वह अक्सर इन्द्रियों के वशीभूत होकर पुनः तरह तरह दुःख भोगता है इसलिए जीव के कर्मो को मोक्षदायी बनाते हुए विनाम्रता ,अहिंसा, सरलता जैसे गुण अपनाते हुए गुरु की शरण ग्रहण करनी चाहिए  जो उसे पवित्रता, आत्मसंयम और इंद्रितृप्ति के विषयो से दूर होकर उसके अंदर वैराग्य की भावना जाग्रत करेगा। मनुष्य योनि को इसलिए उच्च कोटि का माना गया है, क्योकि सब प्राणियो में केवल मनुष्य को ही विवेक की शक्ति प्राप्त है। इसलिए मनुष्य को कर्मक्षेत्र में विवेक का उपयोग करते हुए और उचित कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करना  चाहिए।
आत्मा का स्वरुप ही आनंद का बोध  कराता है । जिस मनुष्य को आत्मबोध हो जाता है , वह सदैव प्रसन्न रहता है  जो प्रसन्न नहीं रहता है वह आत्मा को नहीं समझता है और न ईश्वर को ।शोक ग्रस्त मनुष्य  की आस्तिकता संदिग्ध होती है  मनुष्य को आत्मबोध करना आवश्यक है उसे कठिनाइयों से घबराना नहीं प्रेम करना चाहिए । कठिनाईयो की शिक्षा से ही मनुष्य का बुद्धि कौशल विकास होकर ज्ञान विज्ञान की इस सीमा तक पंहुचा है ,यदि मानव जीवन में आपत्तियां , कठिनाइयां न हो तो मनाव जीवन निनांत निष्क्रिय और निरुतशाह पूर्ण बन जायेगा  इसलिए प्रसन्नता से जीवन को सुखमय बनाना चाहिए । यह भौतिक संसार सर्वत्र प्रसन्नता के लिए ही उपजाया गया है  जो बुरा व् असुभ है वह हमारी प्रखरता के लिए एक चुनौती है । exam में प्रश्न पत्र देखकर student अगर रोने लगे तो उसे अध्ध्य्यन मननशील नहीं माना जा सकता है।
जिस मनुष्य जरा सी कठिनाईया या प्रतिकूलता पर विलाप शुरू कर दिया  उसकी आध्यात्मिकता पर कौन विश्वास करेगा? प्रतिकूलता हमारे साहस बढ़ाने, धैर्य को मजबूत करने और शक्ति को बढ़ाने आती है । यदि जीवन भली प्रकार संयत हो सके तो वह सबसे भद्दे तरीके का होगा । ऐसा इसलिए क्योकि वह सफलता पूर्वक गुजर रहा होगा उसमे न तो किसी तरह की विशेषता रह जाती है और न कोई प्रतिभा। संघर्ष के बिना भी भला नहीं । क्या विश्व में किसी का ऐसा जीवन संभव हो सका है  इसलिए संकटो को जीवन विकास का एक अनिवार्य उपाय मानकर मनुष्य को उनका स्वागत करना चाहिए उनको चुनौती स्वीकार करना चाहिए और एक आपत्ति को दस कष्ट सहकर भी दूर करते रहना चाहिए । यही पुरुषार्थ और मनुष्यता है ।

Wednesday 6 September 2017

जीवन महोत्सव

विश्व महामंच के जीवन महोत्सव में हम सभी जीव , पात्रो की भूमिका में है। हमारे अभिनय की सफलता हमारी भूमिका में निहित है। हमारी भूमिका हमारी मानसिकता से संबद्ध है । मानसिकता जितनी उन्नत होगी , अभिनय उतना ही अच्छा होगा। इसलिए जीवन को महोत्सव बनाने के लिए विचारों को सदैव उच्च और सुदृढ़ रखना होता है। मन को न केवल नियंत्रित बल्कि ऊर्ध्व गामी संचेतना से भरपूर रखना पड़ता है। एक और  महत्वपूर्ण बात यह है की भ्रम वश हम स्वयं को ही सूत्रधार  भी मान बैठते है। जबकि सूत्रधार परमात्मा है । उनके संकेतो पर चलने के लिए ही हम बाध्य है। इसलिए परमात्मा की क्षत्र छाया तो एक प्रकार से हमारा संबल है। 

  • ज्ञान और भक्ति को आत्मसात कर जीवन को सार्थक किया जा सकता है मनुष्यत्व ही मूल है यही कारण है की सभी धर्मो में कहा गया है की मनुष्य बनो। मनुष्य बनने के लिए हमे सच्चाई से जुड़ना होगा और अपनी शक्ति को पहचानना होगा। नर ही नारायण है, यह महसूस करना होगा । अपना मनोबल बढ़ाने के लिए संयम धारण करना होगा। जप, तप, ध्यान , भक्ति प्राय: एक रूप है। इनके अध्य्यन से अपनी शक्ति को बढ़ाना होगा । जीवन की वास्तविकता का बोध ही हमारा target है। विवेक के माध्य्म से दिव्य शक्ति का अनुभव किया जा सकता है। चारो पुरुषार्थों का जीवन में सुंदर सामंजस्य हो। नैतिक मूल्यों की धारणा ही धर्म है। नैतिक व्यक्ति ही धार्मिक होता है। दया,करुणा के भाव उसके जीवन को अधिक उपयोगी बना देते है। वह लोकहित को ध्यान में रखकर ही कार्य करता है । अर्थोपार्जन ,दूसरा पुरुषार्थ है। यह अर्थोपार्जन भी न्यायसंगत होना चाहिए । जो लोग अनीति से धन कमाते है। अंततः उनका विनाश होता है। दांपत्य काम, पुरुषार्थ का रूप है । संयमित प्रेममय जीवन सुख और शांति का पथ प्रशस्त करता है। फलतः व्यक्ति परम पुरुषार्थ यानि मुक्ति मार्ग का अनुयायी बन जाता हैं।

Tuesday 5 September 2017

इच्छाएं

मनुष्य जीवन भर इच्छाओं , कामनाओं के पीछे भागता रहता है। जीवन कुछ इच्छाओं की पूर्ति तो हो जाती है, पर ज्यादातर इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है । मनुष्य द्वारा की गई इच्छाओं की जब पूर्ति हो जाती है तो वह फुले नहीं समाता । वह अहंकार युक्त हो जाता है । उस कार्य की पूर्ति का सारा श्रेय स्वयं को दे देता है । जब इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती है तब मनुष्य ईश्वर को दोष देने लगता है,अपने भाग्य को दोष देने लगता है। मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती है।वे धारा प्रवाह रूप से एक के बाद एक कर आती चली जाती है। एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा फिर मन में उठने लगती है । जीवन पर्यन्त यही क्रम चलता रहता है । वर्तमान के इस भौतिक युग में लोग इच्छाओं से भी बड़ी महत्वाकांक्षी होने लगते है। ऐसी ऐसी इच्छाएं संजोते है  जिनके बारे में स्वयं जानते है की वे शायद ही कभी पूरी हो पाये । इस संसार सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य सदा प्रयत्नशील रहता है । इसके लिए वह सदैव कामना करता रहता है। वह नहीं जानता है की सुख स्वरुप तो वह स्वयं ही है । गुणो के आधीन यह सांसारिक सुख तो क्षणभंगुर है। यह समाप्त होने वाला है तब फिर इन सांसारिक सुख की इच्छाओं के पीछे क्यों भागा जाये? 

मन में उठने वाली कामना यदि पूरी हो जाती है तो राग उत्पन्न हो जाता है और इसकी पूर्ति न होने पर मन में क्रोध जन्म ले लेता है । दोनों ही स्थिति मनुष्य की हानि है। संपूर्ण इच्छाओ की पूर्ति कभीं नहीं हो पाती है ,जबकि इन इच्छाओं की पूर्ति करने में मनुष्य अपना सारा श्रम लग देता है । मनुष्य को चाहिए की इन इच्छाओं का दामन छोड़कर अपने नियमित कार्यो में लग जाना चाहिए तभी वह सुख और शांति प्राप्त कर पायेगा फिर वह कामनाओं के जाल में नहीं फसेंगा । इच्छाओ के संदर्भ में मनुष्य को एक बात याद रखनी चाहिए की मानव सिमित है और इच्छाये असीमित है।सीमित कभी असीमित की पूर्ति नहीं कर सकता।

Sunday 3 September 2017

स्वयं को बदले

आज हममे में अधिकतर लोगो की स्थिति उस दार्शनिक की तरह है जिसने स्वयं को अपने बिस्तर पर देखा और अपने को वहां नहीं पाया । ऐसा इसलिए, क्योकि बिस्तर ख़ाली था । कुछ देर बाद ही वह घर के बाहर आकर चिल्ला चिल्ला कर पूछने लगा, कृपया कोई मुझे बता दे की मै कहाँ हूँ, अब मै स्वयं को कहाँ खोजू । मैंने सोचा मैं बिस्तर पर हूँ पर मै वहां भी नहीं हूँ। बेशक यह एक अजीबो गरीब कहानी है, लेकिन हर मनुष्य की कहानी है । आप अपना फ़ोन नंबर , सेल नंबर , बैंक अकाउंट नंबर आदि भी अच्छी तरह से जानते है। आप अपनी पत्नी, पति,बच्चों आदि को भी जानते है । आप यह भी जानते है की कौन आपका बेटा है और कौन बेटी,पर क्या यह जानते है की आप कौन है, और कहाँ पर है? यह सवाल जिंदगी भर अधूरा रह जाता है, क्योकि आप लोग इसे छूना नहीं चाहते हैं और यू ही चले जाते है। इसलिए आपको बदलना होगा। 

यह तभी सम्भव है जब हर आदमी अपनी खोज में निकल जाये। यदि आप इसे नहीं छोड़ पायेगे तो स्वयं को संभाल ले , ईश्वर को अपने कार्य मार्ग में जाने दे और आप अपने कार्य में लग जाये। अब आप अपने बारे में सोचे और अपने आसपास के लोगों में देखे। यह आपका छोटा सा संसार है जो बड़ा बन जाता है। आप सब धार्मिक है हो सकता है कुछ लोग धार्मिक नहीं भी हो लेकिन आप सबकी अपनी अपनी दिन चर्याये है । जो धार्मिक है वे विभिन्न विचारधाराओ में बटे हुए है। इनमे से अनेक लोग जीवन को नहीं समझते ,धर्म को नहीं जानते बल्कि जो सिखाया गया है उसी में अपना जीवन काट रहे है। इन्हे लगता है जो कर रहे है वही उनका सत्य है।  जो मान रहे है वही उनका भगवान् है उनसे अलग जो दुनिया है वह अच्छे लोगों की दुनिया नहीं है  इसलिए वे ही अच्छे है सच तो यह है की ईश्वर की अनुभुति के लिए हमे कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर  ध्यानयोग की गहराइयो में उतारना होगा।

Sunday 27 August 2017

गुणों की शक्ति

कल्पना करे की यदि गुलाब का फूल सुगंधहीन हो जाये तो कौन उसे पाना चाहेंगे । इसके आगे कल्पना करे की फूल में सुगंध है , किन्तु प्रकट नहीं हो रही है तो उसका कितना महत्व रह जायेगा। गुलाब का रंग और रूप उसकी सुगंध से मूल्यवान हो जाता है। गुलाब का रंग और रूप ऐसा न हो फिर भी यदि सुगंध है तो उस पर मोहित होने वालो की संख्या कम नही होगी। आम का फल कैसे भी आकार का हो , अपने स्वाद के कारण मन को भाता है। सुगंध गुलाब का और स्वाद आम का गुण है। मनुष्य की जुबान से निकलने वाले मीठे वचन, हाथो से होने वाले परोपकार , मन और मस्तिष्क में उपजने वाले शुभ विचार ही उसके मोल है । कितने भी महंगे वस्त्र पहने हो, भव्य आवास और धन दौलत हो , स्वस्थ सुंदर  तन हो उनसे पहचान तो बन सकती है लेकिन सम्मान नहीं मिल सकता है। संसार में शुभ वचनो की कमी नहीं। सिद्धान्तों नीतियों के ग्रन्थ भरे पड़े है। वचन मुख तक ही सीमित हो गए, किताबों से बाहर का रास्ता भूल चुके है। इसलिए उन व्याख्यानों का कोई मोल नहीं रह गया है। ऐसे मनुष्य अपना सम्मान खो चुके है। 

सारे लोग अपने गुणों के कारण महापुरुष की श्रेणी में नहीं आ सकते है, किन्तु सारे लोग यदि अपने छोटे छोटे गुणों को भी व्यवहार में बदले तो गुणों से भरपूर समाज की रचना की जा सकती है । भिन्न भिन्न फलो के सारे वृक्ष आकर्षित करते है और विभिन्न स्वादों का आनंद देते है । गुण किसी भी प्रकार के हो , मन को अपनी ओर खीचने वाले होते है। इसी तरह  गुणवान समाज की रचना में छोटे से भी छोटे योगदान का भी महत्त्व है। समाज मात्र शब्दों की शोभा से  नहीं बनते । मनुष्य अपने कर्मो की चिंता करे , अपने गुण विकसित कर प्रकट करे। सारा समाज अपने आप बदल जायेगा। विडंबना यह है मनुष्य के पास इसके लिए समय नहीं है। उसे चिंता है तो दुसरो की । वह अनायास ही अन्यो की सफलता पर ईर्ष्यालु रहता है। सभी में दोष तलासने में उसकी ख़राब आदत संतुष्ट होती है । वह औरो से प्रतिस्पर्धा भी नहीं करना चाहता ,बस उनकी प्रगति को अवरुद्ध करने में लगा रहता है। 

Friday 25 August 2017

संयम है समाधान

हर व्यक्ति समस्याग्रस्त है। कुछ समस्याऐ बाहर की है और कुछ भीतर की। समाधान सभी चाहते है। यह शरीर एक नौका है। ये डूबने भी लगता है और तैरने भी लगता है,क्योकि हमारे कर्म सभी तरह के होने से यह स्थिति बनती है।इसलिए बार बार अच्छे कर्म करने की प्रेरणा दी जाती है।हमे यह समझ लेना चाहिए की जिस प्रकार एक डाल पर बैठा व्यक्ति उसी डाल की काटता है तो उसका नीचे गिर जाना अवश्य भावी है, उसी प्रकार गलत काम करने वाला व्यक्ति गलत फल पाता है।

मेरा दृढ़ विश्वास है की आज जो बड़े कहलाने वाले लोग उनकी जीवन शैली संयम प्रधान हो जाये तो हिन्दुस्तान का कायाकल्प हो सकता है। सामाजिक परिवर्तन का एक अच्छा रास्ता यह है की बड़े कहे जाने वाले लोग अपनी जीवन शैली को संयम प्रधान बनाये। बड़े लोगो में बड़े व्यापारी उद्योगपति , सांसद, विधायक, मंत्री और सामाजिक नेता यह सभी आ जाते है।अगर इन लोगो के जीवन में संयम आ जाये तो नीचे तबके के लोग स्वयं प्रेरित होंगे। जिनके पास जरुरत भर के 

Thursday 24 August 2017

अमृत सन्देश

हमारा देश धर्मप्रधान होने के कारण ही एक महान देश कहलाता है। यह वही भारतभूमि है, जहाँ से धर्म और दार्शनिक तत्व समूह ने बरसाती नदी के समान प्रवाहित होकर सारे संसार को सराबोर कर दिया था। संसार में अनेक प्रकार के प्रतिद्वंद्वी समूह रहेगे ही, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की एक दूसरे से घृणा की जाए या विरोध किया जाये । प्रत्येक आत्मा में परमात्मा को देखने वाले महापुरुष ही धर्मस्वरूप को समझते है और वे ही अहिंसा की आराधना कर सकते है। अहिंसा एक सनातन तत्व है। अहिंसा , संयम , तप रूप मंगलमय धर्मदीप का प्रकाश यदि world को आलोकित कर दे , तो निश्चय ही धरा से अज्ञान का तमस समाप्त हो सकता है। दुसरो को का अस्तित्व मिटाकर अपना अस्तित्व बनाये रखने की कोशिश अंततः घातक होती है । अहिंसा भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान है। अहिंसा सभी को अभय प्रदान करती है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन और अस्वस्थ होने का उदाहरण दे रहा है। आज शांति के लिए एक आध्यत्मिक जागृति आवश्यक है, जो राष्ट्र ,समाज , और परिवार से हिंसा का अन्धकार दूर कर सके। मानव जाति को सुदृढ़ और सुगठित रखने का दिव्य सन्देश है। अहिंसा का अर्थ है किसी की हत्या न करना,खून न बहाना, मन ,वचन कर्म से किसी को कोई दुःख न देना अहिंसा है। अहिंसा के अंतर्गत केवल मानव ही नहीं पशु पंछी , जीव जंतु को भी दुःख पहुचाना नहीं   चाहिए।  अर्थात् अपनी आत्मा के सामान ही सबको मानो। अहिंसा का सम्बन्ध मनुष्य के ह्रदय के साथ है,मस्तिष्क के साथ नहीं। जिसके जीवन में अहिंसा का स्वर झंकृत होता है, वह केवल शत्रु को ही प्यार नहीं करता बल्कि उसका कोई शत्रु ही नहीं है। जिसको आत्मा के अस्तित्व में विश्वास है, वही हिंसा का त्यागी हो सकता है। कुछ लोग अहि

Wednesday 23 August 2017

उदास न हो

जीवन में प्राय: ऐसे पल आते रहते है जब मन उचाट और उदास होने लगता है। एक भय पैदा होने लगता है की कही कुछ गलत तो नहीं होने जा रहा है। बिना किसी कारण मन का उदास होना मन की हताशा और आत्म विश्वास की कमी को प्रकट करता है। जब प्रत्यक्ष कारण हो तो भी यह खंडित विश्वास और नकारात्मक मानसिकता का प्रतीक है। मनुष्य का विश्वास तभी डोलता है और मन तभी निराश होता है जब वह ईश्वर पर अविश्वास कर रहा होता है। चौरासी लाख योनियो में भटकने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त करने के बाद भी यदि मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और आभार का भरपूर भाव नहीं है तो इसे उसकी अज्ञानता ही कहा जायेगा । मनुष्य योनि में होना ही विश्वास और आशा का सबसे बड़ा आधार है जो कभी उसके मन को डिगने नहीं देता है। यदि उसे मनुष्य योनि मिली है तो यह सबसे बड़ा कारण है प्रसन्न और आशा से भरे रहने का की उसे आवागमन के चक्र से मुक्त करने और संसार के मायाजाल से उबरने योग्य समझा गया है। उसे मनुष्य के रूप में जो समय मिला है वह हताशा और निराशा में व्यर्थ जाने देने के लिए नहीं है । इसका सदुपयोग करना आना चाहिए । दूसरी बात भय और चिंता की है जो परमात्मा को न समझने के कारण है। 

संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे अनहोनी कहा जा सके। जो हो रहा है या भविष्य में होने वाला है उसे रोका नहीं जा सकता है। ऐसा इसलिए , क्योकि इसमें ईश्वर की इच्छा है। जिसके हम पात्र है, वही हमे दे रहा है । इसलिए किसी तरह की चिंता और आशंका बेकार है। किसी भी आशंका से दूर जब ईश्वर के न्याय पर विश्वास करना आ जाता है तो मन प्रसन्नता से भर उठता है। ईश्वर की दया का इसी से पता लगता है  की उसने सृष्टी में जितनी भी रचनाये रची है उन सभी में कुछ न कुछ गुण दिए है। संसार में कुछ भी गुणविहीन नहीं है । भले ही राह की धूल या रोडा ही क्यों न हो। हर चीज का कोई न कोई उपयोग है । सर्वाधिक गुण मनुष्य में है। जब उसे आभास हो जाये की वह कितनी अदभुत शक्तियों का स्वामी है  तो वह ऐसे गर्व की अनुभूति से भर उठेगा की निराशा सदा के लिए उसके जीवन से पलायन कर जायेगी । ईश्वर के न्याय के प्रति  विश्वास होना ही जीवन में हर्ष भाव का मुख्य उतपर

Sunday 20 August 2017

आनंद की खोज

आंतरिक आनंद एक ऐसा एहसास है जिसका हममे से ज्यादातर लोगो को एहसास नहीं होता । इसका कारण है की हम बाहरी चीजो में बसे हुए है। हम आनंद प्रदान करने वाली चीजो को आकार में पहचानते है, जबकि आनंद का अस्तित्व अनाकार में है। सौंदर्य को महसूस करने की क्षमता, अपने आप में मगन रहने की आदत , साधारण वस्तुओ की तारीफ़ करना, लोगो से स्नेह रखना और उन्हें प्यार करना , उनसे सम्बन्ध बनाना , इन पीछे जो चीज है, वह है संतोष का एहसास, यह एहसास अनाकार ही तो है और इसलिए अदृश्य है। संतो, दार्शनिको और कवियों पर नजर डाले तो यह पता चलता है की वे जीवन भर सच्ची ख़ुशी की तलाश में रहते है। वे महसूस करते है की जिसे वे खोज रहे थे वे दिखने में असाधारण , लेकिन नगण्य लगने वाली वस्तुए है। ऐसी जिसे हम जीवनभर आसपास देखते रहते है। यह और बात है की उसे महसूस नहीं कर पाते। ख़ुशी के लिए छोटी चीज काफी है। बस इसे पाने के लिए शांत रहना सीखिये। 

दरअसल छोटी छोटी चीजे हमारे अंतर्मन को विस्तार देती है। छोटी खुशियो के लिए जिस आत्मसजगता की जरुरत होती है। उसके लिए अंदर से शांत होना अनिवार्य है। सजग रहने से आंतरिक ख़ुशी के दरवाजे खुलते है। मन जितना शांत होता है उतना ही आनंद महसूस होता है। आप समर्पित होकर कर्म में जुटे रहे तो हर चीज की जीवन्तता को अपने एहसास में पायेगे। तब आप खुद को उस आनंद का हिस्सा पायेगे जो सृष्टी और प्रकृति के कण कण में विद्यमान है। एक बात समझने योग्य है की सुख और आनंद में अंतर है। सुख भौतिक वस्तुओ से सम्बन्धित है और आनंद ऐसी मन की दिशा है जिसमे भौतिक वस्तुओं के अभाव में व्यक्ति अंतर्मन में प्रसन्नता महसूस करता है।

Friday 18 August 2017

किसके लिए जिए

यह बड़ा प्रश्न है की किसके लिए जिए।सभी की भिन्न भिन्न प्राथमिकताएं होती है। उन्हें प्राप्त करने का ढंग भी अलग अलग होता है। मनुष्य अपने बारे में सबसे पहले सोचता है, उसके बाद परिवार के प्रति। ऐसे भी लोग है जो परिवार के मोह में अपने हित भी उपेक्षा में कर देते है। जितना अधिक उदार मनुष्य का मन होता है उतने ही लोग उसकी चिंता के दायरे में सिमट जाते है। थोड़े से लोग ऐसे भी हुए, जिन्होंने किसी भेदभाव के बगैर पुरे समाज की चिंता की। वे आज महापुरुष के रूप में पूजनीय है। अपने और अपनों के हितों से ऊपर उठकर व्यापक द्रष्टी धारण कर पाना दुष्कर कार्य है।इसके लिए अपने आप से लड़ना पड़ता है। मनुष्य वास्तव में एक अत्यंत निरीह प्राणी है। इसे पांच शक्तिशाली योद्धाओ ने घेर रखा है। यह योद्धा है-काम , क्रोध,मोह, लोभ और अहंकार। मनुष्य का इनसे बड़ा शत्रु और कोई नहीं। यह इतने प्रबल है की मनुष्य की इन्द्रियों को जीतकर अपने वश में कर लेते है। जब इन्द्रियों पर इन शत्रु योद्धाओ का आधिपत्य हो जाता है तब मनुष्य के मूल उद्देश्य को खो देता है।  विवेक, बुद्धि,संयम ,संतोष, दया और परोपकार जैसे गुण पराजित हो जाते है, जितना शक्तिशाली इनका प्रभाव होता है, मनुष्य उतना ही निर्बल हो जाता है। 

  1. कई बार मनुष्य अपनों के हितों को दांव पर लगा देता है। अपने ही परिवार का शत्रु बन जाता है। ज्ञान, धर्म, नैतिकता मूल्य आदि इसके लिए अर्थहीन हो जाते है। ऐसे लोगो के सामने धर्म,समाज की जितनी भी बातें की जाये वे बेकार हो जाती है। समाज में बदलाव की बातें निरंतर होती रहती है। इसके बावजूद समाज में गिरावट रुक नहीं रही। इसका कारण यही है की बातें पत्थरों से की जा रही है। पांच विकारों ने मनुष्य की दसो इन्द्रियों को जीतकर उसे पत्थर जैसा संवेदनहीन बना दिया है। ये पांच योद्धा समाज में व्याप्त वातावरण के कारण शक्तिशाली हो गए है और मनुष्य की इन्द्रियों को जीतने में सफल रहे है। समाज में कैसे स्त्रियों और पुरुषों की नैतिकता का पतन हो रहा है। समाज से उन तत्वों को हटाना पड़ेगा जिनसे काम, क्रोध,लोभ ,मोह,और अहंकार को ताकत मिलती है। यह मनुष्य के जीवन का उद्देश्य हो की उसे विकारों का गुलाम बनकर नहीं रहना है। उसका संकल्प हो की उसकी इंद्रिया मुक्त रहकर उसके जीवन की सहायक बने।

Monday 14 August 2017

चरित्र

जीवन यानी संघर्ष यानी ताकत यानी मनोबल। मनोबल से ही व्यक्ति स्वयं को बनाये रख सकता है, अन्यथा करोडो की भीड़ में अलग पहचान नहीं बन सकती। सभी अपनी अपनी पहचान के लिए दौड़ रहे है, चिल्ला रहे है। कोई पैसे से , कोई अपनी सुंदरता से , कोई विद्वता से ,कोई व्यवहार से अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयास कर रहा है , पर हम कितना भ्रम पालते है। पहचान चरित्र के बगैर नहीं बनती है। बाकी सब अस्थायी है। यह सही है की शक्ति और सौंदर्य का योग ही हमारा व्यक्तित्व है, पर शक्ति और सौंदर्य आंतरिक भी होते है और बाहरी भी होते है। धर्म का काम है आंतरिक व्यक्तित्व का विकास। इसके लिए मस्तिष्क और ह्रदय को सुंदर बनाना होता है। जो सदविचार और सदाचार के विकास से ही संभव है। उत्कृष्ट चिंतन से जीवन जीने का सलीका आता है। इससे अंतर्मन में संतोष और बाहर सम्मान पूर्ण वातावरण का सृजन होता है। ऐसे चरित्र और नैतिकता सम्पन्न व्यक्तियों के सामने इंद्र और कुबेर का वैभव भी समर्पित हो जाता है। चरित्र एक साधना है तपास्या है। जिस प्रकार अहंकार और अहम का पेट बड़ा होता है उसे रोज कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार चरित्र को रोज संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल से ही प्राप्त किया जा सकता है। समाज में संयमित व्यक्ति ही सम्माननीय है और वही स्वीकार्य भी। संयम ही जीवन है। अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए संयम प्रधान जीवनशैली का विकास जरुरी है। आशक्ति पर विजय प्राप्त किये बिना संयम का विकास नहीं हो सकता है। मानसिक और सामाजिक शांति व् सुव्यवस्था के लिए अनाशक्ति से जीवन में स्वार्थ की भावना उत्पन्न हो जाती है । अंहकार का भाव बढ़ जाता है। मनाव मन को उससे मुक्ति दिलाने के लिए आद्यात्म का आश्रय चाहिए। यह संतुलन की प्रक्रिया है। सच तो यह है की चरित्र निर्माण से ही जहाँ आपके व्यक्त्तिव का निर्माण होता है,वहीँ अच्छे चरित्र वाले लोगो से ही देश का निर्माण होता हैं।

Sunday 13 August 2017

अहिंसा

अहिंसा का अर्थ हम प्राय: हिंसा के विलोम शब्द के रूप में लेते है, जिसका अर्थ जीव हत्या न करना और मांसाहार से दूर रहना आदि। यह बात ठीक भी जान पड़ती है मांसाहार जीवहत्या के बगैर संभव नहीं है। इसलिए दोनों ही हिंसा के category में आते है। अब सवाल उठता है की अहिंसा को क्यों यूँ एक सीमित दायरे में बाँधा जा सकता है? जी नहीं , अहिंसा का क्षेत्र बहुत बड़ा है और अहिंसा का संक्षेप में अर्थ है -समस्त हिंसक वृत्तियों का त्याग। कैसी है ये हिंसक वृतियां , इन्हे जानना होगा, समझना होगा। तभी हम उनसे मुक्ति पा सकते है । दुसरो को सताना, दुःख पहुचाना निश्चित रूप से हिंसा है। किन्तु क्या स्वयं को सातना हिंसा नहीं है?  आदमी तीन तरह के होते है पहला परपीड़क यानी ऐसे लोग जो दुसरो को सताकर सुकून का अनुभव करते है। दूसरा स्वपीड़क यानी आत्मपीडक ऐसे लोग दुसरो को न सताकर स्वयं को सताकर सुख का अनुभव करते है। ऐसे लोग धर्म के विश्वास में होकर अत्यधिक व्रत उपवास , काटो की सेज पर लेटना आदि से लेकर आत्महत्या तक कर डालने से ऐसे लोग नहीं चूकते । मेरी राय में अहिंसक वे है , जो इन दोनों के पार है। जो इन दोनों वृत्तियों का अतिक्रमण कर चूका है। यानी जो दुसरो को सताता नहीं और न ही स्वयं को सताता है, जो स्वस्थ व प्रसन्न भाव से संतोष पूर्वक जीता है। इसके अतिरिक्त कड़वे वचनो द्वारा हिंसा एक खतरनाक हिंसा है। कारण यह है की कड़वे वचन हमे यूँ ही चोट पहुचाते है की जीवन भर नहीं भूलते। मन में किया गया किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। यानी नकारत्मक विचार उठा की हिंसा हुई । कारण यह की मन में उठे विचार ही भविष्य में उठने वाले कृत्य की आधारशिला रखते है। हम पहले विचार करते है । शीघ्र ही भविष्य में वही विचार नए कर्म की पर

मृत्यु

जीवन के कार्यकलापो में हलचल और चकाचौंध यानि ध्वनि और प्रकाश का समावेश है। ये दोनों भौतिक अस्मिताएं है और इनका स्वरूप अस्थायी है। अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए इन्हें source चाहिए । दूसरे छोर पर मृत्यु ,शांति और अंधकार है।इनका अस्तित्व किसी के बुते पर नहीं टीका रहता, क्योकि इनकी प्रकृति दैविक है। नवजात शिशु के आगमन और हर्षोल्लास में मनुष्य तनिक भी यह विचार नहीं करता की जो आया है उसे जाना है। जीवन जन्म और मरण की छोटी सी यात्रा का दूसरा नाम है। मृत्यु से ज्यादा निश्चित कुछ भी नहीं है। छोटी सी सोच के लिए  मनुष्य  अस्थिर साधन जुटाने में  अपने परम target से भटक जाता है।इस प्रक्रिया में वह नकारत्मक, ईर्ष्या, लालच से ग्रस्त रहता है। आये दिन होती मौतों के सन्देश नहीं पढता है । मृत्यु दुनिया का सबसे बड़ा मौन शिक्षक है हमे कल मरना है इस दृष्टी से हम जीना सीख ले, तो जीवन सार्थक हो जायेगा । मृत्यु के सत्य को समझने वाला सत्कार्य में निरत रहता है। मृत्यु के उपरान्त सत्कर्मो की पूँजी साथ ले जाता है । वह जीवन पूरी तरह जीता है और कभी भी मरने के लिए तैयार रहता है वह जानता है की दुसरो की मौत पर पुष्प अर्पित करने से अधिक important है की उसे जीते जी पुष्प भेट करना है। 

मनुष्य को जीवन का विलोम नहीं , बल्कि अंग समझने से मृत्यु का भय नहीं सताता। जीवन की सबसे बड़ा नुकसान मृत्यु नहीं, बल्कि जीते जी हौसलो का खत्म हो जाना है। मौत से वे भयभीत होते है , जो जिंदगी से दूर भागते है । कहा गया है मृत्यु तो शान्तिप्रद होती है किन्तु इसका विचार मनुष्य को विचलित करता है। मृत्यु, आत्मा,परमात्मा का मिलान पल भर का है। जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलु है । हमे केवल every moment का सदुपयोग करते रहना है। 

समय प्रबंधन

अनेक लोग है जो समय प्रबंधन के महत्व को समझते नहीं है। समय प्रबंधन को समझने वाले लोग बड़े चुस्त, फुर्तीले, और दृढ निश्चयी होते है। ऐसे लोग एक काम को पूरा करके तत्काल दूसरा कार्य हाथ में ले लेते है और उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देते है। भविष्य ऐसे ही लोगो का होता हैं। यदि आप कार्य को तत्काल संपन्न करते है तो आप अनेक उलझनों से बच जाते  है । काम को तुरत फुरत संपन्न कर डालने की आदत से हमारी शक्तियां और योग्यताए संघठित रहती है।उनमे कभी भी बिखराव की संभावना नहीं रहती है  । काम को टाल देने की आदत से आगे चलकर कई जटिल समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।अक्सर लोग काम को शुरू करने से पहले ही डर जाते है। उन्हें  यह शंका हरदम घेरे रहती है की वे यह काम पूरा कर पायेगे की नहीं। ऐसे लोग हरदम काम का बोझ लादे रहते है। किसी भी काम को नियत समयावधि में पूरा करने के लिए शुरू शुरू में आलस्य आता  है।यह बहुत स्वाभाविक है ऐसा इसलिए क्योकि आप अपनी एक पुरानी बुरी आदत बदल रहे होते है। मगर काम को शुरू कर दे तो यह आलस्य धीरे धीरे दूर होता जाता है। यदि कई काम है तो उनकी प्राथमिकता के आधार पर एक सूची बना ले। कम समय लगने वाले काम को सबसे निपटा ले। जो काम अन्य सभी से  भारी है उसके लिए एक ख़ास समय तय करे। कामो को क्रमबद्ध और व्यवस्थित ढंग से किया जाये तो चौबीस घंटे कम नहीं होते है। हमे इस बात पर विचार करना चाहिए की जीवन में सफल लोगो ने इन चौबीस घंटो का सही सही उपयोग कैसे किया। एक बार यदि आपने समय प्रबंधन की आदत डाल ली तो छोटा हो या बड़ा हर काम तय समय सीमा में पूरा हो जायेगा और दूसरा दिन आपके नए कामो के लिए पूरी तरह से खाली रहेगा । जब आप किसी काम को पूरा कर ले तो खुद ही संतोष करे। वस्तुतः टाल मटोल की आदत आपके जीवन का बहुत समय बर्बाद कर देती है। इस आदत के परिणाम स्वरुप हमारी आंतरिक शक्ति धीरे धीरे कम होने लगती है।

Saturday 12 August 2017

आलोचना

आलोचना से कोई भी नहीं बच सकता । जो मनुष्य जितना बड़ा होता है, उसकी आलोचनाये भी उतनी ही बड़ी होती है। इसलिए आलोचना से घबराकर धैर्य नहीं खोना चाहिए । आलोचना दो प्रकार की होती है-रचनात्मक और विध्वंसात्मक। हर एक व्यक्ति को जीवन में किसी न किसी समय आलोचना का शिकार होना पड़ता है । आलोचक को कभी शत्रुता नहीं माननी चाहिए की वह बदनाम करने के लिए आरोप लगा रहा है।ऐसा सदैव नहीं रहता। भ्रम भी कारण हो सकता है। घटना का सही उद्देश्य सही रूप से न समझ पाने पर लोग मोटा अनुमान यही लगा लेते है की शत्रुतावश ऐसा कहा जा रहा है। निंदा करना वालो का इसमे घाटा ही रहता है। यदि उसकी बात सत्य है तो भी लोग चौकान्ने हो जाते है की कही हमारा भेद इसके हाथ हो नहीं लग गया है जिसे यह हर जगह बकता फिरे। झूठी निन्दा बड़ी बुरी मानी जाती है। निंदा सुनकर क्रोध आना और बुरा लगना स्वाभाविक है क्योकि इससे स्वयं के स्वाभिमान को चोट लगती है पर समझदार लोगो के लिए उचित है की ऐसे अवसरों पर धीरज से काम ले। आवेश में आकर विवाद न खड़ा करे। यह देखे की ऐसा अनुमान लगाने का अवसर उसे किस घटना या कारण से मिला। यदि उसमे व्यवहार कुशलता संबंधी भूल हो रही हो तो उससे बचकर रहे। यदि बात सर्वथा मनगढ़ंत सुनी सनाई है तो अवसर पाकर यह उन्ही से पूछना चाहिए की उसने इस प्रकार ग़लतफ़हमी क्यों उत्पन्न की  एक बार कारण तो पूछ लिया होता इतनी छोटी से बात के लिए उसका मुख भविष्य के लिए बंद हो जायेगा और यही कही बात सत्य है तो आत्म सुधार की बात सोचनी चाहिए। 

आलोचना की गई बातो को सत्यता की कसौटी पर कसे। प्राय: बातें असत्य होती है। कभी कभी आलोचना को accept कर लेना भी उचित होता है। यदि सत्य है तो accept करके सुधार कर लेना चाहिए। निरर्थक आलोचना को importance न दे और आगे बढ़ते रहे। आलोचना की विश्वासता को जाँचे। अनेक बार लोग केवल ईर्ष्या वश या लड़ाकर तमाशा देखने के लिए ही आलोचना करते है, इस पर कतई ध्यान न दे। आलोचना से स्वयं को सुधार करने का सुअवसर मिलता है। अपने मित्रो को मन की स्थिति का पता चलता है।

Friday 11 August 2017

प्रसन्न्ता

यह अनुमान सही नहीं है की जो सुखी और साधन संपन्न होता है , वह प्रसन्न रहता है। और यह भी जरुरी नहीं है की जो प्रसन्न रहता है वही सुखी और साधन संपन्न है। प्रसन्न्ता विशेष रूप से ऐसी मनोदशा है जो पूर्णतया आंतरिक सुसंस्कारों पर निर्भर रहती है । गरीबी में भी मुस्कराने और कठिनाइयों के बीच भी जो खोलकर हँसने वाले अनेक व्यक्ति देखे जा सकते है। इसके विपरीत ऐसे भी अनेक लोग है जिनके पास प्रचुर मात्रा में साधन सम्पन्नता है, पर उनकी मुखाकृति तनी रहती है। क्रुद्ध , चिंतित, असंतुष्ट रहना मानसिक दुर्बलता मात्र है जो अंत: करण की दृष्टी से पिछड़े हुए लोगो में पाई जाती है । परिस्थितिया नहीं , मनोभूमि का पिछड़ापन ही इसका कारण है। संतुलित दृष्टीकोण वाले व्यक्ति हर परिस्थिति में हँसते हँसते रहते है। वे जानते है की मानव जीवन सुविधाओं असुविधाओं अनुकलता और प्रतिकूलता के ताने बाने से बुना गया है। संसार में अब तक एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जन्मा जिसे केवल सुविधाओ और अनुकूलताएं ही मिली हो और कठिनाइयों का सामना न करना पड़ा हो। इसके प्रतिकूल जिसने अनुकूलताओं पर विचार करना आरंभ किया और अपनी तुलना पिछड़े हुए लोगों के साथ करना शुरू किया उसे लगेगा की हम करोड़ो से अच्छे है। 

हमारे पास जो प्रसन्न्ता है, वह एक वरदान है हँसने हँसाने के लिए उसके पास बहुत कुछ होगा , किन्तु जिन्हें अशुभ चिंतन की आदत है , दुसरो के दोष , दुर्गुणों और अपने अभाव , अवरोध खोजने की आदत है, ऐसे लोग परेशान रहते हैं वे असमंजस और दुखी रहते है रोष उनकी वाणी से और असंतोष उनकी आकृति से टपकता रहेगा। ऐसे व्यक्ति स्वयं दुखी रहते है। हमे अंसन्तुस्ट और कुद्ध नहीं रहना चाहिए । इससे मानसिक विकृतिया उत्पन्न होती है और बढ़ती  चली जाती है। आग जहाँ रहेगी , वही जलायेगी । असंतोष जहाँ रहेगा, वहीँ दूरियां पैदा करेगा और उससे सारा मानसिक ढांचा लड़खड़ाने लगेगा। 

सद्गगति

हमारे कर्म ही हमे गति देते है। यदि हम अच्छे कर्म करते है तो सदगति को प्राप्त करते है, गलत कर्म से दुर्गति मिलती है। कर्म छोटा  या बड़ा नहीं होता, बल्कि कर्म ही मनुष्य को छोटा बड़ा बनाते है। हम जैसे कर्म करते है, उसका वैसा ही फल हमे मिलता है। हमारे द्वारा किये गए कर्म ही हमारे पाप और पुण्य तय करते है। हमारे जीवन में कुछ अच्छा या बुरा होता है तो उनका सीधा सम्बन्ध हमारे कर्मो से होता है। कहा गया है की जो जैसा बोता है वह वैसा ही काटता है। अगर हमने बबूल का पेड़ बोया है तो हम आम नहीं खा सकते । हमे सिर्फ काटे ही मिलेगे। एक डाकू या लुटेरा भी यही सोचता है की वह अच्छे कर्म कर रहा है । लूटपाट करके ही सही , अपने परिवार का पेट तो भर रहा है, लेकिन जब साधुओं ने एक डाकू से पूछा की क्या इस पाप में तेरा परिवार भी भागी बनेगा तो वह असमंजस में पड़ गया और भागा भागा अपने परिवार के पास गया । उसने परिवार के सदस्यों से यही प्रश्न किया तो सभी ने एक स्वर में कह दिया की तुम्हारे पापो में हम भागीदार नहीं है। तब जाकर उसकी आँखे खुली । हमारे कर्मो में इतनी ताकत होती है की डाकू तक अपने कर्म सुधारे तो वे महर्षि बन सकते है। 

दुनिया हमे हमारे काम से ही पहचानती है। तभी कहा गया है की अपने कर्मो की गति सुधारो । कर्म सुधर गए तो जीवन सुधर गया । अच्छे कर्मो से मनुष्य जीते जी तो याद किये ही जाते है, मृत्यु के बाद भी उनका नाम अमर हो जाता है । हमारे कर्म में हमेशा कोई न कोई उद्देश्य छिपा होना चाहिए । उद्देश्य के बगैर कर्म बहुत असरकारक नहीं होता । एक बुजुर्ग व्यक्ति ने यात्रा पर जाने से पहले अपनी बहुओ को कुछ बीज दिए और कहा की इन्हे संभलकर रखना। जब मैं लौटूगा तो इन्हे वापस ले लूंगा। पहली बहू ने बीज बक्से में संभलकर रख दिए, लेकिन कुछ समय बाद ही वे सड़ गए। दूसरी बहू ने उन बीजो को बो दिया तो कुछ दिनों बाद वे अंकुरित हो गए और पौधे में तब्दील हो गए । बुजुर्ग जब यात्रा से लौटे और उन्होंने आँगन में नए पौधे देखे तो वे अपनी छोटी बहु से बहुत खुश हुए। हमारे कर्म हमारी सोच पर निर्भर करते है। यानि हम जैसा सोचते है वैसे ही कर्म करते है और उसी के अनुरूप हमे फल  भी मिलता है। अपने कर्मो के लिए व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेदार होता है। गीता में भी कहा गया है की फल से ज्यादा कर्म को ही महत्ता दी जानी चाहिए।

Thursday 10 August 2017

मनुष्य और प्रकृति

ईश्वर ने हर जीव को जो कुछ दिया है , उसके कर्मो और उसकी योग्यता के अनुसार दिया है। मनुष्य इसके बाद भी संतुष्ट नहीं है और ईश्वर की सत्ता और व्यवस्था में किसी न किसी भाँति दखल देता रहता है । मनुष्य की सोच है की वह इससे उत्तम परिस्थितिया उत्पन्न कर सकता है। उसने पहाड़ , जंगल , पेड़ काट डाले नदियो के रुख मोड़ दिए और वह खनिजो का दोहन कर रहा है। वातावरण पर नियंत्रण करना चाहता है और अपनी गढी हुई परिभाषा के अनुरूप सुख प्राप्त करना चाहता है। वह परमात्मा के प्रति एक तरह का अविश्वास है । सृष्टि में जो कुछ है , प्रचुरता में है और जीव के उपभोग के लिए है। सामान्य उपभोग से न तो फल , वनस्पतियो और खाद्यान समाप्त होने वाले है और न जल। वायु भी कभी चुकने वाली नहीं है। मनुष्य के अविवेक और अधीरता ने इन पर भी संकट खड़ा कर दिया है । मनुष्य अपने प्रारब्ध से आधिक पाना चाहता है- वह भी ईश्वरीय व्यवस्था को भंग करके । वह कितना भी चातुर्य प्रदर्शित कर ले ईश्वर की उच्चता को नहीं पा सकता है इस कारण अंततः दुखी होता है। एक बार एक कुशल मूर्तिकार ने अपने जैसी कई मूर्तियां बना ली और उनमे  छिपकर बैठ गया ताकि यमराज के दूत उसे लेने आये तो पहचान न सके । वक़्त आने पर जब दूत आये तो उसे पहचान न सके और यमराज को जाकर सारी बात बताई। यमराज ने एक युक्ति बता कर अपने दूत पुनः भेजे। दूतों ने आकर कहा की वाह तुम तो बड़े कुशल मूर्तिकार हो, किन्तु एक गलती कर आये हो। मूर्तिकार का अहं जाग गया और वह तुरंत दहाड़ कर बोला की मैं कोई गलती कर ही नहीं सकता । वास्तव में यह अहंकार ही उसकी सबसे बड़ी गलती थी जिससे यमराज के दूतों ने उसे पहचान लिया। आज मनुष्य के साथ भी यही हो रहा है । अपने अहंकार के चलते वह विध्वंश की ओर बढ़ रहा है। यदि पृथ्वी पर पेड़ो , पहाड़ो , नदियो की आवश्यकता न होती तो ईश्वर उनकी रचना क्यों करता। मौसम का बदलना , दिन और रात का होना, जन्म और मृत्यु सभी किसी विधान के तहत है । इसमें सृष्टी का संतुलन और उपादेयता निहित है। मनुष्य को बुद्धि आत्मिक विकास और आवागमन के फेर से मुक्ति के लिए मिली , किन्तु उसका उपयोग वह सृष्टी के नियमो से मुक्त होने के लिए कर रहा है। 

मुस्कान का प्रभाव

संस्था की वार्षिक बैठक थी। किसी में target पूरा करने की ख़ुशी थी, तो किसी में कार्य पूरा न करने की उदासी । खचाखच भरे हाल में जैसे ही उस व्यक्ति का प्रवेश हुआ, कई जोड़ी आँखे उसकी ओर उठ गई। परिचित अपरिचित सभी के साथ मृदुल मुस्कान लिए बड़ी आत्मीयता और आत्मविश्वास के साथ वह मिल रहा था। यह तो बाद में पता चला की वह अपने target तक पहुचने में नाकाम रहा है। मुस्कुराहट में बड़ी शक्ति होती है । मुस्कराने की क्षमता वही रखता है , जिसकी सोच सकारात्मक होती है और संघर्षो को पार करने की काबिलियत रखता है। हमारे व्यक्त्तिव का सबसे अच्छा आभूषण हमारी मुस्कुराहट है। दिल जीतने से लेकर जंग जीतने तक में यह कारगर है। कहा गया है, जैसी हमारी सोच होगी , वैसा ही व्यवहार परिलक्षित होगा। असफल होने का डर या विफलता के बाद की निराशा से उबर कर सहज हो जाना आसान नहीं तो असंभव भी नहीं । सकारात्मक विचार हमे एक दूसरे के करीब लाता है और कई लोग सही दिशा निर्देश भी देते है , जिन्हें अपनाकर हम target पा सकते है। चेहरे की मुस्कराहट के साथ व्यवहार में गर्मजोशी हो, तो ऐसी मुलाकात अविस्मरणीय बन जाती है। सकारत्मक सोच हमे लोकहित के लिए प्रेरित करती है। अगर हम अच्छे है तो हमे दूसरों की अच्छाई भी दिखेगी , भले ही सामने वाले में असंख्य बुराइया हो। विचारों में चाहे विरोधाभास हो या आस्था में चाहे विभिन्नताये , पर अपनी पसंद के आधार पर दुसरो की आलोचना नहीं करनी चाहिए । अपना ढंग किसी को बुरा न लगे और किसी के मार्ग का अवरोध न बने। मनोविकार से बचने के लिए सृजनात्मक और सकारात्मक सोच अपनानी होगी। जरुरी है दुःख को  क्षण भर मानकर मुस्कराते हुए उसका सामना करे , सुख खुद ब खुद  दरवाजे पर दस्तक देगा।

Wednesday 9 August 2017

सदबुद्धि

समस्त दुखो की जननी कुबुद्धि है और समस्त सुखो और शांति की जननी सदबुद्धि है। कुबुद्धि हमे आनंद से वंचित करके नाना प्रकार के क्लेश, भय और शोक संतापो में फंसा देती है। जब तक यह कुबुद्धि रहती है तब तक कितनी ही सुख सामग्री प्राप्त होने पर भी चैन नहीं मिलता । एक चिंता दूर नहीं हो पाती की दूसरी सामने आ खड़ी होती है । इस विषम स्थिति से छुटकारा पाने के लिए सदबुद्धि जरुरी है । इसके बिना शांति मिलना किसी भी प्रकार संभव नहीं। संसार में जितने भी दुःख है, कुबुद्धि के कारण है। लड़ाई -झगड़ा , आलस्य , दरिद्रता , व्यसन , व्यभिचार , कुसंग आदि के पीछे मनुष्य की दुर्बुद्धि ही काम करती है। इन्ही कारणों से रोग , अभाव , चिंता, कलह आदि का भी प्रादुर्भाव होता है और नाना प्रकार की पीड़ाएँ सहनी पड़ती है । कर्म का फल निश्चित है, ख़राब कर्म का फल ख़राब ही होता है। कुबुद्धि से बुरे विचार बनते है। उपासना के फलस्वरूप मस्तिष्क में सदविचार और ह्रदय में सदभाव उत्पन्न हो जाते है, जिसके कारण मनुष्य का जीवनक्रम ही बदल जाता है। अंगीठी जलाकर रख देने से जिस प्रकार कमरे की सारी हवा गर्म हो जाती है और उसमे बैठे हुए सभी मनुष्य सर्दी से मुक्त हो जाते है। उसी प्रकार घर के थोड़े से व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से सदबुद्धि की शरण लेते है तो उन्हें स्वयं तो शांति मिलती ही है, साथ ही उनकी साधना का सूक्षम प्रभाव घर पर पड़ता है और चिंताजनक मनोविकारों का शमन होने व सुमति , एकता , प्रेम, अनुशासन और सदभाव की परिवार में वृद्धि होती है। साधना निर्बल हो तो प्रगति धीरे धीरे होती है, पर होती अवश्य है। सदबुद्धि एक शक्ति है जो जीवनक्रम को बदलती है। उस परिवर्तन के साथ साथ मनुष्य की परिस्थितिया भी बदलती है। सदबुद्धि आत्म-निरीक्षण , आत्म शुद्धि , आत्म उन्नति और आत्म साक्षत्कार करने की शक्ति उत्पन्न कर देती है। जैसे ही मनुष्य के अंत:करण में सदबुद्धि का पदार्पण होता है वैसे ही वह अपनी कठिनाइयों का दोष दुसरो को देना छोड़कर आत्म निरीक्षण आरम्भ कर देता है। अपने अंदर जो त्रुटिया है उन्हें तलाशता और हटाता है। ऐसी गतिविधि ग्रहण करता है जो अपने और दुसरो के कष्ट बढ़ाने में नहीं , बल्कि सुख सुविधा के उत्कर्ष में सहायक हो।

जीवन-पद्धति

किसी भी कार्य की सफलता में सबसे पहले सम्बंधित कार्य की रूप-रेखा बनाई जाती है। उसमे कार्य की प्रकृति , उसमे लगने वाला समय , धन, सामर्थ्य का आकलन शामिल होता है। इससे कार्य में सफलता की सुनिश्चितता बढ़ जाती है। अक्सर देखने में आता है की सड़क पुल ,सिंचाई परियोजना आदि के निर्माण में पहले हर पहलुओं का विस्तृत आकलन किया जाता है , जिसे प्रोजेक्ट रिपोर्ट कहते है । प्रोजेक्ट रिपोर्ट के गहन अध्य्यन के बाद उस पर कार्य शुरू होता है, लेकिन प्राय: लोग निजी जीवन में कोई कार्य किसी ठोस योजना के बगैर शुरू कर देते है और असफल होने पर खुद निराश तो होते ही है, साथ ही भाग्य और भगवान्  को दोष देते है। प्रयास करने से भी कोई कार्य नहीं पूर्ण हो पाता या सफलता नहीं मिलती तो कही न कही स्वयं का दोष है   योजनाबद्ध कार्य का example मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा कदम कदम पर प्रस्तुत किया गया । लंका पर आक्रमण के पहले वहा की सारी स्थिति का अध्य्यन करने के लिए श्री राम हनुमान जी को लंका भेजते है। लंका के भौगौलिक, सामाजिक ,सामरिक आदि  क्षमता का आकलन कर हनुमान जी विस्तृत जानकारी श्री राम को देते है और जब श्री राम खुद लंका जाने की बात आती है और बीच में समुद्र पर मार्ग बनाने का question उठता है तब उनके अनुज लक्षमण जी तत्काल ही उस कार्य को अंजाम देना चाहते है और पुल बनाने का उद्यम करने लगते है, लेकिन श्री राम ने उन्हें किसी तरह की जल्दबाजी से रोक दिया। स्वयं श्री राम समुद्र तट के किनारे तीन दिनों तक बैठे रहे । इन तीन दिनों में श्री राम का समुद्र पर पुल बनाने की कार्ययोजना को अंजाम देना मुख्य target था ।किसी कार्य के शुरू करने में जब व्यक्ति एकाग्र मन से किसी कार्य का चिंतन करता है तो चिंतन में ही अनेक रास्ते निकलते है। जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए सब में वैज्ञानिक ने पहले गहरा चिंतन किया , उसके बाद प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की। ऐसा माना जाता है की ठंडे मन से किसी subject पर सोचने से सरल उपाय निकल आते है। जबकि प्राय: व्यक्ति जल्दबाज़ी और शॉर्टकट रास्ता तलाशता है। इसी तरह अध्यात्म के field में भी गहरे चिंतन मनन को importance दिया गया है। 

Monday 7 August 2017

जीवन में सफल होने के 28 मंत्र

1 किसी को कोई वस्तु बहुत ही सोच समझकर देनी चाहिए चाहे वह कोई भी चीज हो। 2 कोई भी निर्णय लेने से पहले कई लोगो से राय लेनी चाहिए और फिर कोई कदम उठाना चाहिए। 3 छोटी से छोटी बात पर गंभीरता से विचार करने के बाद ही निर्णय ले। 4 सदैव सच बोले और कुछ भी कहने से पहले उसे दो तीन बार समझे फिर बोले। 5 जीवन में बहुत से मोड़ आते है और उसे संभलकर मुड़े। 6 present टाइम में भ्रष्टाचार,चोरी आदि कई अपराध बढ़ रहे है जरा संभलकर अनजान व्यक्ति को बिना समझे कोई महत्वपूर्ण या पारिवारिक बातो का उल्लेख न करे। 7 कई समस्याएं हमारे जीवन में ऐसे मोड़ ला देती है तब हमे निर्णय करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। 8 कोई कार्य करने से पहले लोगो से राय लेनी चाहिए तब कार्य करे। 9 जीवन में जितना हो सके उतना ही कम और उचित बातें करे चाहे वह कोई भी हो। 10 जल्दबाजी में या अचानक किसी से कोई कार्य करने को न कहे। 11 जीवन में किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं रखनी चाहिए। 12 संसार में बहुत से मनोरंजक वस्तुएं है जिनकी तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। 13 किसी को कुछ भी देने से पहले कोई सबूत या गवाह होना चाहिए। 14 जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जिनके लिए पछतावा न हो। 15 गलत कार्यो से सदा दूर रहना चाहिए। 16 हर समय चिंतन नहीं करना चाहिए कुछ समय अकेले में किये हुए कार्यो पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। 17 मन को सदैव शांत करने का प्रयास करो। 18 ऊँची आवाज में किसी से बात नहीं करनी चाहिये और अधिक बोलना भी नहीं चाहिए । 19 किसी के विषय में गलत न बोले सोच समझकर उसके विषय में बोले। 20 बिना मेहनत के सफलता को पाने की कोशिश न करे। 21 अग्रिम कार्य करने से पहले स्वयं में सोच समझकर कार्य करे वरन् कई समस्याऐ और पछतावा के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। 22मनुष्य अपने तरीके से जिंदगी जीना चाहता है इसलिए किसी के तौर तरीको से नाराज नहीं होना चाहिए न ही उससे। 23 कुछ भी पॉजिटिव करने के लिए अपने अंदर विश्वास जगाना होगा। अगर आप ज्यादा positive रहते है तो परफॉर्म भी ज्यादा बेहतर करेगे। 24 सफलता प्राप्त करने में विपरीत result भी आ सकते है हमेशा दिमाग में रखना चाहिए की मैं गलत हो सकता हूँ यह बहुत बड़ा गुण है। 25 सबके साथ अच्छे संबध रखो। 26 असफलता को भी एन्जॉय करो । कभी कभी बहुत difficult परिश्रम के बाद भी असफलता ही मिलती है इसके पीछे एकमात्र कारण परिस्थियां होती है। 27 difficult परिश्रम और अनुशासन सफलता की कुंजी है। 28 जो मनुष्य स्वयं को समय के अनुसार नहीं परिवर्तित करता है वह मनुष्य नहीं जानवर के सामान है । 

उनींदी हालत में हौसला

बॉस अपने केबिन में उनींदे थे। सब यही सोच रहे थे यह बढ़ते तापमान का असर है। आधे घंटे बाद ही उन्होंने एक बैठक बुलाई और उस मुद्दे पर फैसला लिया जिस पर दो सप्ताह से अधिक टालमटोल की स्थिती बनी हुई थी। उनींदीपन में तय की गई बात बेहतर रिजल्ट देती है। इसे समझना टेढ़ी खीर था। समझ में तब आया जब उन्होंने लंबे समय तक अवचेतन मन पर कार्य करने के बाद पाया की उसे प्रभावित करने का सबसे अच्छा तरीका है उनीदीं अवस्था में जाना। फिर चिंतन करना और निष्कर्ष बनाना। उनीदीं अवस्था का मतलब है  वहाँ जाना जहाँ आपके प्रयास न्यूनतम हो जाये। उनीदीं अवस्था में आपके प्रयास न्यूनतम हो जाते है।  दरअसल अवचेतन मन सबसे अधिक शक्तिशाली तब होता है जब हम सोने के ठीक पहले या जागने के ठीक बाद की अवस्था में होते है। यह अवस्था जब आती है उस समय अवचेतन मन तक आपकी इच्छा को पहुचने से रोकने वाले सारे नकारत्मक विचार ख़त्म हो जाते है। कोई बाधा नहीं होती । आप महज एक बार ही उनीदींपन में आकर यह लाभ नहीं उठा सकते ।इसे भी दुहराना होता है। फैसला लेने की क्षमता आने से लेकर किसी के फलित होने तक हो सकता है। की आपको बार बार यह तकनीक प्रयोग में लानी पड़ेगी। जब भी नकारत्मक आदत या सोच जोर मारे यह तकनीक आज़मा ले। हो सकता है हम इसके रिजल्ट को लेकर सकारत्मक विचार न रखते हो।

तन और मन की सेहत


हमारा तन और मन यह दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए है। मन का एक छोटा सा विचार भी बॉडी पर अपनी reaction छोड़ जाता है। जब मन में क्रोध आता है, तो उसका तत्काल प्रभाव शरीर पर पड़ता है। जब मन में करुणा जागती है तब भी उसका असर दिखाई देता है। मन जिस स्थिती में होता है, मस्तिष्क द्वारा हार्मोन का स्त्राव भी उसी के अनुरूप होता है। जब हमारा मन ठीक नहीं होता है तब हम नकारात्मक भावनाओ से बुरी तरह घिर जाते है। जिसका सीधा असर फिर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। हम खुद को इतनी अच्छी तरह से जान ले की हमे अपने भीतर क्या है उसका सहज अहसास हो। अपने भीतर के अच्छे तत्वों को जानने से हमारे विचारों और भावनाओं की गुणवत्ता में गहरा परिवर्तन आता है। जो चुनौतियों के सामने हमे शान्त और प्रेम से रहने के लिए सक्षम बनाता है। इस प्रक्रिया को सरल बनाने में आध्यत्मिकता एक बड़ी भूमिका निभा सकती है। आद्यात्मिकता हमारे भीतर की दुनिया को जानने और उसमे उत्पन्न होने वाली अनेकानेक समस्याओं से निपटने की अद्वितीय कला है। मैं कौन और मेरा क्या , इस सार को समझाने वाला ज्ञान है अध्यात्म । इसमें हमे इस गहरे तथ्य की समझ प्राप्त होती है। की अपने विचारों और भावनाओं के लिए जिम्मेदार हम स्वयं न की और कोई । जिसने अपने आपको पहचान लिया ,वही परमात्मा को पा सकता है। जीवन तभी सफल है जब आप वही करते है जिसे करने में आपको आनंद मिले। 

Sunday 6 August 2017

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास के बल पर हम कह सकते है जो हम करना चाहते है वो कर सकते है। मै अच्छा आदमी तभी बन सकता हूँ यदि मुझमे आत्मविश्वास है और दृढ़ निश्चय है। आत्मविश्वास के लिए पाँच चीजो का होना जरुरी है-1:साहसपूर्ण निर्णायक क्षमता 2:आशावादी दृष्टीकोण 3:सकारात्मक सोच 4:उत्साही मन 5:ऊर्जस्वी पराक्रम । अच्छी जिंदगी का सपना देखने का हक़ है उसके लिए सोचना यह है की हम कितनी गहराई में जमे बैठे संस्कारो को कैसे सुधारे ? जड़ो तक कैसे पहुचे ? जड़ के बगैर सिर्फ फूल पत्तो का क्या मूल्य? पतझड़ में फ़ूल पत्ते सभी झड़ जाते है। मगर वृक्ष कभी इस वियोग पर शोक नहीं करता उसके पास जड़ की सत्ता सुरक्षित है। अंधेरा तभी तक डरावना है जब तक हाथ दिए की बाती तक न पहुचे । अपने आपको अपना भविष्य निर्माता मानिये और फिर कार्य की शुरुआत कर दीजिये । सोचिये की आज से एक वर्ष बाद , दो वर्ष बाद , पांच वर्ष बाद आप कहाँ पहुँचना चाहते है। जहाँ आपको मनचाही सफलता और जिंदगी हासिल हो। आपको यह मानना होगा की आप बदल सकते है। और उस बदलाव के लिए आपके पास पर्याप्त आत्मविश्वास है।  महापुरुषों में आत्मविश्वास होता है और दर्बलो में केवल इच्छाएं। 

चिंतन का महत्व

हमे हर दिन चिंतन करने की आदत डालनी चाहिए । अच्छी बातो को सुनने समझने गुनने से मानसिक शारीरिक आद्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। मन मस्तिष्क मजबूत बनता है। हमारे भीतर सोचने की प्रक्रिया दिन रात चलती रहती है। संगति और वातावरण का प्रभाव भी चिंतन पर पड़ता है। विचारों में बदलाव चिंतन से ही संभव होता है। अच्छी अच्छी उपदेशप्रद पुस्तको के अध्यन से या उपदेश सुनने से चित्त की चंचलता दूर होती है। मन में चिंता की अग्नि नहीं धधकती । जीवन सुखमय व शांतिमय बन जाता है। चिंतन से उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ता है। कार्य करने की शक्ति बढ़ती है। आँख ,कान ,और मुँह इन तीनो को नियंत्रित करना सीखे । न बुरा देखे न बुरा सुने और न बुरा बोले । कभी किसी से कटु या अप्रिय वचन न बोले। सदैव हँसते मुस्कुराते रहे। अपने पराये का भेदभाव कम करे।

दो भाइयों की बोधकथा।

इस कहानी से हम सबको जो education मिलती है,उस education को कोई न ग्रहण करे, तभी अच्छा है अब start करते है वह कहानी-दो भाई थे  सुबुद्धि और कुबुद्धि । सुबुद्धि शरीफ था पढ़ लिखकर ठीकठाक नौकरी कर रहा था। कुबुद्धि का पढ़ने लिखने में कोई ध्यान नहीं था, वह गुंडों बदमाशों के साथ रहता था,यदा कदा शराब भी पी लेता था। एक रात कुबुद्धि अपने दोस्तों के साथ शराब पी कर लौट रहा था तभी एक लड़की कही से लौट रही थी। कुबुद्धि ने उस पर कुछ comment कर दिया। लड़की ने जवाब में डाट दिया । कुबुद्धि को गुस्सा आया। सुनसान इलाका था। कुबुद्धि ने उसके साथ बलात्कार कर दिया उसे लग रहा था की लड़की इसकी शिकायत नहीं करेगी। पर लड़की ने थाने में शिकायत कर दी। कुबुद्धि गिरफ्तार हो गया। कुबुद्धि के पिता ने पहले तो उसे खूब गालिया दी,फिर उसे बचाने के रास्ते खोजने लगे। उसकी माँ ने कहा-वह लड़की ही बदचलन है । रात में क्यों घूम रही थी। मेरे बेटे को गलत फसाया गया है। जाति के नेता लोग इकठ्ठा हो गए उन्होंने कहा-लड़के है गलती हो ही जाती है अब इस गलती के लिए क्या लड़के की जिंदगी बर्बाद होने दे। उन्होंने लड़की के पिता पर दबाव डाला की तुम्हारी लड़की की जिंदगी तो बर्बाद हो ही गई अब लड़का क्यों बर्बाद हो ? पुलिस वालो की मदद से पैसा वैसा लेकर matter ख़त्म कर दिया। सुबुद्धि ऐसा नहीं था उसे एक लड़की से सच में प्रेम हो गया और उसने उससे शादी करने की ठान ली। लड़की सुंदर थी पढ़ी लिखी भी ,लेकिन दूसरी जाति की थी। । माता पिता ने कहा -लड़के ने नाक कटा दी,बिरादरी में हमारी इज़्ज़त क्या रहेगी? माता पिता ने सुबुद्धि और उसकी प्रेमिका की हत्या कर दी।

Saturday 5 August 2017

मन की गहराई

तुम अपनी तरफ नहीं देखते की जिस मन में तुम भरते चले जा रहे हो वह बिना पेंदी का है। हमारा मन एक छिद्र की तरह है जिसमे नीचे कोई तलहटी नहीं है। इसलिए संतोष की तलाश हो, शांति की प्यास हो तो मन के पार जाना जरुरी है। मन से जो भी खोजेंगे वह कभी मिलेगा नहीं । ध्यान की स्थिरता में सारी demand खो जाती है और तब आप भर जाते है।अपने मन को समझना हो तो उसके स्वभाव को समझना जरुरी है। जिंदगी में आपको कितना भी मिल जाये कभी संतोष नहीं होता है। मन जितना भी तेज़ क्यों न दौड़े जीवन की एक अपनी गति भी है। तभी निरंतरता और अनिश्चितता दोनों बने रहते है। जब आप सोचते है की सब ठीक है तब कुछ बुरा हो जाता है। और जैसे ही लगता है की अब कुछ बेहतर नहीं हो सकता कुछ बेहतरीन हो जाता है। शब्द चोट पहुचाते समय सबसे बड़े और मदद देते समय सबसे छोटे रूप में होते है। 

Friday 4 August 2017

आपकी क्षमता

बॉस ने उनसे कई बार यह सवाल पूछा की कैसे हम कंपनी का आउटपुट बढ़ाये ,उसके उत्पाद में वृद्धि लाये। एक दिन उन्होंने सोचा की कभी हम अपना आउटपुट बढ़ाने के बारे में तो सोचते ही नहीं है। जो यह सोचते है वे निश्चित तौर पर आगे रहते है उनका दिमाग समृद्ध होता है।आप हमेशा साबित कर सकते है की आपकी क्षमता उतनी है, जितनी क्षमता का विश्वास आपके मन में है।आप उतना ही काम कर सकते है जितना ठान सके । जो नए काम को यह कहकर नहीं स्वीकारते की उनके पास पहले से ही काफी काम है वे हमेशा पीछे रहते है। किसी के पास काम ज़्यादा नहीं होता। होता है तो अपनी क्षमता के सही आकलन का अभाव । कोई भी नया प्रोजेक्ट किसी को सौपने से पहले वह गौर करते है की किसके पास काम की कमी नहीं है, वही ठीक से नया काम ले पाते है। वे काम आगे बढकर लेते ही नहीं, बल्कि उसे समय पर भी पूरा करते है। काम का रोना नहीं रोने वाले ऐसे लोग होते है जिन्हें अपनी क्षमता पर यकीन होता है। वे सीधी सोच वाले नहीं होते। उनकी सोच out of box होती है। वे काम धडाल्ले से करते है और ज्यादा भी। उनके काम में परफेक्शन भी होता है। 

प्रशंसा की जरुरत।

वह चाहकर भी दुसरो को प्रशंसा नहीं कर पाते । दरअसल उन्होंने जब भी अपने वरिष्ठ , अधिक सामाजिक आर्थिक हैसियत वालो की प्रशंसा को, उन्हें मक्खनबाज़ का तमगा पहना दिया गया। आखिरकार उन्होंने प्रशंसा करने से ही कन्नी काटनी शुरू कर दी। ऐसी स्थिती किसी के भी साथ हो सकती है।  प्रशंसा की जरुरत सबको है प्रत्येक व्यक्ति में सैकड़ो ऐसी  बातें है जिनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। लेकिन हममे से तो ज्यादातर डरे रहते है की कही इसे गलत न समझ लिया जाये। हम यह नहीं समझ पाते की व्यक्ति जितना सफल हो जाये , प्रशंसा पाने की सोच हमेशा उस पर हावी रहती है। प्रशंसा में सच्चाई वैसी ही होनी चाहिए , जैसी बर्फ में सफेदी होती है और पानी में प्यास बुझाने की क्षमता । प्रशंसा तभी फलित होती है,जब वह उद्देश्यहीन हो। ऐसा करके, कुछ पाने की अपेक्षया न की जाये ।आपको जितना  अपेक्षया से दूर रहेगे आपको उतना ही लाभ होगा। सामने वाला आपके काम से ही नहीं आप के मान सम्मान से भी जुड़ेगा।

Wednesday 2 August 2017

सिर्फ सोचना काफी नहीं।

सुखद योजनाये बनाते समय आदमी को बड़ा सुख मिलता है। इस सुख के कारण विभोर होकर वह उनमे डूबकर रह जाता है। प्रत्येक दस व्यक्तियों में से नौ ऐसे होते है जो योजनाएं तो बहुत बनाते है पर करते कुछ भी नहीं । ऐसी बात नहीं की उनमे क्षमता  की कमी होती है या वे उसके योग्य ही नहीं होते बस एक सबसे बड़ी दुर्बलता होती है की सोचने के बाद अपनी सोच को वे कार्यरूप नहीं दे तो यही कारण है की असफल लोगो की संख्या सबसे ज्यादा है। नेपोलियन तत्काल सोचता ,निर्णय करता और अपने निर्णय को कार्यरूप में परीणत करता। अपनी इसी क्षमता के कारण वह यूरोप का सम्राट बना। इंग्लिश चैनल को पार करने के लिए स्मिथ ने नौ बार निरंतर प्रयास किया  तब जाकर दसवी बार में उसे कामयाबी मिली इसी तरह असंख्य लोग ऐवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश निरन्तर करते रहे पर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नार्वे ने विजय हासिल की। असफलता या पराजय की हार के बारे में सोचकर अगर यह लोग घर बैठ जाते तो क्या वे कभी विजेता बन पाते? बेंजामिन डिजरायली ने सौ बातो की एक बात लिखी है सोचो मत करो इसे एक नए अर्थ में इस तरह से लिया जा सकता है की जो सोचो सो करो। इस पथ पर चलकर अपना कायाकल्प करके अपने जीवन को क्रियाशील करके ही हम कामयाबी के नए नए शिखरों को छु सकते है। 

अजनबी से मिलने का सुख।

जब लोग एक दूसरे से मिलते है तो इतनी विनम्रता से, इतनी भद्रता से मिलते है की ऐसा लगता है की प्रेम और मित्रता में डूबे हुए है। उनकी मुस्कान ,बातचीत का स्वर ,बॉडी लैंग्वेज सभी कुछ सकारात्मक होता है। लेकिन थोड़े करीब आते ही दो चार दिन में वे अपने दुखो का रोना शुरू कर देंगे। पहले जब मिला था ,तो उसका चेहरा और था,फिर धीरे धीरे चेहरे की ख़ुशी ,वह धोखा था, जो पलस्तर था, वह है जायेगा जैसे लोग चेहरे का मेकअप करके जाते है वैसे मन का भी मेकअप करके जाते है। इसलिए अजनबी आदमी से मिलने का सुख मिलता है । सुख का कुल कारण इतना है की दोनों थोड़ी देर एक दूसरे को धोखा देने में सफल रहते है। परिचित लोगो से बिलकुल सुख नहीं मिलता क्योकि वे सब उपद्रव प्रकट क्र देते है आकर। जो लोग करीबी दोस्त बनते है उनसे ही दुश्मनी भी शुरू हो जाती है। दुश्मन बनने से पहले दोस्त होना बहुत जरुरी होता है। आदमी अंदर बाहर से एक नहीं है। ख़ुशी बाहर सजाकर रखता है, दुःख भीतर छिपाकर रखता है। जब तक आदमी शांत और सुखी नहीं हो सकता । दिखावा करने की जरुरत भी क्या है?  सभी के तराजू में कुछ ना कुछ दुःख होता ही है। आप कितना भी छिपाये दूसरे को पता चल ही जाता है। तो सुकून की जिंदगी जीनी हो तो यह धोखाधड़ी बंद करे।

दोषी ठहरा देना।

दरअसल गुस्सा आते ही हम सामने वाले को दोषी मानने लगते हैं यही से गुस्सा जिद पकड़ लेता है। अगर हम सहज सामान्य है, तो गुस्सा आएगा ही । लेकिन लंबे समय तक गुस्से का बने रहना ठीक नहीं है  अगर कोई चीज आपके मन मुताबिक नहीं होगी। अगर कही कुछ गलत होगा, तो गुस्सा आएगा ही। लेकिन उससे चिपके रहना अपने ऊपर बोझ लाद लेना है। जिंदगी का सीधा सादा फंडा यही है की हमे किसी बोझ के साथ नहीं जीना चाहिए । ऐसा नहीं है की हम पर कोई बोझ आएगा ही नहीं । लेकिन हमे उस बोझ को जल्द से जल्द उतार देना है। हम पर बोझ आता है, तो हम क्या करते है?  कोशिश करते है की उससे जल्द ही छुटकारा मिल जाये । उसी तरह से हमे गुस्से के बोझ को भी समझना है।

संवेदनशील होना।

दरअसल संवेदनशीलता हमारी कमज़ोरियों पर भारी पड़ती है। आप जब दुसरो को समस्याओं से घिरा देख नहीं पाते और उनकी मदद का हाथ बढ़ाते है तो अपने अस्तित्व को सार्थक कर रहे होते है। रंग बिरंगी चीजो के पीछे भागते हम केवल अपने लिए जीने लगते है । इतने स्वार्थी हो जाते है  की खुद की परेशानी सबसे बड़ी लगने लगती है और दुसरो का जीवन हमारे लिए मायने नहीं रखता। हम 

Tuesday 1 August 2017

अपनी खुबिया तो जान लो।

काम करते करते हमे ही पता नहीं चलता की हमारी खूबी क्या है? हम अपनी ताकत का अंदाज नहीं लगा पाते । ख़ामियों पर तो बाहर से खासा हमला हिट है। इसलिए उनका अंदाजा तो हमे आसानी से हो जाता है। लेकिन.....खूबियां हमारे भीतर होती है हम उनके साथ काम करते रहते है। हमारी जो खूबियां होती है वही हमारी ताकत होती है।एक मायने में वही हमारी क्षमता भी होती है और सम्भावना भी। जब हम अपनी खूबियों के बारे में जानते समझते है,तभी हम अपना बेहतरीन दे पाते है। होता यह है की हमे अपनी खूबियां साधारण सी लगती है।लेकिन वह होती असाधारण है। अगर यह समझ में आ जाये तो हमारी जिंदगी बदल जाती है। हम अपनी खूबियों को साधारण समझकर काम करते रहते है और साधारण घेरे में ही बने रहते है। हमे जब महसूस होता हो जाता है की खुबिया साधारण नहीं है तोह हम उस घेरे को तोड़ने में जुट जाते है। एक दिन वह घेरा टूट भी जाता है। और हम कुछ अलग काम कर पाते है। अपनी संभावनाओ को एक अलग आयाम दे देते है।

समस्याओं के निर्माता

समस्याओं को बड़ा चढ़ा कर देखना हमारी आदत होती है। समस्या एक पिचके गुब्बारे की तरह है। आप हवा भरेंगे तभी वह बड़ी होगी इससे बचना है तो खुद को बिल्कुल सामान्य रखना होगा। समस्याओं से खुद को अलग कर देखना होगा। जियो, नाचो, खाओ,सोओ । काम जितना हो सके समग्रता से करो और हमेशा इस बात का ख्याल रखो । की जब भी तुम देखो खुद को कोई समस्या निर्मित करते हुए ,उससे बाहर निकल जाओ।

तो बह चलो न।

दरअसल, इच्छशक्ति से हम जब कोई काम करते है, तो ऐसा लगता है मानो हम किसी उलट दिशा में बह रहे है, हमारा मन कुछ चाह रहा होता है और हम कर कुछ और रहे होते है। हमारा दिमाग कहता है की हमे यह करना है। और हमारा दिल उसके लिए तैयार नहीं होता है। फिर हमे लगता है की काम जरूरी है। उसे किसी हाल में करना है तब हमे इच्छशक्ति की जरुरत होती है। जब हम किसी काम को करने के लिए प्रेरित होते है,तो सब बदल जाता है। प्रेरणा हमे भीतर से जोश देती है,वह हमारे अंदर एक चिंगारी सुलगा देती है। तब हमारा दिल पूरी तरह हमारे साथ होता है उसी प्रेरणा की वजह से दिल और दिमाग एक हो जाते है। हम तब जो भी काम करते है,वह अपने आप बहाव में आ जाता है। और हम जानते है की जो काम हम बह कर करते है,वह कितनी तेज़ी से होता है।

बिना शर्त ख़ुशी।

सफलता की ख़ुशी ,साहस से कुछ हासिल करने की खुशी , परोपकार करने की ख़ुशी ,और सबके प्रति विनम्रता से जो ख़ुशी मिलती है इन सब खुशियो को हम भूल गए है। हम अपने अपने अंदर मौजूद ख़ुशी को ढूढ़ने के लिए ज्योतिषियो ,तान्त्रिकों और मांत्रिको के दरवाजे खटखटाने में लगे हुए है। ख़ुशी की हमारी यह खोज उनका कारोबार बढ़ा रही है। जो व्यक्ति आनंदित और तनावमुक्त रहेगा ,वह उतनी ही जल्दी मनचाही चीजो को प्राप्त कर लेगा। बात बात में हताश निराश होने वाले लोग जीवन में बहुत पीछे छूटते चले जाते है। आनंद के समय में आपकी जीवन ऊर्जा काम केंद्र से ऊपर मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होने लगती है। जबकि निराश के moment में मूलाधार की ओर जाने लगती है। यानि जो कुछ शाक्ति हैं आपकी वह विसर्जित होकर शरीर से बाहर चली जाती है। जिसने  भी शर्त लगाई है,वह शर्तो के चंगुल में फंसकर रह गया है। खुश रहना हमारी आदत में शामिल होना चाहिए था,जबकि उसकी जगह हताशा निराशा आकर बैठ गई है। खुश रहना सन्देह का कारण बनता जा रहा है। यह नजर्ये

Sunday 30 July 2017

बहस ही तो है।

बहस भी क्या चीज है? हम बहस करते है और मजा लेते है। कभी कभी हम बहस तो कर जाते है, लेकिन अपना मूड बिगाड़ बैठते है और मूड है की फिर लाइन पर नहीं आता । हम किसी के साथ होंगे या काम करेंगे तो बहस होगी ही। लेकिन वह हम पर इतनी हावी नहीं हो जानी चाहिए की हमारा पूरा दिन ही बर्बाद जाये। हम बातचीत करते है। कभी कभी बहस में बदल जाती है हम अपनी बात कहते है वह किसी को आहत कर जाती है।फिर कभी उसके उलट हम आहत हो जाते है । हम जब किसी बहस में आहत होते है।हमारा सारा मूड चौपट हो जाता हैं। फिर तो हमारा किसी काम में मन नहीं लगता। हम कोई काम आगे बढ़ा नहीं पाते । उस वक़्त हमे ठीक से सोचने की जरुरत होती है। आखिर एक ही ख्याल के साथ हम बहुत देर तक चिपके भी नहीं 

जीवन संघर्ष नहीं सहयोग है।

अधूरेपन का सम्मान जरुरी है जिंदगी का पूरा मतलब है अधूरापन। ऐसा कोई नहीं है, जिसे अपना मनचाहा मिल सकता हो। यहाँ तक की बुद्धि से परे पशु पश्चियों को भी वह हासिल नहीं होता , जिसकी खोज में वह होता है। हम लाख योजनाओ की तयारी करे फिर भी विफलता को सार्थक रूप में समझने की तैयारी अधूरी ही है। आपने जो चीज पाई है, उसके प्रति श्रद्धानत हो, तो जीवन की सार्थकता महसूस हो सकती है। अपने पाये खोये का हिसाब करने बैठे तो इस बात पर ध्यान फोकस करे की वह क्या है, जो आपको मिला तो आपकी आँखों में चमक आ जायेगी? पता चलेगा की आपके हिस्से बहुत कुछ है,जो दुसरो के पास नहीं है। हमे खोये को भूलने की कला आनी चाहिए और पाने के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिए।

Commitment यानि दृढ़ इच्छा


  1. कामयाबी उसे हासिल होती है,जिसमे target प्राप्त करने की दृढ इच्छा होती है । आपकी कामयाबी आपके विचारो व फैसलो का परिणाम होती है। वचनबद्धता आपके दिमाग में target के प्रति दबाव ,अनुभव,अनुराग व उत्साह पैदा करती है। यह ताकत आपको कामयाबी की ओर कदम बढ़ाने को प्रेरित करती है। दरअसल , target के प्रति वचनबद्धता आपको एक target के लिए काम करने को बाध्य करती है। यह आंतरिक सकती है, जो व्यक्ति के अंतर्मन से उत्पन्न होती है। वास्तव में commitment एक बंधन है। यह अदृश्य दबाव है। चाहत व दृढ विश्वास में काफी अंतर है। जहा चाहत की दिशा बदल सकती है वही दृढ़ विश्वास अपनी निर्धारित दिशा में कायम रहता है। इंसान के जीवन की क्वालिटी उसके बेहतर काम करने की commitment पर depend करती है, फिर चाहे उसका कार्यक्षेत्र कुछ भी क्यों न हो।

चुप रहने का जादू।


  • मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र है। मौन के बाहर की दुनिया मन की दुनिया है। संसार में जितने भी तत्व ज्ञानी हुए है , सभी चुप रहने को एक मंत्र की तरह अपनाते है। बुद्ध ने वर्षो तरह तरह के उपाय किये किन्तु सत्य नहीं मिला। अन्ततः वह मौन के सरोवर में डूबे और सत्य का मोती पा लिया। सोमवार को महात्मा गांधी केआश्रम में मौनवार होता था। गाँधी के लिए मौन एक प्रार्थना थी। यह उन तक मानसिक सुख लेकर आता था। मौन की जादुई शक्ति के कारण कई जगह अब सामूहिक मौन के कैम्प लग रहे है।हमे तो अपने अपने तरीके से एकांत में डुबने की कला सीखनी चाहिए। इसकी पहली सीढ़ी यही है की बेवजह प्रतिक्रिया न दे। चुप रहना सीखे। खुद में उतरना सीखे । बोले तभी जब जरुरी हो और बोल ऐसे हो, जिसे सुंदर कहा जाये।

सोचने का सलीका।

जो अपने पास है, लोग अक्सर उसे भूल जाते है, जो नहीं  है, उसके लिए बेचैन रहते है उसके बारे में सोच सोचकर परेशान रहते है। कुछ लोग जब भी कुछ सोचते है, तो सोचने के नाम पर सिर्फ चिंता करते है। कुछ की सोच किसी ईर्षा की मंजिल पर जाकर ख़त्म होती है। सोचना जरुरी है, पर जरुरी नहीं की हर तरह की सोच आपको सकारत्मक दिशा में ले जाये। सोचना एक कला है। जब कोई अच्छी तस्वीर या फ़िल्म देखता है, तब उसके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय वह अपने मन में ही ख़ुशी व संतुष्टी का अनुभव करता है। अपनी सकारत्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते है, तो रोज समय पर नियमित रूप से ध्यान करे या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करे या फिर कोई गेम खेले। अगर आप अपने चिंतन में लचीलापन संतुलन सहजता ,आशावादिता रखते है, तो आपकी सोच सकारात्मक होगी। सकारात्मक सोच आपके दिमाग को समाधान और नकारात्मक सोच समस्या के रास्ते पर ले जाती है। अगर आप किसी इंसान से मिले ,तो उसकी विशेषताओं का अनुकरण करने की कोशिश कीजिये। इससे आपके दोष अपने आप दूर होते जायेगे,जैसे पेड़ के सूखे पत्ते अपने आप झड़ जाते है।

Saturday 29 July 2017

आदत से मजबूर


  • कहते है की हमारी आदतें हमारे मूल्य बनाती है और हमारे मूल्य हमारा भाग्य। इसलिए बचपन में हमे यह सीख दी जाती है की अच्छी आदतें और अच्छा संग रखो , तो जीवन सफल हो जायेगा, अन्यथा सारी जिंदगी घूमना पड़ेगा। हम सबके अंदर अच्छी व बुरी आदतें मौजूद होती है, फिर चाहे कोई अमीर हो या गरीब ,पर आदत तो सभी ने अपने अपने स्वभाव के अनुसार पाल रखी है।  आदत से मजबूर किसी व्यक्ति को अपनी आदतो से निजात पाने के लिए अपने किसी प्रियजन या फिर मनोचिकित्सक की मदद की आवश्यकता पड़ती हैं , क्योकि वह अपनी आदतो की चपेट में इस कदर फंसा होता है की उसे बिना किसी की मदद के उस दलदल से बाहर निकलना नामुमकिन सा हो जाता है। किन्तु मदद लेने की इस चेष्टा में हम यह भूल जाते है की मनोचिकित्सक भी तो आखिर हमारी ही तरह एक इन्सान है, जिनके जीवन में भी कई भावनात्मक  उंच नीच और आधातजनक प्रसंग आते है। ऐसे में जब तक कोई व्यक्ति अपने भीतर खुद की मदद करने की एक मजबूत इच्छा शक्ति जाग्रत नहीं करता तब तक कोई प्रियजन या मनोचिकित्सक उसे अपनी आसंकओ व भय से मुक्त नहीं करा सकता। इसलिए पहले खुद की मदद करना आरम्भ करे, ताकि फिर दुसरो की मदद कर सके।

Friday 28 July 2017

गोल बिना खेल।

हम जीते तो है, लेकिन किसलिए और क्यों इसके बारे में सोचते तक नहीं । कोई पूछे तो हम चौक कर सोचने जरूर लगते है। लेकिन बहुत सारे ऐसे भी लोग है। जो अपने आस पास के लोगो की समस्याओं से जुड़ते है और सुकून पाते है। यदि तुम सुखी होना चाहते हो तो  सबसे पहले अपने आस पास के उनलोगो  को देखो जो दुखी है, असांत है परेशान है। उनके पास जाओ और

Tuesday 25 July 2017

वादा करे पर जरा सोच समझकर

शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा अगर उस दिन रसोईं में नहीं जाती ,तो शायद हिंदुस्तान की तस्वीर अलग होती । एक  राजा की बेटी को रसोई में जाने की दरकार की क्या? खैर जहाँ आरा उस दिन रसोई में चली गई और गरम पानी उसके सरीर पर गिर पड़ा । फूल की तरह नाजुक जहाँआरा का शरीर जल गया।बादशाह ने हर संभव इलाज कराया,लेकिन बेटी के शरीर पे पड़ा निशान जा नहीं रहा था।किसी पिता के लिए इससे दुःख की बात क्या ही सकती थी। बादशाह ने कई जगहों पर पता कराया की कही कोई हो, जो जहाँआरा की जिंदगी फिर रोशन कर दे। बड़ी मशक्कत के बाद पता चला की सूरत के पास कोई अंग्रेज डॉक्टर आया है, जो जले का इलाज कर सकता है। बादशाह ने सारे घोड़े सूरत की दिशा में दौड़ा दिए । डॉक्टर हाज़िर हो गया और शुरू कर दिया इलाज । जहाँआरा ठीक हो गयी , बादशाह खुश हो गया । खुश बादशाह कुछ भी कह सकता था। कुछ भी दे सकता है । उसने डॉक्टर से कहा , जो चाहो मांग लो। डॉक्टर सोच में पड़ गया। बहुत सोच समझकर उसने कहा की उसे कुछ नहीं चाहिए। फिर भी आप कुछ देना चाहे ,तो जो अंग्रेज भारत में व्यापार की मंशा लेकर आये है, उन्हें सूरत में फ्री ट्रेड की छूट दिला दे । बादशाह के लिए यह कौन सी बड़ी बात थी। उसने कहा तथास्तु ...और भारत का भविष्य गुलाम हो गया । 

Monday 24 July 2017

खुद से प्रेम करो।

अगर आप खुद से प्रेम करे तो दूसरे भी आपसे प्रेम करने लगेंगे। उन लोगो को कोई प्रेम नहीं करता है जो खुद को नहीं चाहते है। अगर आप खुद को ही प्रेम नहीं कर सकते है, तो कौन दूसरा मुसीबत मोल लेना चाहेगा?  कुछ चीजे है जो अनुबव से ही जानी जाती है । उसे जानने का कोई और रास्ता नहीं होता है इसे प्रयास और गलतियों से ही सीखा जाता है प्रेमी बनने का यह मतलब नहीं की तुम एक-दूसरे के मालिक हो गए ,तुम केवल साथी दोस्त हो। जब आप किसी में अपने प्रेम का निवेश करते हो  तो आप घृणा का भी निवेश करते हो क्योकि घृणा और प्रेम एक सिक्के के दो पहलु है। प्रेमी लड़ते ही है वे अन्तरंग शत्रु होते है और जब दो प्रेमियो के बीच में लड़ाई समाप्त हो जाती है तो प्रेम भी ख़त्म हो जाता है। प्रेम का जनम होता है स्वतन्त्रता की भूमि में जहा कोई बंधन नहीं,जहा को जबरजस्ती नहीं है जहा कोई कानून नहीं है।  प्रेम करना और प्रेम चाहना यह बड़ी अलग बातें है जो प्रेम चाहता है वह दुःख झेलता है।  सम्बन्ध तभी बनाओ जब तुम किसी के प्रेम में हो। प्रेम एक उच्चतर स्थिति है।

डर का जंजाल।

  1. आपने कई बार लोगो के मुह से सुना होगा न जाने क्यों डर सा लग रहा है कई लोग खुले स्थान पर जाने से घबराते है। कुछ लोग तूफ़ान से डरते हैं कुछ लोगो को डॉक्टर ,दवा, अस्पताल के नाम से पसीना छुटने लगता है। डर ऐसी बीमारी है जिसका ग्रीक भाषा में फोबिया कहते है जिसका अर्थ डरना होता है। इसी तरह हैड्रोफोबिया होता है हैड्रोफोबिया भी एक बीमारी है इसमें पानी से डर लगने लगता है और कॉकरोच, छिपकली, चूहे से डर लगता है। इसी तरह सोशल फोबिया भी एक बीमारी है यानी सामाजिक भय इसमें इंसान जनता के बीच नहीं बोल पाता है दुसरो के सामने लज़्ज़ा करता है,असहाय महसूस करता है। इस तरह लोगो के अंदर डर रहता है की कही सबके सामने हँसी के पात्र न बन जाये। ईर्ष्या से फोबिया होता है। ऐसी स्थिती में सर या कमर दर्द, तनाव, उदासी सामान्य आदतें हो जाती है। फोबिया एक ग्रीक शब्द है ।

Saturday 22 July 2017

वास्तविक सुंदरता।

व्यक्ति की सुंदरता तो उसके गुणो से प्रतीत होती है। यही कारण है की जब देवी देवता के सुन्दर चित्रों को देखते है, तो न चाहते हुए भी उनके विविध चरित्र हमारे सामने आ जाते है । मनुष्य आज के जमाने के नाम पर चारित्रिक पतन के नए  नए तल बनाता जा रहा है। एक तरह काम वासना की आंधी ने उसके मन को विकृत करके बेचैन और  अशांत कर दिया है, तो दूसरी तरफ क्रोध और अहंकार ने विद्वानों  की बुद्धि पर काला पर्दा डाल दिया है। जब चरित्र सुंदर होगा तभी चित्र(शरीर) भी सुंदर मिलेगा । अपने उच्च चरित्र के निर्माण के लिए समस्त विकारो को परमात्मा की याद रूपी दिव्य किरणों से भस्म करके अपने चरित्र के इत्र से चारो ओर अच्छे कर्मों की सुगंध प्रवाहित करे

बात अनसुनी करना।


  • यह एक महामारी है। ऐसी महामारी जो सदियो से जारी है। महात्मा और विद्वानों का सबसे  बड़ा लक्षण है- चीजो को ध्यान से सुनना । यह चीज कुछ भी हो सकती है। कौवो की कर्कश आवाज से लेकर नदियो की छलछल तक। हम सुनना चाहते नहीं। बस बोलना चाहते है।हमे लगता है की इससे लोग हमे बेहतर तरीके से समझेगे। हालाँकि ऐसा होता नहीं। जिन घरो के अभिभावक जयादा बोलते है वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है। क्योकि ज्यादा बोलना बातो को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दो की चक्कर में फसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनोपचारिक दोनों स्थिती में हम दूसरे की न सुन , बस हावी होने की कोशिश करते है। खुद ज्यादा बोलने और दुसरो को अनसुना करने से जाहिर होता है की हम अपने बारे में ज़्यादा सोचते है और दुसरो पर कम। ज़्यादा बोलने वालो के दुश्मनो की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते है तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोले और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते है तो दुश्मनो से कम बोले । "लोगो को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला की जयादातर अमेरिका नागरिक उनके सुख में सुखी होते थे, उनके दुःख में दुखी। "

Friday 21 July 2017

दिलों की बातचीत।

आप लोगो के साथ क्या बात करते है, इसमे कही अधिक महत्वपूर्ण है की आप कैसे बात करते है- संबंधो में जो बातचीत होती है उसमे से केवल 8% शब्दो द्वारा होती है और 92% नि: शब्द होता है। नि:शब्द का अर्थ है- चेहरे के हावभाव( bodylanguage)  हर व्यक्ति शब्दों पर ध्यान देता है, नि: शब्द पर नहीं। इसलिए कलह बढ़ती ही चली जाती है, कलह को शांति में बदलना हो, तो हमे बातचीत की कला को सीखना होगा। थोडा दूसरे का ख़याल , उसकी भाव दशा के प्रति संवेदनसीलता , उसकी मन: स्थिती  के बारे में सहानभूति । किसी भी संघर्ष में 50%  matter बातचीत से हल हो जाता है,यदि लोगो को उनकी बात कहने का मौका दिया जाए और उन्हें दिल से सुना जाये। दूसरा जब बोल रहा हो तो उसे बीच में टोकना नहीं, उसका मूल्यांकन नहीं करना और भीतर ही भीतर असहमत नहीं होना। यानि आप दिल खोलकर दूसरे व्यक्ति को अपने भीतर प्रवेश करने की इज़ाज़त दे रहे है। दो दिलो के बीच कभी संघर्ष नहीं होता है। हा दो दिमागों के बीच अवश्य होता है। 

Tuesday 18 July 2017

हमेशा क्रियाशील रहे।

जल यदि एक ही  स्थान पर स्थिर रहे, तो वह मलिन हो जाता है। वही जल जब प्रवाहित होने लगता है, तो स्वच्छ हो जाता है। क्रियाशील रहने वाला व्यक्ति शिशु की तरह सोता है और सिपाही की तरह जगता है। हमारी प्रकृति श्रम करने वालो की पुजारिन है। जो जितना क्रियाशील है, वह उतना ही स्वस्थ और सुडौल है। जैसे हिरणी चौकड़ी भरता है, नीलगाय तेज़ दौड़ती है, अश्व  जीवनपर्यंत भागता है, पंछी उड़ान भरने के लिए पंखो से निरंतर व्यायाम करती है, गाय भैंस ,भेड़ , बकरी दिन भर घूम घूम कर घास खाती है, इनकी यही क्रियासीलता इनके स्वस्थ का मूलमंत्र हैं।  कंप्यूटर के आगे घंटो बैठे रहना , डनलप के गद्दों पर लेटना , मोटे तकियों के सहारे बैठना , काम के लिए दुसरो पर निर्भरता , कही जाने के लिए वाहन का प्रयोग , देर रात सोना, समय से उठना नहीं ,टहलना नहीं,कोई परिश्रम नहीं इन सबसे मनुष्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है,जो बुढ़ापे को आमंत्रित करता है।  हाथ पाव नहीं हिलाये तो प्रकृति ऐसा सजा सुनाएगी, जिससे सरीर की क्रियाशीलता  ही ख़त्म हो जायेगी । इसलिए तंदरुस्ती चाहते है तो आज ही क्रियाशील बनिए। प्रतिभा का विकास शांत वातावरण में होता है और चरित्र का विकास मानव जीवन के तेज़ प्रवाह में। 

जीत न हार।

ऐसा भी मुक़दमा या खेल हो सकता है, जिसमे किसी की जीत न होती हो?  इस बात पर हम सिर्फ हँस सकते है। लेकिन जिंदगी में एक ऐसा भी खेल है। जिसमे किसी की भी जीत या हार नहीं होती है। एक सामान्य व्यवहार है, हमे दुसरो के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम दूसरो से चाहते है। परन्तु जब सामने वाला आदमी निष्पछ खेल की संहिता का उलँघन करता है , तो हम नाराज हो जाते है। हम बदला लेना चाहते है, लेकिन इस बदला लेने वाले खेल में  क्या किसी की जीत होगी?  जब हम बदला लेने के बारे में सोचते है, तब इस बात पर गौर करना भूल जाते है।  प्रतिशोध  की यह भावना हमारे अंतर्मन में कही न कही छिपी चिंगारी की तरह दबी रहती है, जैसे ही अवसर मिलता है , झट बाहर निकलकर बदले की आग में बदल जाती है। जैसे आम जिंदगी में चाहे अधिकारी की कुर्सी पर  बैठे लोग हो, पति पत्नी में तलाक के बाद हिसाब चुकता करने की मानसिकता हो, सड़क दुर्घटनाओं में भी यह मानसिकता काम करती है। किसी ड्राईवर को दूसरी गाड़ी वाला कट मारता है और उसे गाड़ी सड़क से नीचे उतारनी पड़ती है।अब वह ड्राईवर कट मारने वाले को सबक सिखाना चाहता है। नातीजा दुर्घटना के रूप में सामने आता है।  यह खेल घाटे वाला है। वक्त की बर्बादी , धन की बर्बादी और चित्त की बर्बादी। इस सबका इलाज एक ही है, जिसके लिए महाभारत में वेदव्यास कहते है, क्षमा और दया जीवन के ऐसे गहने है, जिसे पहनने वाला सबका प्यारा बन जाता है। पूरा जीवन ही सुंदर हो जायेगा। 

Monday 17 July 2017

उम्मीद का साथ।

सौ बार भी हार मिले अगली बार फिर उठेगे । इस उम्मीद से की जीत अवश्य होगी। यह उनके जीवन का मूलमंत्र है। वे एक सफल आदमी है जिनके लिए उम्मीद करना और उम्मीद रखना दोनों महत्वपूर्ण है। दरअसल खुद से उम्मीद रखना और दुसरो की उम्मीदों पर खरा उतरना जीवन का धेय होना चाहिए अगर उम्मीद से परे हटकर आप न्यूट्रल गेयर में जीवन गुजार रहे हो तो तय है की आप अपने काम को चलताऊ तरीके से ही करेगे।  हर व्यक्ति तीन चीजो की उम्मीद जरूर लगाये रखता है -प्रीतम का सहचर्य , अतुल सम्पति और अमरता ।जहा जिंदगी है वहाँ उम्मीद है और अगर आप उम्मीद नहीं रखते हो तो इस जीवन का क्या अर्थ ? विचार से अधिक विश्वास की शक्ति है, और जिस चीज का हमे विश्वास हो,उसकी हम उम्मीद करते है । ना उम्मीदी सबसे पहले साहस और सामर्थ्य कम करती है और फिर हमारा व्यक्तित्व  सन्देहसील और आसंकित बना डालती है। उम्मीद और सपने उसे वह सब देते है है जिसके लिए वह दुनिया में आया। लेकिन कोरी उम्मीद से बात नहीं बनती । सवाल यह है की आपका जीवन उस मानसिक साँचे में ढाल रहा है या नहीं, जिसकी आप उम्मीद कर रहे है?आप हाथ पर हाथ धरे बैठे तो नहीं है?

Sunday 16 July 2017

मौन वाणी

कहते है जो समझदार होता है वह कम बोलता है । अनुभव बताता है क़ि मौन कई बार बहुत बड़ी परेशानी से बचा सकता है। इसके उलट अगर कोई आदत से मजबूर होकर एक के बदले दस जवाब देता है और कहता है की मैं चुप क्यों रहूँ किसी से दबकर क्यों रहूँ , तो बहुत बड़ी मुसीबत में फस सकता है। अक्सर लोग वाणी के विराम को ही मौन समझते है। लेकिन किसी व्यक्ति के मन में संकल्पों की उथल पुथल हो रही हों , किसी अन्य व्यक्ति के प्रति उसके मन में द्वेष भावना का ज्वार भाटा उठ रहा हो या उसके भीतर कोई और वासना धधक रही हो तो क्या यह मौन कहा जायेगा ? कहते है पानी सा रंगहीन नहीं होता मौन , आवाज की तरह इसके भी हज़ार रंग होते है । मन और वाणी  दोनों का शांत होना ही पूर्ण मौन कहा जाता है। मुख के मौन को बाह्य मौन कहा जाता है तथा मन का मौन अन्तः मौन । एक कहावत है-मीठा बोलना सुखकारी है, उतना ही कम बोलना भी लाभकारी है। पर हमे यह समझ भी होनी चाहिए की जहा मौन रहना चाहिए , वहाँ बोलकर अपने लिए झमेला कभी भी खड़ा नहीं करना है। मौन हमारे मस्तिष्क के सभी इंद्रियों को संयमित रखता है। चुप रहने से वाणी और वाणी के साथ खर्च होने वाली मस्तिष्क की शक्ति संचित होती है। तभी तो कहा गया है की जो व्यक्ति अपने मुख और जबान पर संयम रखता है वह अपनी आत्मा को कई संताप से बचाता है। मौन में रहकर ही हम जीवन जगत के गूढ और सत्य पहलुओं का साक्षत्कार कर सकते है। 

खुशियो का खजाना।

अक्सर बुजुर्ग कहते है की पैसे से चीजे खरीदी जा सकती है, ख़ुशी नहीं,आप इस बात से सहमत होते हुए भी इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाते है। वास्तव में ,ख़ुशी आपके मन की अवस्था है, जिसमे आप पूर्ण होने का अनुभव करते है। 3-डी यानी desire-इच्छा dicision-निर्णय do-काम में ही ख़ुशी मिलती है । आप इस फ़िक्र में मत रहिये की कौन क्या करता है या सोचना है खुद तय करे की आपका मन क्या करना या पाना चाहता है फिर निर्णय लीजिए और अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाइये ।खुशियां ढूढ़ने से नहीं मिलती , खुद को पा लेने के एहसास से मिलती है। दरअसल, खुद की तलाश यानि अपनी शख्सियत को आकलन कर पाना मुश्किल काम है। यह एक ऐसा एहसास है, जो आपकों यह बताता है की आप अपनी प्राथमिकता , इच्छा, आकांक्षा के अनुरूप काम करे, इसकी बजाय दुसरो के जीवन में ताक झांक करे या दूसरो की नक़ल करे। जब आप अपना विश्लेषण करते है और किसी निर्णय पर पहुच जाते है तब आप आत्मसंतुस्ट और आत्मशांति के परिवेश में निवास करने लगते है। आपको एहसास होगा की रुपए गिनने वाला बैंकर की बजाय फूल पौधे सीचने वाला माली जयादा खुश नजर आता हैं। 

जरुरी क्या है।

दिन भर की थकावट फिर भी ख़ास कामो का छूट जाना। हमे सबसे पहले यह तय करना चाहिए की हमारे लिए सबसे जरुरी क्या है?  उसके बिना हम अपना बेहतर नहीं दे सकते । हम क्या क्या करते रहते है? खुद को उलझाये रखते है । बड़ा भारी व्यस्त समझते है। हम ऑफिस में भी उलझे रहते है । घर पर भी कही ऑफिस चल रहा होता है। लेकिन रात में सोते हुए जब सोचते है तो कोई खुशनुमा एहसास नहीं होता । हमे लगता ही नहीं की कोई सार्थक काम किया है। जिंदगी में हमे हर चीज चुननी पड़ती है यह चुनाव ही हमारी क़ामयाबी और नाकामयाबी का सबब बनता है। अक्सर हम चुनने में गच्चा खा जाते है काम करते रहते है लेकिन चुन नहीं पाते है। इसलिए काम करते है , उलझे ज्यादा रहते है । एक किस्म का मशीनी अंदाज हो जाता ही हमारा । यह सही है की हमारे पास तमाम तरह के काम होते है। काम की अपनी अहमियत है।समय की अपनी है। हमे काम और समय दोनों को साधना होता है। दोनों को साधने के लिए चुनाव करना बेहद जरुरी है । बिना चुने हम उनकी साधना कर ही नहीं सकते है। सो , हमे अगर जिंदगी में बेहतर करना है, तो हर काम में पिले नहीं रहना है। हमे अपनी प्राथमिकता तय करनी हैं  अगर हम उसे नही तय करते है। तो जिंदगी खुद हमारे लिए कुछ तय कर देगी। और शायाद वह हमे अच्छा ना लगे।

Saturday 15 July 2017

नीले गगन के तले।

सभी जीवो को समान रूप से जीने का हक़ भी मानते थे। वह चाहते थे की इंसान अपने स्वाद या स्वार्थ में अँधा होकर किसी दूसरे जीव का हक़ न  मारे। 

जुबान पर लगाम।

जुबान में एक भी हड्डी नहीं होती है, लेकिन हड्डियां सबसे जयादा यही तुडवाती है। शरीर में चीनी बढ़ रही है लेकिन लोगो की जुबान कड़वी होती जा रही है। अच्छा सुनने से ही अच्छा बोलने की आदत बनती है। जीभ पर सरस्वती का वास होता है। संयम को भारतीय परंपरा जीवन के रूप में देखती है।

गुस्से को पीना।

गुस्सा भी एक ऊर्जा है इसलिए गुस्से को पी जाना चाहिए कुछ दिनों में आप देखेगे की इतनी शक्ति अर्जित कर लेंगे और आपके पास इतनी ऊर्जा इकठ्ठी हो जायेगी जिसका हिसाब नहीं। अगर प्रतिरोध किया या उल्टा जवाब दिया तो आपकी ऊर्जा रिस जायेगी और व्यर्थ हो जायेगी।

पश्च-विपश्च

दोनों एक दूसरे की न केवल कमिया खोजते है, बल्कि एक दूसरे पर प्रहार भी करते है। जब भी हम संकट में पड़ते है , तो घबराकर हल ढूढ़ने की बजाय किसी और के दरवाज़े पे दस्तक देने लगते है। विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करना, उन पर आधी विजय हासिल करने जैसा है। जो खुद को साध लेता है वह हर प्रश्न का उत्तर खुद से ही पूछ लेता है । लेकिन इसके लिए स्वयं पर भरोसा

Friday 14 July 2017

बुद्धि का केंद्र

  • अक्सर बुद्धि को व्यक्ति के मस्तिष्क से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन नवीन विज्ञान ने यह बात सिद्ध की है की बुद्धि केवल मस्तिष्क तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि शरीर के सभी अंग सोचते है। सकारात्मक बदलाव से व्यक्ति का शरीर खिल जाता है और ताजगी से भर जाता है इससे यह भी पता चलता है की बुद्धि का केंद्र केवल मस्तिष्क ही नहीं बल्कि हमारे शरीर के सारे अंग है। मनुष्य के लिए मानसिक विकास ही काफी नहीं , उसे पुरे शरीर के विकास पर ध्यान देना चाहिए। 

माफ़ करने की महानता

यह भ्रम मन से निकाल दीजिये की माफ़ी माँगने का मतलब कही पर छोटा हो जाना है अपमान है आदि। माफ़ी माँगने का मतलब है की कही आपमें अधिक वैचारिक परिपक्वता है। माफ़ी वही मांग सकते है जो स्वयं महान है। माफ़ी भी सम्मान के साथ मांगिये किसी के पैरों में गिरने की जरुरत नहीं है यह ध्यान रहे की आप बिगड़ी बात बनाने की कोशिश कर रहे है इसलिए आदर के पात्र है। गलती सुधारने का एक ही तरीका है खुले तौर पर अपनी गलती को स्वविकार कर लेना। जब आपको यह विश्वास हो जाये की माफ़ी मांगनी चाहिए तो यह काम तुरंत कर डालिये जितनी देर होगी यह काम उतना मुश्किल मालूम होने लगेगा कभी कभी तो देरी इसे लगभग असंभव बना देती है

झूठ और सच का खेल।

  • सामाजिक सभ्यता सदा कहती है सच बोलो मनोवैज्ञानिक मानते है की झुठ बोलना इंसान की एक मजबूरी बन गया हैऔर वह इसे आदत में सुमार कर चुका हैं । आज अधिकतर लोग सच बोलने से कतराते है और जूठ बोलने में अजीब ख़ुशी का अनुभव करते है।  लोग प्रायः उन्ही चीजों के बारे में झूठ बोलते है, जिनसे वे अच्छा महसूस करना चाहते है। जब हम किसी चीज को करना चाहते है और नहीं कर पाते है तो उसके सामने झूठ बोल जाते है  झुठ हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है जैसे ही लोगो के स्वाभिमान को चोट पहुँचती है वे ऊचे स्वर में झुठ बोलना शुरू कर देते है

नए रस्ते पर।

जो व्यक्ति नया रास्ता बनाता है । वही नयी मंजिल पाता है  जो लोग पुरानी चीजो रीतियों विचारो से बंधे रहते है उन्हें मौलिक काम से डर लगता है ।परंपरा रीती रिवाज वही तक सार्थक है जहा तक वे सफलता की प्रेरणा देते है । परंपरा जब गले की फांस और कार्य की रुकावट बन जाये तो बेहतर है की उसमे मौलिकता लाई जाये।  व्यक्ति की सफलता उसके व्यक्त्तिव  और मौलिक विचारो का प्रतिफल होती है । आधुनिक जीवन की सुख सुविधाये और ऐश्वर्य उन्ही व्यक्तियों के दिमाग की विलक्षण का परिणाम है, जिन्होंने पुराने ढंग को त्याग दिया है।

Thursday 13 July 2017

5 बातें बनाएगी मन को मजबूत।

मन से मजबूत लोग स्वस्थ आदतें रखते है। वे अपने इमोशन्स , विचार ,और व्यवहार को नियंत्रण करना जानते है।  यहाँ 5 बातें ऐसी है मन को मजबूत बनाएगी। 1, सॉरी फील करने में टाइम बर्बाद न करे।2,दुसरो की नजर से खुद का आकलन न करे।3, व्यर्थ कामो में ऊर्जा खर्च न करे।4, अकेले होने से डरनानही चाहिए।5,दुसरो की सफलता में खुश होना।

दिमाक को आराम देने के तरीके।

किसी भी काम को पुरे मन से करे। काम के बीच में छोटे छोटे ब्रेक ले। हर समय खुद का आकलन ना करे । खुद को अनावश्यक ना थाकाये व पूरी नींद ले। कुछ देर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूर रहे। 

Wednesday 12 July 2017

विचारों का प्रबंधन।

कहा जाता है की जैसे हमारे विचार होते है, वैसा हमारा आचार होता है। विचार किसी बीज की तरह होते है जो या तो सकारत्मक या नकारात्मक हो सकते है। ज्यादा सोचना बहुत ज्यादा खाने के सामान है। उसी तरह ज्यादा सोचने से हमारा मन भारी हो जाता है। जो हम सोचेगे अंततः वही हमारे मुख से निकलेगा । 

डर से छुटकारा।

खुद को बदलने या नया सीखने में एक किस्म का डर छिपा रहता है। दर असल , बदलने के लिए हमे कुछ  छोडना पड़ता है। कुछ जोड़ना पड़ता है। कुछ सीखना भी पड़ता है। हम अपने को बदलने के लिए कितना गम्भीर है ? उसी से सारी चीजें तय हो जाती है। कुल मिलाकर , हमे ठोस कदम उठाने होते है। सो, किसी भी बदलाव के लिए हमे एक कदम तो बढ़ाना होता ही है। हमारी जिंदगी के लिए वह कदम अहम् हिट है। अब वह कदम बिलकुल ठीक होगा, यह हम कैसे कह सकते है?  लेकिन 

बेखुदी के पल।

खुद को भूल जाना एक अद्वितीय अनुभव है। जो इश्क़ में होते है, वे थोड़ी देर इस हालत में जरूर होते हैं। बेखुदी में सनम ,उठ गए जो कदम। जब आप अपने होने को भूल जाते है, तभी दुनिया को अपना सर्वोत्तम देने और दुनिया से उसका सर्वोत्तम पाने की स्थिति में होते है। स्व के पार जाने की स्थिति को आजकल फ्लोस्टेट कहा जाता है। इसे एकाग्रता की चरम स्थिति के तौर पर देखा जाता है।  ऐसा कोई भी काम, जिसमे कल्पना भाव और एकाग्रता की जरुरत हो, बगैर फ्लो स्टेट पूरा नहीं हो सकता है। 

असफलताओ से डरना क्यों?

जीवन की हर विफलता के साथ हम सफलता के एक कदम और करीब आ जाते है। जितनी आप मेहनत करने जाते है मुश्किले उतनी ही आपके सामने झुकती जाती है। विफलता केवल यह सिद्ध करती है की हमने सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया। तो चलिए आज से प्रत्येक विफलता के साथ कुछ सीखे और उससे प्राप्त बहुमूल्य अनुभवो से अपने जीवन को सम्रद्ध करे। क्योकि जो अपनी राह बनाता है, वही सफलता के शिखर पर पहुँचता है, पर जो औरो की राह ताकता है,सफलता उसके मुह दूर तक ताकती है। कमजोर तब रुकते है , जब वे थक जाते है, और विजेता तब रुकते है जब वे जीत जाते है। 

Tuesday 11 July 2017

अनजान राहो पर।

हमे अनजान राहो से प्यार करना चाहिए। उससे डरने की कोई जरुरत नहीं है। कामयाबी अजीब सी चीज है हमे लगता है की कही टिके रहने में ही हमारी कामयाबी है। वह एक मायने में नाकामी भी हो सकती है। कभी हमे लगता है की उखाड़ा जा रहा है या साजिस ले तहत कही भेजा जा रहा है। लेकिन उसी में हमारी कामयाबी हो सकती है। हम जिन रास्ते को नही जानते उससे गुजारना नहीं चाहते। हम उसे लेकर संकित होते हैं। यही हमारे मन में डर भी जागती है लेकिन हमे अगर कायदे की जिंदगी जीनी है तो नई राहो पे चलना ही होगा। 

उम्मीद।

जयादातर व्यक्ति तीन चीजो की उम्मीद लगाये रखता है 1, प्रियतम का सहचर्य 2, अतुल संपत्ति 3,अमरता। विचार से आधिक विश्वास की सकती हो,उसकी हम उम्मीद करते है। नाउम्मीदी सबसे पहले साहस और शक्ति कम करती है। और फिर हमारा वयक्तित्व सन्देहसील बना डालती है। आदमी जंग लगने के लिए पैदा नहीं हुआ है। उसे उसकी क्रियाशीलता बनाये रखती हैं। उसे उम्मीद और सपने उसे वह सब देते है जिसके लिए वह दुनिया में आया है लेकिन कोरी उम्मीद से बात नहीं बनती है।

आत्मज्ञान का रहस्य।


  1. जब मैं खाता हूँ, तो खाता हूँ और जब मै सोता हूँ तो सोता हूँ।यही वह एकाग्रता है जिसे सदियों से हम ध्यान कहते है। आप जो भी करे , उसमे पूरी तरह तल्लीन हो जाये।100% समर्पण । इसी सिद्धांत पर चलते हुए अर्जुन ने मछली की आँख पर निशाना साधा था। आज लोग एक वक़्त में कई काम करते है,वह भी फ़टाफ़ट। थोड़े समय में बहुत कुछ पा लेना चाहते है ।आराम से खा भी नहीं सकते है।खा रहे है और टीवी भी देख रहे हैं आसपास बैठे लोगो से बातचीत कर रहे हैं कभी कभी  फ़ोन पर भी बतिया रहे है। सोते भी है, तो संकोच और चिंताओं के साथ। पूजा प्रार्थना करते है,लेकिन ध्यान कही और है।और अंत में कहते कहते-हे ईस्वर मुझे सुख दे दे, संतोष देऔर धैर्य दे, लेकिन जरा जल्दी।

Monday 10 July 2017

प्रेम में मुक्ति।

जब आदमी प्यार में डूब जाता है, तो वह स्वयं में ज्ञानी हो जाता है, श्रद्धा उसके भीतर फूट पड़ती है, कर्म उसका औजार बन जाता है और फिर वह ईश्वर के सबसे करीब हो जाता है।

सपनो की हकीकत

वह दिनभर विचारों और सपनो में खोये रहते है हम रोज न जाने कितने सपने देखते है। लेकिन उन सपनो को जमीन पर लाने के लिए कभी कभी कुछ भी नहीं करते है। हम खुद से यह भी नहीं पूछते  की जो लछ्य किसी मिशन के तहत बनाये गए है। उनकी यतार्थ स्थिति क्या है?  वर्तमान में यथार्थ पर हमारी नजर ही नहीं जाती है । इसलिए हम कभी यथार्थ को स्वीकर नहीं कर पाते। जिसके कारण हम असफल हो जाते है। जिससे बहुत सारी समस्याओं को हम बढ़ाते जाते है। इन परेशानियो की वजह हम अक्सर दुसरो को मानकर खुद को संतुष्ट कर लेते है या फिर नई समस्या कड़ी कर लेते है।

प्रेम और एकान्त

जब तुम प्रेम में होते हो, तुम एकांत महसूस करते हो। एकांत सुंदर है,एकांत आनंद है लेकिन सिर्फ प्रेमी इसे महसूस कर सकते है,क्योकि सिर्फ प्रेम तुम्हे अकेला होने का साहस देता है, सिर्फ प्रेम अकेले होने का सन्दर्भ पैदा करता है। यदि प्रेमी एक दूसरे को स्पेस को अकेला होने की जरुरत को नहीं स्वीकारेगी ,तो प्रेम नष्ट  हो जायेगा । एकांत द्वारा प्रेम नई ऊर्जा पाता है। जब तुम अकेले हो तुम उस बिंदु तक उर्जा एकत्र करते हो  जहा से प्रवाहित हो जाये, अकेले में तुम उर्जा जमा करते हो , ऊर्जा जीवन है उर्जा आनंद है ऊर्जा प्रेम है ऊर्जा नृत्य है और ऊर्जा उत्सव है।

प्रेम और एकांत

यदि एक व्यक्ति जरूरतमन्द है और दूसरा व्यक्ति भी जरूरतमन्द है,तो दोनों के बीच क्या रिश्ता होगा? दोनों एक दूसरे का सोशण करने की कोशिश करेगे । उनमे सोषण का रिश्ता होगा, न की प्रेम का , न करुणा का । यह मित्रता नहीं होगी,शत्रुता होगी। बहुत कड़वी लेकिन शक्कर चढ़ी हुई ।और देर सवेर शक्कर उतर ही जाती है। पहले वे अकेलापन महसूस करते थे, अब वे साथ साथ अकेले है, जो और भी आधिक कस्ट देता है।  जीने का एक और तल है आप अपने स्वाभाविक अद्वितीय एकांत का अनुभव करे, उसका आनंद ले। अपने आप में मस्त हो।

Sunday 9 July 2017

भरोसे की ताकत

खुद पर भरोसा ऐसी चीज है,जो हवा पानी की तरह जरुरी है।यह चीज हमे प्रेरणा और उत्साह से भर देती है। हमारी आंतरिक दृष्टी और विस्वास उन सक्तियो को देख लेता है जो हुम्म है,लेकिन जो दुसरो को दिखाई नहीं देता है।हर फैसले के पीछे खुद पर भरोसा होना चाहिए। हमेशा बिन्दु इकठ्ठा करते वक़्त यह भरोषा होना चाहिए की यह भविष्य में बड़ी रेखाये हो सकती है। कामयाब होने के लिए भरोषा होना चाहिए जीवन पर,अपने कर्मो पर।विकट से विकट परिस्थिति में भी ध्यान अपनी शक्तियों पर केन्द्रित हो। सब कुछ आपके खिलाफ हो सकता लेकिन भरोषा नहीं यह हर स्थिती में आपको उबार लेगा।

अपना कहने से डर लगता है।

  • तुम छोड़ गए मुझे मेरी तन्हाइयो के साथ भूल नहीं पाता वो दिन वो बातें किस कदर खोया रहता था मैं तुममे अपने आप को कर दिया था समर्पित तुमको दे दिया था अधिकार लेकिन आहत किया तुमने मुझे चोट दी ऐसी की अब डर लगता हैं किसी को फिर से अपना कहने में।

Saturday 8 July 2017

समस्या के आगे।

जब आप किसी समस्या से खुद को घिरा पाते है, क्या करते है? बोखलाहट हमारी सोचने समझने की सकती को कम क्र देती है और हम गलत निर्णय ले लेते है। किसी भी नकारात्मक टिप्पणी या स्थिती को सहजता से ले पाना टेढ़ी खीर है, लेकिन ऐसा किया जा सकता है। मस्तिष्क को विराम देकर । हमे मस्तिस्क को रोजाना शांत करने का तरीका सीखना चाहिए, वरना आपाधापी हमे अच्छा जीवन जीने नहीं देगी। अगर आपका दिमाग शान्त व स्थिर नहीं,तो समझिये अच्छे अवसर आपके हाथ नहीं आने वाले। अगर आपको बुरे हालात को हराना है और सफलता की सीढ़िया चढ़नी है तो भावनात्क रूप से मजबूत रहना होगा।  <iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=qf_br_asin_til&ad_type=product_link&tracking_id=mywebsite2082-21&marketplace=amazon&region=IN&placement=B01B6ASA90&asins=B01B6ASA90&linkId=95bfa0a090da23f45200d8b66a725ba9&show_border=true&link_opens_in_new_window=true&price_color=333333&title_color=0066c0&bg_color=ffffff">
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जो डरते है वही भौकते है।

आमतौर पर जब दो लोग बातें करते है तो जो खुद को कमजोर अनुभव करता है वो जोर से चिल्लाने लगता है जिसके पास शक्ति होती है वह आदमी शान्त्त् होने लगता है। दुसरो को डराने वही जाता है, जो डरा हुआ है। कुत्ते भी तभी भौकना शुरू करते है,जब वे खुद दार जाते है।https://www.amazon.in/Fico-Brown-Watch-case-Watches/dp/B014G4DV9M/ref=as_sl_pc_qf_br_asin_til?tag=mywebsite2082-21&linkCode=w00&linkId=6d22b8b7eb7d4843898885e6176006a1&creativeASIN=B014G4DV9M<iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=qf_br_asin_til&ad_type=product_link&tracking_id=mywebsite2082-21&marketplace=amazon&region=IN&placement=B014G4DV9M&asins=B014G4DV9M&linkId=6d22b8b7eb7d4843898885e6176006a1&show_border=true&link_opens_in_new_window=true&price_color=333333&title_color=0066c0&bg_color=ffffff">
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हंसना ही नहीं रोना भी।

हम करुणा से भरकर जब रोते है तो हमारे अंदर एक अजीब सी हलचल होती है जिससे दिल अधिक संतुलित हो जाता है। रोने से अंदर का तनाव और दूसरी समस्याये काफी कम हो जाती है इससे मन हल्का हो जाता हैं।