Thursday 24 August 2017

अमृत सन्देश

हमारा देश धर्मप्रधान होने के कारण ही एक महान देश कहलाता है। यह वही भारतभूमि है, जहाँ से धर्म और दार्शनिक तत्व समूह ने बरसाती नदी के समान प्रवाहित होकर सारे संसार को सराबोर कर दिया था। संसार में अनेक प्रकार के प्रतिद्वंद्वी समूह रहेगे ही, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की एक दूसरे से घृणा की जाए या विरोध किया जाये । प्रत्येक आत्मा में परमात्मा को देखने वाले महापुरुष ही धर्मस्वरूप को समझते है और वे ही अहिंसा की आराधना कर सकते है। अहिंसा एक सनातन तत्व है। अहिंसा , संयम , तप रूप मंगलमय धर्मदीप का प्रकाश यदि world को आलोकित कर दे , तो निश्चय ही धरा से अज्ञान का तमस समाप्त हो सकता है। दुसरो को का अस्तित्व मिटाकर अपना अस्तित्व बनाये रखने की कोशिश अंततः घातक होती है । अहिंसा भारतीय संस्कृति की मुख्य पहचान है। अहिंसा सभी को अभय प्रदान करती है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन और अस्वस्थ होने का उदाहरण दे रहा है। आज शांति के लिए एक आध्यत्मिक जागृति आवश्यक है, जो राष्ट्र ,समाज , और परिवार से हिंसा का अन्धकार दूर कर सके। मानव जाति को सुदृढ़ और सुगठित रखने का दिव्य सन्देश है। अहिंसा का अर्थ है किसी की हत्या न करना,खून न बहाना, मन ,वचन कर्म से किसी को कोई दुःख न देना अहिंसा है। अहिंसा के अंतर्गत केवल मानव ही नहीं पशु पंछी , जीव जंतु को भी दुःख पहुचाना नहीं   चाहिए।  अर्थात् अपनी आत्मा के सामान ही सबको मानो। अहिंसा का सम्बन्ध मनुष्य के ह्रदय के साथ है,मस्तिष्क के साथ नहीं। जिसके जीवन में अहिंसा का स्वर झंकृत होता है, वह केवल शत्रु को ही प्यार नहीं करता बल्कि उसका कोई शत्रु ही नहीं है। जिसको आत्मा के अस्तित्व में विश्वास है, वही हिंसा का त्यागी हो सकता है। कुछ लोग अहि

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