Sunday 30 July 2017

सोचने का सलीका।

जो अपने पास है, लोग अक्सर उसे भूल जाते है, जो नहीं  है, उसके लिए बेचैन रहते है उसके बारे में सोच सोचकर परेशान रहते है। कुछ लोग जब भी कुछ सोचते है, तो सोचने के नाम पर सिर्फ चिंता करते है। कुछ की सोच किसी ईर्षा की मंजिल पर जाकर ख़त्म होती है। सोचना जरुरी है, पर जरुरी नहीं की हर तरह की सोच आपको सकारत्मक दिशा में ले जाये। सोचना एक कला है। जब कोई अच्छी तस्वीर या फ़िल्म देखता है, तब उसके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय वह अपने मन में ही ख़ुशी व संतुष्टी का अनुभव करता है। अपनी सकारत्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते है, तो रोज समय पर नियमित रूप से ध्यान करे या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करे या फिर कोई गेम खेले। अगर आप अपने चिंतन में लचीलापन संतुलन सहजता ,आशावादिता रखते है, तो आपकी सोच सकारात्मक होगी। सकारात्मक सोच आपके दिमाग को समाधान और नकारात्मक सोच समस्या के रास्ते पर ले जाती है। अगर आप किसी इंसान से मिले ,तो उसकी विशेषताओं का अनुकरण करने की कोशिश कीजिये। इससे आपके दोष अपने आप दूर होते जायेगे,जैसे पेड़ के सूखे पत्ते अपने आप झड़ जाते है।

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