Friday 18 August 2017

किसके लिए जिए

यह बड़ा प्रश्न है की किसके लिए जिए।सभी की भिन्न भिन्न प्राथमिकताएं होती है। उन्हें प्राप्त करने का ढंग भी अलग अलग होता है। मनुष्य अपने बारे में सबसे पहले सोचता है, उसके बाद परिवार के प्रति। ऐसे भी लोग है जो परिवार के मोह में अपने हित भी उपेक्षा में कर देते है। जितना अधिक उदार मनुष्य का मन होता है उतने ही लोग उसकी चिंता के दायरे में सिमट जाते है। थोड़े से लोग ऐसे भी हुए, जिन्होंने किसी भेदभाव के बगैर पुरे समाज की चिंता की। वे आज महापुरुष के रूप में पूजनीय है। अपने और अपनों के हितों से ऊपर उठकर व्यापक द्रष्टी धारण कर पाना दुष्कर कार्य है।इसके लिए अपने आप से लड़ना पड़ता है। मनुष्य वास्तव में एक अत्यंत निरीह प्राणी है। इसे पांच शक्तिशाली योद्धाओ ने घेर रखा है। यह योद्धा है-काम , क्रोध,मोह, लोभ और अहंकार। मनुष्य का इनसे बड़ा शत्रु और कोई नहीं। यह इतने प्रबल है की मनुष्य की इन्द्रियों को जीतकर अपने वश में कर लेते है। जब इन्द्रियों पर इन शत्रु योद्धाओ का आधिपत्य हो जाता है तब मनुष्य के मूल उद्देश्य को खो देता है।  विवेक, बुद्धि,संयम ,संतोष, दया और परोपकार जैसे गुण पराजित हो जाते है, जितना शक्तिशाली इनका प्रभाव होता है, मनुष्य उतना ही निर्बल हो जाता है। 

  1. कई बार मनुष्य अपनों के हितों को दांव पर लगा देता है। अपने ही परिवार का शत्रु बन जाता है। ज्ञान, धर्म, नैतिकता मूल्य आदि इसके लिए अर्थहीन हो जाते है। ऐसे लोगो के सामने धर्म,समाज की जितनी भी बातें की जाये वे बेकार हो जाती है। समाज में बदलाव की बातें निरंतर होती रहती है। इसके बावजूद समाज में गिरावट रुक नहीं रही। इसका कारण यही है की बातें पत्थरों से की जा रही है। पांच विकारों ने मनुष्य की दसो इन्द्रियों को जीतकर उसे पत्थर जैसा संवेदनहीन बना दिया है। ये पांच योद्धा समाज में व्याप्त वातावरण के कारण शक्तिशाली हो गए है और मनुष्य की इन्द्रियों को जीतने में सफल रहे है। समाज में कैसे स्त्रियों और पुरुषों की नैतिकता का पतन हो रहा है। समाज से उन तत्वों को हटाना पड़ेगा जिनसे काम, क्रोध,लोभ ,मोह,और अहंकार को ताकत मिलती है। यह मनुष्य के जीवन का उद्देश्य हो की उसे विकारों का गुलाम बनकर नहीं रहना है। उसका संकल्प हो की उसकी इंद्रिया मुक्त रहकर उसके जीवन की सहायक बने।

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