जल यदि एक ही स्थान पर स्थिर रहे, तो वह मलिन हो जाता है। वही जल जब प्रवाहित होने लगता है, तो स्वच्छ हो जाता है। क्रियाशील रहने वाला व्यक्ति शिशु की तरह सोता है और सिपाही की तरह जगता है। हमारी प्रकृति श्रम करने वालो की पुजारिन है। जो जितना क्रियाशील है, वह उतना ही स्वस्थ और सुडौल है। जैसे हिरणी चौकड़ी भरता है, नीलगाय तेज़ दौड़ती है, अश्व जीवनपर्यंत भागता है, पंछी उड़ान भरने के लिए पंखो से निरंतर व्यायाम करती है, गाय भैंस ,भेड़ , बकरी दिन भर घूम घूम कर घास खाती है, इनकी यही क्रियासीलता इनके स्वस्थ का मूलमंत्र हैं। कंप्यूटर के आगे घंटो बैठे रहना , डनलप के गद्दों पर लेटना , मोटे तकियों के सहारे बैठना , काम के लिए दुसरो पर निर्भरता , कही जाने के लिए वाहन का प्रयोग , देर रात सोना, समय से उठना नहीं ,टहलना नहीं,कोई परिश्रम नहीं इन सबसे मनुष्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है,जो बुढ़ापे को आमंत्रित करता है। हाथ पाव नहीं हिलाये तो प्रकृति ऐसा सजा सुनाएगी, जिससे सरीर की क्रियाशीलता ही ख़त्म हो जायेगी । इसलिए तंदरुस्ती चाहते है तो आज ही क्रियाशील बनिए। प्रतिभा का विकास शांत वातावरण में होता है और चरित्र का विकास मानव जीवन के तेज़ प्रवाह में।
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