Sunday 30 July 2017

बहस ही तो है।

बहस भी क्या चीज है? हम बहस करते है और मजा लेते है। कभी कभी हम बहस तो कर जाते है, लेकिन अपना मूड बिगाड़ बैठते है और मूड है की फिर लाइन पर नहीं आता । हम किसी के साथ होंगे या काम करेंगे तो बहस होगी ही। लेकिन वह हम पर इतनी हावी नहीं हो जानी चाहिए की हमारा पूरा दिन ही बर्बाद जाये। हम बातचीत करते है। कभी कभी बहस में बदल जाती है हम अपनी बात कहते है वह किसी को आहत कर जाती है।फिर कभी उसके उलट हम आहत हो जाते है । हम जब किसी बहस में आहत होते है।हमारा सारा मूड चौपट हो जाता हैं। फिर तो हमारा किसी काम में मन नहीं लगता। हम कोई काम आगे बढ़ा नहीं पाते । उस वक़्त हमे ठीक से सोचने की जरुरत होती है। आखिर एक ही ख्याल के साथ हम बहुत देर तक चिपके भी नहीं 

जीवन संघर्ष नहीं सहयोग है।

अधूरेपन का सम्मान जरुरी है जिंदगी का पूरा मतलब है अधूरापन। ऐसा कोई नहीं है, जिसे अपना मनचाहा मिल सकता हो। यहाँ तक की बुद्धि से परे पशु पश्चियों को भी वह हासिल नहीं होता , जिसकी खोज में वह होता है। हम लाख योजनाओ की तयारी करे फिर भी विफलता को सार्थक रूप में समझने की तैयारी अधूरी ही है। आपने जो चीज पाई है, उसके प्रति श्रद्धानत हो, तो जीवन की सार्थकता महसूस हो सकती है। अपने पाये खोये का हिसाब करने बैठे तो इस बात पर ध्यान फोकस करे की वह क्या है, जो आपको मिला तो आपकी आँखों में चमक आ जायेगी? पता चलेगा की आपके हिस्से बहुत कुछ है,जो दुसरो के पास नहीं है। हमे खोये को भूलने की कला आनी चाहिए और पाने के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिए।

Commitment यानि दृढ़ इच्छा


  1. कामयाबी उसे हासिल होती है,जिसमे target प्राप्त करने की दृढ इच्छा होती है । आपकी कामयाबी आपके विचारो व फैसलो का परिणाम होती है। वचनबद्धता आपके दिमाग में target के प्रति दबाव ,अनुभव,अनुराग व उत्साह पैदा करती है। यह ताकत आपको कामयाबी की ओर कदम बढ़ाने को प्रेरित करती है। दरअसल , target के प्रति वचनबद्धता आपको एक target के लिए काम करने को बाध्य करती है। यह आंतरिक सकती है, जो व्यक्ति के अंतर्मन से उत्पन्न होती है। वास्तव में commitment एक बंधन है। यह अदृश्य दबाव है। चाहत व दृढ विश्वास में काफी अंतर है। जहा चाहत की दिशा बदल सकती है वही दृढ़ विश्वास अपनी निर्धारित दिशा में कायम रहता है। इंसान के जीवन की क्वालिटी उसके बेहतर काम करने की commitment पर depend करती है, फिर चाहे उसका कार्यक्षेत्र कुछ भी क्यों न हो।

चुप रहने का जादू।


  • मौन और एकांत आत्मा के सर्वोत्तम मित्र है। मौन के बाहर की दुनिया मन की दुनिया है। संसार में जितने भी तत्व ज्ञानी हुए है , सभी चुप रहने को एक मंत्र की तरह अपनाते है। बुद्ध ने वर्षो तरह तरह के उपाय किये किन्तु सत्य नहीं मिला। अन्ततः वह मौन के सरोवर में डूबे और सत्य का मोती पा लिया। सोमवार को महात्मा गांधी केआश्रम में मौनवार होता था। गाँधी के लिए मौन एक प्रार्थना थी। यह उन तक मानसिक सुख लेकर आता था। मौन की जादुई शक्ति के कारण कई जगह अब सामूहिक मौन के कैम्प लग रहे है।हमे तो अपने अपने तरीके से एकांत में डुबने की कला सीखनी चाहिए। इसकी पहली सीढ़ी यही है की बेवजह प्रतिक्रिया न दे। चुप रहना सीखे। खुद में उतरना सीखे । बोले तभी जब जरुरी हो और बोल ऐसे हो, जिसे सुंदर कहा जाये।

सोचने का सलीका।

जो अपने पास है, लोग अक्सर उसे भूल जाते है, जो नहीं  है, उसके लिए बेचैन रहते है उसके बारे में सोच सोचकर परेशान रहते है। कुछ लोग जब भी कुछ सोचते है, तो सोचने के नाम पर सिर्फ चिंता करते है। कुछ की सोच किसी ईर्षा की मंजिल पर जाकर ख़त्म होती है। सोचना जरुरी है, पर जरुरी नहीं की हर तरह की सोच आपको सकारत्मक दिशा में ले जाये। सोचना एक कला है। जब कोई अच्छी तस्वीर या फ़िल्म देखता है, तब उसके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उस समय वह अपने मन में ही ख़ुशी व संतुष्टी का अनुभव करता है। अपनी सकारत्मक ऊर्जा को अगर आप बढ़ाना चाहते है, तो रोज समय पर नियमित रूप से ध्यान करे या कुछ रचनात्मक लेखन कार्य करे या फिर कोई गेम खेले। अगर आप अपने चिंतन में लचीलापन संतुलन सहजता ,आशावादिता रखते है, तो आपकी सोच सकारात्मक होगी। सकारात्मक सोच आपके दिमाग को समाधान और नकारात्मक सोच समस्या के रास्ते पर ले जाती है। अगर आप किसी इंसान से मिले ,तो उसकी विशेषताओं का अनुकरण करने की कोशिश कीजिये। इससे आपके दोष अपने आप दूर होते जायेगे,जैसे पेड़ के सूखे पत्ते अपने आप झड़ जाते है।

Saturday 29 July 2017

आदत से मजबूर


  • कहते है की हमारी आदतें हमारे मूल्य बनाती है और हमारे मूल्य हमारा भाग्य। इसलिए बचपन में हमे यह सीख दी जाती है की अच्छी आदतें और अच्छा संग रखो , तो जीवन सफल हो जायेगा, अन्यथा सारी जिंदगी घूमना पड़ेगा। हम सबके अंदर अच्छी व बुरी आदतें मौजूद होती है, फिर चाहे कोई अमीर हो या गरीब ,पर आदत तो सभी ने अपने अपने स्वभाव के अनुसार पाल रखी है।  आदत से मजबूर किसी व्यक्ति को अपनी आदतो से निजात पाने के लिए अपने किसी प्रियजन या फिर मनोचिकित्सक की मदद की आवश्यकता पड़ती हैं , क्योकि वह अपनी आदतो की चपेट में इस कदर फंसा होता है की उसे बिना किसी की मदद के उस दलदल से बाहर निकलना नामुमकिन सा हो जाता है। किन्तु मदद लेने की इस चेष्टा में हम यह भूल जाते है की मनोचिकित्सक भी तो आखिर हमारी ही तरह एक इन्सान है, जिनके जीवन में भी कई भावनात्मक  उंच नीच और आधातजनक प्रसंग आते है। ऐसे में जब तक कोई व्यक्ति अपने भीतर खुद की मदद करने की एक मजबूत इच्छा शक्ति जाग्रत नहीं करता तब तक कोई प्रियजन या मनोचिकित्सक उसे अपनी आसंकओ व भय से मुक्त नहीं करा सकता। इसलिए पहले खुद की मदद करना आरम्भ करे, ताकि फिर दुसरो की मदद कर सके।

Friday 28 July 2017

गोल बिना खेल।

हम जीते तो है, लेकिन किसलिए और क्यों इसके बारे में सोचते तक नहीं । कोई पूछे तो हम चौक कर सोचने जरूर लगते है। लेकिन बहुत सारे ऐसे भी लोग है। जो अपने आस पास के लोगो की समस्याओं से जुड़ते है और सुकून पाते है। यदि तुम सुखी होना चाहते हो तो  सबसे पहले अपने आस पास के उनलोगो  को देखो जो दुखी है, असांत है परेशान है। उनके पास जाओ और

Tuesday 25 July 2017

वादा करे पर जरा सोच समझकर

शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा अगर उस दिन रसोईं में नहीं जाती ,तो शायद हिंदुस्तान की तस्वीर अलग होती । एक  राजा की बेटी को रसोई में जाने की दरकार की क्या? खैर जहाँ आरा उस दिन रसोई में चली गई और गरम पानी उसके सरीर पर गिर पड़ा । फूल की तरह नाजुक जहाँआरा का शरीर जल गया।बादशाह ने हर संभव इलाज कराया,लेकिन बेटी के शरीर पे पड़ा निशान जा नहीं रहा था।किसी पिता के लिए इससे दुःख की बात क्या ही सकती थी। बादशाह ने कई जगहों पर पता कराया की कही कोई हो, जो जहाँआरा की जिंदगी फिर रोशन कर दे। बड़ी मशक्कत के बाद पता चला की सूरत के पास कोई अंग्रेज डॉक्टर आया है, जो जले का इलाज कर सकता है। बादशाह ने सारे घोड़े सूरत की दिशा में दौड़ा दिए । डॉक्टर हाज़िर हो गया और शुरू कर दिया इलाज । जहाँआरा ठीक हो गयी , बादशाह खुश हो गया । खुश बादशाह कुछ भी कह सकता था। कुछ भी दे सकता है । उसने डॉक्टर से कहा , जो चाहो मांग लो। डॉक्टर सोच में पड़ गया। बहुत सोच समझकर उसने कहा की उसे कुछ नहीं चाहिए। फिर भी आप कुछ देना चाहे ,तो जो अंग्रेज भारत में व्यापार की मंशा लेकर आये है, उन्हें सूरत में फ्री ट्रेड की छूट दिला दे । बादशाह के लिए यह कौन सी बड़ी बात थी। उसने कहा तथास्तु ...और भारत का भविष्य गुलाम हो गया । 

Monday 24 July 2017

खुद से प्रेम करो।

अगर आप खुद से प्रेम करे तो दूसरे भी आपसे प्रेम करने लगेंगे। उन लोगो को कोई प्रेम नहीं करता है जो खुद को नहीं चाहते है। अगर आप खुद को ही प्रेम नहीं कर सकते है, तो कौन दूसरा मुसीबत मोल लेना चाहेगा?  कुछ चीजे है जो अनुबव से ही जानी जाती है । उसे जानने का कोई और रास्ता नहीं होता है इसे प्रयास और गलतियों से ही सीखा जाता है प्रेमी बनने का यह मतलब नहीं की तुम एक-दूसरे के मालिक हो गए ,तुम केवल साथी दोस्त हो। जब आप किसी में अपने प्रेम का निवेश करते हो  तो आप घृणा का भी निवेश करते हो क्योकि घृणा और प्रेम एक सिक्के के दो पहलु है। प्रेमी लड़ते ही है वे अन्तरंग शत्रु होते है और जब दो प्रेमियो के बीच में लड़ाई समाप्त हो जाती है तो प्रेम भी ख़त्म हो जाता है। प्रेम का जनम होता है स्वतन्त्रता की भूमि में जहा कोई बंधन नहीं,जहा को जबरजस्ती नहीं है जहा कोई कानून नहीं है।  प्रेम करना और प्रेम चाहना यह बड़ी अलग बातें है जो प्रेम चाहता है वह दुःख झेलता है।  सम्बन्ध तभी बनाओ जब तुम किसी के प्रेम में हो। प्रेम एक उच्चतर स्थिति है।

डर का जंजाल।

  1. आपने कई बार लोगो के मुह से सुना होगा न जाने क्यों डर सा लग रहा है कई लोग खुले स्थान पर जाने से घबराते है। कुछ लोग तूफ़ान से डरते हैं कुछ लोगो को डॉक्टर ,दवा, अस्पताल के नाम से पसीना छुटने लगता है। डर ऐसी बीमारी है जिसका ग्रीक भाषा में फोबिया कहते है जिसका अर्थ डरना होता है। इसी तरह हैड्रोफोबिया होता है हैड्रोफोबिया भी एक बीमारी है इसमें पानी से डर लगने लगता है और कॉकरोच, छिपकली, चूहे से डर लगता है। इसी तरह सोशल फोबिया भी एक बीमारी है यानी सामाजिक भय इसमें इंसान जनता के बीच नहीं बोल पाता है दुसरो के सामने लज़्ज़ा करता है,असहाय महसूस करता है। इस तरह लोगो के अंदर डर रहता है की कही सबके सामने हँसी के पात्र न बन जाये। ईर्ष्या से फोबिया होता है। ऐसी स्थिती में सर या कमर दर्द, तनाव, उदासी सामान्य आदतें हो जाती है। फोबिया एक ग्रीक शब्द है ।

Saturday 22 July 2017

वास्तविक सुंदरता।

व्यक्ति की सुंदरता तो उसके गुणो से प्रतीत होती है। यही कारण है की जब देवी देवता के सुन्दर चित्रों को देखते है, तो न चाहते हुए भी उनके विविध चरित्र हमारे सामने आ जाते है । मनुष्य आज के जमाने के नाम पर चारित्रिक पतन के नए  नए तल बनाता जा रहा है। एक तरह काम वासना की आंधी ने उसके मन को विकृत करके बेचैन और  अशांत कर दिया है, तो दूसरी तरफ क्रोध और अहंकार ने विद्वानों  की बुद्धि पर काला पर्दा डाल दिया है। जब चरित्र सुंदर होगा तभी चित्र(शरीर) भी सुंदर मिलेगा । अपने उच्च चरित्र के निर्माण के लिए समस्त विकारो को परमात्मा की याद रूपी दिव्य किरणों से भस्म करके अपने चरित्र के इत्र से चारो ओर अच्छे कर्मों की सुगंध प्रवाहित करे

बात अनसुनी करना।


  • यह एक महामारी है। ऐसी महामारी जो सदियो से जारी है। महात्मा और विद्वानों का सबसे  बड़ा लक्षण है- चीजो को ध्यान से सुनना । यह चीज कुछ भी हो सकती है। कौवो की कर्कश आवाज से लेकर नदियो की छलछल तक। हम सुनना चाहते नहीं। बस बोलना चाहते है।हमे लगता है की इससे लोग हमे बेहतर तरीके से समझेगे। हालाँकि ऐसा होता नहीं। जिन घरो के अभिभावक जयादा बोलते है वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है। क्योकि ज्यादा बोलना बातो को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दो की चक्कर में फसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनोपचारिक दोनों स्थिती में हम दूसरे की न सुन , बस हावी होने की कोशिश करते है। खुद ज्यादा बोलने और दुसरो को अनसुना करने से जाहिर होता है की हम अपने बारे में ज़्यादा सोचते है और दुसरो पर कम। ज़्यादा बोलने वालो के दुश्मनो की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते है तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोले और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते है तो दुश्मनो से कम बोले । "लोगो को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला की जयादातर अमेरिका नागरिक उनके सुख में सुखी होते थे, उनके दुःख में दुखी। "

Friday 21 July 2017

दिलों की बातचीत।

आप लोगो के साथ क्या बात करते है, इसमे कही अधिक महत्वपूर्ण है की आप कैसे बात करते है- संबंधो में जो बातचीत होती है उसमे से केवल 8% शब्दो द्वारा होती है और 92% नि: शब्द होता है। नि:शब्द का अर्थ है- चेहरे के हावभाव( bodylanguage)  हर व्यक्ति शब्दों पर ध्यान देता है, नि: शब्द पर नहीं। इसलिए कलह बढ़ती ही चली जाती है, कलह को शांति में बदलना हो, तो हमे बातचीत की कला को सीखना होगा। थोडा दूसरे का ख़याल , उसकी भाव दशा के प्रति संवेदनसीलता , उसकी मन: स्थिती  के बारे में सहानभूति । किसी भी संघर्ष में 50%  matter बातचीत से हल हो जाता है,यदि लोगो को उनकी बात कहने का मौका दिया जाए और उन्हें दिल से सुना जाये। दूसरा जब बोल रहा हो तो उसे बीच में टोकना नहीं, उसका मूल्यांकन नहीं करना और भीतर ही भीतर असहमत नहीं होना। यानि आप दिल खोलकर दूसरे व्यक्ति को अपने भीतर प्रवेश करने की इज़ाज़त दे रहे है। दो दिलो के बीच कभी संघर्ष नहीं होता है। हा दो दिमागों के बीच अवश्य होता है। 

Tuesday 18 July 2017

हमेशा क्रियाशील रहे।

जल यदि एक ही  स्थान पर स्थिर रहे, तो वह मलिन हो जाता है। वही जल जब प्रवाहित होने लगता है, तो स्वच्छ हो जाता है। क्रियाशील रहने वाला व्यक्ति शिशु की तरह सोता है और सिपाही की तरह जगता है। हमारी प्रकृति श्रम करने वालो की पुजारिन है। जो जितना क्रियाशील है, वह उतना ही स्वस्थ और सुडौल है। जैसे हिरणी चौकड़ी भरता है, नीलगाय तेज़ दौड़ती है, अश्व  जीवनपर्यंत भागता है, पंछी उड़ान भरने के लिए पंखो से निरंतर व्यायाम करती है, गाय भैंस ,भेड़ , बकरी दिन भर घूम घूम कर घास खाती है, इनकी यही क्रियासीलता इनके स्वस्थ का मूलमंत्र हैं।  कंप्यूटर के आगे घंटो बैठे रहना , डनलप के गद्दों पर लेटना , मोटे तकियों के सहारे बैठना , काम के लिए दुसरो पर निर्भरता , कही जाने के लिए वाहन का प्रयोग , देर रात सोना, समय से उठना नहीं ,टहलना नहीं,कोई परिश्रम नहीं इन सबसे मनुष्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है,जो बुढ़ापे को आमंत्रित करता है।  हाथ पाव नहीं हिलाये तो प्रकृति ऐसा सजा सुनाएगी, जिससे सरीर की क्रियाशीलता  ही ख़त्म हो जायेगी । इसलिए तंदरुस्ती चाहते है तो आज ही क्रियाशील बनिए। प्रतिभा का विकास शांत वातावरण में होता है और चरित्र का विकास मानव जीवन के तेज़ प्रवाह में। 

जीत न हार।

ऐसा भी मुक़दमा या खेल हो सकता है, जिसमे किसी की जीत न होती हो?  इस बात पर हम सिर्फ हँस सकते है। लेकिन जिंदगी में एक ऐसा भी खेल है। जिसमे किसी की भी जीत या हार नहीं होती है। एक सामान्य व्यवहार है, हमे दुसरो के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम दूसरो से चाहते है। परन्तु जब सामने वाला आदमी निष्पछ खेल की संहिता का उलँघन करता है , तो हम नाराज हो जाते है। हम बदला लेना चाहते है, लेकिन इस बदला लेने वाले खेल में  क्या किसी की जीत होगी?  जब हम बदला लेने के बारे में सोचते है, तब इस बात पर गौर करना भूल जाते है।  प्रतिशोध  की यह भावना हमारे अंतर्मन में कही न कही छिपी चिंगारी की तरह दबी रहती है, जैसे ही अवसर मिलता है , झट बाहर निकलकर बदले की आग में बदल जाती है। जैसे आम जिंदगी में चाहे अधिकारी की कुर्सी पर  बैठे लोग हो, पति पत्नी में तलाक के बाद हिसाब चुकता करने की मानसिकता हो, सड़क दुर्घटनाओं में भी यह मानसिकता काम करती है। किसी ड्राईवर को दूसरी गाड़ी वाला कट मारता है और उसे गाड़ी सड़क से नीचे उतारनी पड़ती है।अब वह ड्राईवर कट मारने वाले को सबक सिखाना चाहता है। नातीजा दुर्घटना के रूप में सामने आता है।  यह खेल घाटे वाला है। वक्त की बर्बादी , धन की बर्बादी और चित्त की बर्बादी। इस सबका इलाज एक ही है, जिसके लिए महाभारत में वेदव्यास कहते है, क्षमा और दया जीवन के ऐसे गहने है, जिसे पहनने वाला सबका प्यारा बन जाता है। पूरा जीवन ही सुंदर हो जायेगा। 

Monday 17 July 2017

उम्मीद का साथ।

सौ बार भी हार मिले अगली बार फिर उठेगे । इस उम्मीद से की जीत अवश्य होगी। यह उनके जीवन का मूलमंत्र है। वे एक सफल आदमी है जिनके लिए उम्मीद करना और उम्मीद रखना दोनों महत्वपूर्ण है। दरअसल खुद से उम्मीद रखना और दुसरो की उम्मीदों पर खरा उतरना जीवन का धेय होना चाहिए अगर उम्मीद से परे हटकर आप न्यूट्रल गेयर में जीवन गुजार रहे हो तो तय है की आप अपने काम को चलताऊ तरीके से ही करेगे।  हर व्यक्ति तीन चीजो की उम्मीद जरूर लगाये रखता है -प्रीतम का सहचर्य , अतुल सम्पति और अमरता ।जहा जिंदगी है वहाँ उम्मीद है और अगर आप उम्मीद नहीं रखते हो तो इस जीवन का क्या अर्थ ? विचार से अधिक विश्वास की शक्ति है, और जिस चीज का हमे विश्वास हो,उसकी हम उम्मीद करते है । ना उम्मीदी सबसे पहले साहस और सामर्थ्य कम करती है और फिर हमारा व्यक्तित्व  सन्देहसील और आसंकित बना डालती है। उम्मीद और सपने उसे वह सब देते है है जिसके लिए वह दुनिया में आया। लेकिन कोरी उम्मीद से बात नहीं बनती । सवाल यह है की आपका जीवन उस मानसिक साँचे में ढाल रहा है या नहीं, जिसकी आप उम्मीद कर रहे है?आप हाथ पर हाथ धरे बैठे तो नहीं है?

Sunday 16 July 2017

मौन वाणी

कहते है जो समझदार होता है वह कम बोलता है । अनुभव बताता है क़ि मौन कई बार बहुत बड़ी परेशानी से बचा सकता है। इसके उलट अगर कोई आदत से मजबूर होकर एक के बदले दस जवाब देता है और कहता है की मैं चुप क्यों रहूँ किसी से दबकर क्यों रहूँ , तो बहुत बड़ी मुसीबत में फस सकता है। अक्सर लोग वाणी के विराम को ही मौन समझते है। लेकिन किसी व्यक्ति के मन में संकल्पों की उथल पुथल हो रही हों , किसी अन्य व्यक्ति के प्रति उसके मन में द्वेष भावना का ज्वार भाटा उठ रहा हो या उसके भीतर कोई और वासना धधक रही हो तो क्या यह मौन कहा जायेगा ? कहते है पानी सा रंगहीन नहीं होता मौन , आवाज की तरह इसके भी हज़ार रंग होते है । मन और वाणी  दोनों का शांत होना ही पूर्ण मौन कहा जाता है। मुख के मौन को बाह्य मौन कहा जाता है तथा मन का मौन अन्तः मौन । एक कहावत है-मीठा बोलना सुखकारी है, उतना ही कम बोलना भी लाभकारी है। पर हमे यह समझ भी होनी चाहिए की जहा मौन रहना चाहिए , वहाँ बोलकर अपने लिए झमेला कभी भी खड़ा नहीं करना है। मौन हमारे मस्तिष्क के सभी इंद्रियों को संयमित रखता है। चुप रहने से वाणी और वाणी के साथ खर्च होने वाली मस्तिष्क की शक्ति संचित होती है। तभी तो कहा गया है की जो व्यक्ति अपने मुख और जबान पर संयम रखता है वह अपनी आत्मा को कई संताप से बचाता है। मौन में रहकर ही हम जीवन जगत के गूढ और सत्य पहलुओं का साक्षत्कार कर सकते है। 

खुशियो का खजाना।

अक्सर बुजुर्ग कहते है की पैसे से चीजे खरीदी जा सकती है, ख़ुशी नहीं,आप इस बात से सहमत होते हुए भी इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाते है। वास्तव में ,ख़ुशी आपके मन की अवस्था है, जिसमे आप पूर्ण होने का अनुभव करते है। 3-डी यानी desire-इच्छा dicision-निर्णय do-काम में ही ख़ुशी मिलती है । आप इस फ़िक्र में मत रहिये की कौन क्या करता है या सोचना है खुद तय करे की आपका मन क्या करना या पाना चाहता है फिर निर्णय लीजिए और अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाइये ।खुशियां ढूढ़ने से नहीं मिलती , खुद को पा लेने के एहसास से मिलती है। दरअसल, खुद की तलाश यानि अपनी शख्सियत को आकलन कर पाना मुश्किल काम है। यह एक ऐसा एहसास है, जो आपकों यह बताता है की आप अपनी प्राथमिकता , इच्छा, आकांक्षा के अनुरूप काम करे, इसकी बजाय दुसरो के जीवन में ताक झांक करे या दूसरो की नक़ल करे। जब आप अपना विश्लेषण करते है और किसी निर्णय पर पहुच जाते है तब आप आत्मसंतुस्ट और आत्मशांति के परिवेश में निवास करने लगते है। आपको एहसास होगा की रुपए गिनने वाला बैंकर की बजाय फूल पौधे सीचने वाला माली जयादा खुश नजर आता हैं। 

जरुरी क्या है।

दिन भर की थकावट फिर भी ख़ास कामो का छूट जाना। हमे सबसे पहले यह तय करना चाहिए की हमारे लिए सबसे जरुरी क्या है?  उसके बिना हम अपना बेहतर नहीं दे सकते । हम क्या क्या करते रहते है? खुद को उलझाये रखते है । बड़ा भारी व्यस्त समझते है। हम ऑफिस में भी उलझे रहते है । घर पर भी कही ऑफिस चल रहा होता है। लेकिन रात में सोते हुए जब सोचते है तो कोई खुशनुमा एहसास नहीं होता । हमे लगता ही नहीं की कोई सार्थक काम किया है। जिंदगी में हमे हर चीज चुननी पड़ती है यह चुनाव ही हमारी क़ामयाबी और नाकामयाबी का सबब बनता है। अक्सर हम चुनने में गच्चा खा जाते है काम करते रहते है लेकिन चुन नहीं पाते है। इसलिए काम करते है , उलझे ज्यादा रहते है । एक किस्म का मशीनी अंदाज हो जाता ही हमारा । यह सही है की हमारे पास तमाम तरह के काम होते है। काम की अपनी अहमियत है।समय की अपनी है। हमे काम और समय दोनों को साधना होता है। दोनों को साधने के लिए चुनाव करना बेहद जरुरी है । बिना चुने हम उनकी साधना कर ही नहीं सकते है। सो , हमे अगर जिंदगी में बेहतर करना है, तो हर काम में पिले नहीं रहना है। हमे अपनी प्राथमिकता तय करनी हैं  अगर हम उसे नही तय करते है। तो जिंदगी खुद हमारे लिए कुछ तय कर देगी। और शायाद वह हमे अच्छा ना लगे।

Saturday 15 July 2017

नीले गगन के तले।

सभी जीवो को समान रूप से जीने का हक़ भी मानते थे। वह चाहते थे की इंसान अपने स्वाद या स्वार्थ में अँधा होकर किसी दूसरे जीव का हक़ न  मारे। 

जुबान पर लगाम।

जुबान में एक भी हड्डी नहीं होती है, लेकिन हड्डियां सबसे जयादा यही तुडवाती है। शरीर में चीनी बढ़ रही है लेकिन लोगो की जुबान कड़वी होती जा रही है। अच्छा सुनने से ही अच्छा बोलने की आदत बनती है। जीभ पर सरस्वती का वास होता है। संयम को भारतीय परंपरा जीवन के रूप में देखती है।

गुस्से को पीना।

गुस्सा भी एक ऊर्जा है इसलिए गुस्से को पी जाना चाहिए कुछ दिनों में आप देखेगे की इतनी शक्ति अर्जित कर लेंगे और आपके पास इतनी ऊर्जा इकठ्ठी हो जायेगी जिसका हिसाब नहीं। अगर प्रतिरोध किया या उल्टा जवाब दिया तो आपकी ऊर्जा रिस जायेगी और व्यर्थ हो जायेगी।

पश्च-विपश्च

दोनों एक दूसरे की न केवल कमिया खोजते है, बल्कि एक दूसरे पर प्रहार भी करते है। जब भी हम संकट में पड़ते है , तो घबराकर हल ढूढ़ने की बजाय किसी और के दरवाज़े पे दस्तक देने लगते है। विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करना, उन पर आधी विजय हासिल करने जैसा है। जो खुद को साध लेता है वह हर प्रश्न का उत्तर खुद से ही पूछ लेता है । लेकिन इसके लिए स्वयं पर भरोसा

Friday 14 July 2017

बुद्धि का केंद्र

  • अक्सर बुद्धि को व्यक्ति के मस्तिष्क से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन नवीन विज्ञान ने यह बात सिद्ध की है की बुद्धि केवल मस्तिष्क तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि शरीर के सभी अंग सोचते है। सकारात्मक बदलाव से व्यक्ति का शरीर खिल जाता है और ताजगी से भर जाता है इससे यह भी पता चलता है की बुद्धि का केंद्र केवल मस्तिष्क ही नहीं बल्कि हमारे शरीर के सारे अंग है। मनुष्य के लिए मानसिक विकास ही काफी नहीं , उसे पुरे शरीर के विकास पर ध्यान देना चाहिए। 

माफ़ करने की महानता

यह भ्रम मन से निकाल दीजिये की माफ़ी माँगने का मतलब कही पर छोटा हो जाना है अपमान है आदि। माफ़ी माँगने का मतलब है की कही आपमें अधिक वैचारिक परिपक्वता है। माफ़ी वही मांग सकते है जो स्वयं महान है। माफ़ी भी सम्मान के साथ मांगिये किसी के पैरों में गिरने की जरुरत नहीं है यह ध्यान रहे की आप बिगड़ी बात बनाने की कोशिश कर रहे है इसलिए आदर के पात्र है। गलती सुधारने का एक ही तरीका है खुले तौर पर अपनी गलती को स्वविकार कर लेना। जब आपको यह विश्वास हो जाये की माफ़ी मांगनी चाहिए तो यह काम तुरंत कर डालिये जितनी देर होगी यह काम उतना मुश्किल मालूम होने लगेगा कभी कभी तो देरी इसे लगभग असंभव बना देती है

झूठ और सच का खेल।

  • सामाजिक सभ्यता सदा कहती है सच बोलो मनोवैज्ञानिक मानते है की झुठ बोलना इंसान की एक मजबूरी बन गया हैऔर वह इसे आदत में सुमार कर चुका हैं । आज अधिकतर लोग सच बोलने से कतराते है और जूठ बोलने में अजीब ख़ुशी का अनुभव करते है।  लोग प्रायः उन्ही चीजों के बारे में झूठ बोलते है, जिनसे वे अच्छा महसूस करना चाहते है। जब हम किसी चीज को करना चाहते है और नहीं कर पाते है तो उसके सामने झूठ बोल जाते है  झुठ हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है जैसे ही लोगो के स्वाभिमान को चोट पहुँचती है वे ऊचे स्वर में झुठ बोलना शुरू कर देते है

नए रस्ते पर।

जो व्यक्ति नया रास्ता बनाता है । वही नयी मंजिल पाता है  जो लोग पुरानी चीजो रीतियों विचारो से बंधे रहते है उन्हें मौलिक काम से डर लगता है ।परंपरा रीती रिवाज वही तक सार्थक है जहा तक वे सफलता की प्रेरणा देते है । परंपरा जब गले की फांस और कार्य की रुकावट बन जाये तो बेहतर है की उसमे मौलिकता लाई जाये।  व्यक्ति की सफलता उसके व्यक्त्तिव  और मौलिक विचारो का प्रतिफल होती है । आधुनिक जीवन की सुख सुविधाये और ऐश्वर्य उन्ही व्यक्तियों के दिमाग की विलक्षण का परिणाम है, जिन्होंने पुराने ढंग को त्याग दिया है।

Thursday 13 July 2017

5 बातें बनाएगी मन को मजबूत।

मन से मजबूत लोग स्वस्थ आदतें रखते है। वे अपने इमोशन्स , विचार ,और व्यवहार को नियंत्रण करना जानते है।  यहाँ 5 बातें ऐसी है मन को मजबूत बनाएगी। 1, सॉरी फील करने में टाइम बर्बाद न करे।2,दुसरो की नजर से खुद का आकलन न करे।3, व्यर्थ कामो में ऊर्जा खर्च न करे।4, अकेले होने से डरनानही चाहिए।5,दुसरो की सफलता में खुश होना।

दिमाक को आराम देने के तरीके।

किसी भी काम को पुरे मन से करे। काम के बीच में छोटे छोटे ब्रेक ले। हर समय खुद का आकलन ना करे । खुद को अनावश्यक ना थाकाये व पूरी नींद ले। कुछ देर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूर रहे। 

Wednesday 12 July 2017

विचारों का प्रबंधन।

कहा जाता है की जैसे हमारे विचार होते है, वैसा हमारा आचार होता है। विचार किसी बीज की तरह होते है जो या तो सकारत्मक या नकारात्मक हो सकते है। ज्यादा सोचना बहुत ज्यादा खाने के सामान है। उसी तरह ज्यादा सोचने से हमारा मन भारी हो जाता है। जो हम सोचेगे अंततः वही हमारे मुख से निकलेगा । 

डर से छुटकारा।

खुद को बदलने या नया सीखने में एक किस्म का डर छिपा रहता है। दर असल , बदलने के लिए हमे कुछ  छोडना पड़ता है। कुछ जोड़ना पड़ता है। कुछ सीखना भी पड़ता है। हम अपने को बदलने के लिए कितना गम्भीर है ? उसी से सारी चीजें तय हो जाती है। कुल मिलाकर , हमे ठोस कदम उठाने होते है। सो, किसी भी बदलाव के लिए हमे एक कदम तो बढ़ाना होता ही है। हमारी जिंदगी के लिए वह कदम अहम् हिट है। अब वह कदम बिलकुल ठीक होगा, यह हम कैसे कह सकते है?  लेकिन 

बेखुदी के पल।

खुद को भूल जाना एक अद्वितीय अनुभव है। जो इश्क़ में होते है, वे थोड़ी देर इस हालत में जरूर होते हैं। बेखुदी में सनम ,उठ गए जो कदम। जब आप अपने होने को भूल जाते है, तभी दुनिया को अपना सर्वोत्तम देने और दुनिया से उसका सर्वोत्तम पाने की स्थिति में होते है। स्व के पार जाने की स्थिति को आजकल फ्लोस्टेट कहा जाता है। इसे एकाग्रता की चरम स्थिति के तौर पर देखा जाता है।  ऐसा कोई भी काम, जिसमे कल्पना भाव और एकाग्रता की जरुरत हो, बगैर फ्लो स्टेट पूरा नहीं हो सकता है। 

असफलताओ से डरना क्यों?

जीवन की हर विफलता के साथ हम सफलता के एक कदम और करीब आ जाते है। जितनी आप मेहनत करने जाते है मुश्किले उतनी ही आपके सामने झुकती जाती है। विफलता केवल यह सिद्ध करती है की हमने सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया। तो चलिए आज से प्रत्येक विफलता के साथ कुछ सीखे और उससे प्राप्त बहुमूल्य अनुभवो से अपने जीवन को सम्रद्ध करे। क्योकि जो अपनी राह बनाता है, वही सफलता के शिखर पर पहुँचता है, पर जो औरो की राह ताकता है,सफलता उसके मुह दूर तक ताकती है। कमजोर तब रुकते है , जब वे थक जाते है, और विजेता तब रुकते है जब वे जीत जाते है। 

Tuesday 11 July 2017

अनजान राहो पर।

हमे अनजान राहो से प्यार करना चाहिए। उससे डरने की कोई जरुरत नहीं है। कामयाबी अजीब सी चीज है हमे लगता है की कही टिके रहने में ही हमारी कामयाबी है। वह एक मायने में नाकामी भी हो सकती है। कभी हमे लगता है की उखाड़ा जा रहा है या साजिस ले तहत कही भेजा जा रहा है। लेकिन उसी में हमारी कामयाबी हो सकती है। हम जिन रास्ते को नही जानते उससे गुजारना नहीं चाहते। हम उसे लेकर संकित होते हैं। यही हमारे मन में डर भी जागती है लेकिन हमे अगर कायदे की जिंदगी जीनी है तो नई राहो पे चलना ही होगा। 

उम्मीद।

जयादातर व्यक्ति तीन चीजो की उम्मीद लगाये रखता है 1, प्रियतम का सहचर्य 2, अतुल संपत्ति 3,अमरता। विचार से आधिक विश्वास की सकती हो,उसकी हम उम्मीद करते है। नाउम्मीदी सबसे पहले साहस और शक्ति कम करती है। और फिर हमारा वयक्तित्व सन्देहसील बना डालती है। आदमी जंग लगने के लिए पैदा नहीं हुआ है। उसे उसकी क्रियाशीलता बनाये रखती हैं। उसे उम्मीद और सपने उसे वह सब देते है जिसके लिए वह दुनिया में आया है लेकिन कोरी उम्मीद से बात नहीं बनती है।

आत्मज्ञान का रहस्य।


  1. जब मैं खाता हूँ, तो खाता हूँ और जब मै सोता हूँ तो सोता हूँ।यही वह एकाग्रता है जिसे सदियों से हम ध्यान कहते है। आप जो भी करे , उसमे पूरी तरह तल्लीन हो जाये।100% समर्पण । इसी सिद्धांत पर चलते हुए अर्जुन ने मछली की आँख पर निशाना साधा था। आज लोग एक वक़्त में कई काम करते है,वह भी फ़टाफ़ट। थोड़े समय में बहुत कुछ पा लेना चाहते है ।आराम से खा भी नहीं सकते है।खा रहे है और टीवी भी देख रहे हैं आसपास बैठे लोगो से बातचीत कर रहे हैं कभी कभी  फ़ोन पर भी बतिया रहे है। सोते भी है, तो संकोच और चिंताओं के साथ। पूजा प्रार्थना करते है,लेकिन ध्यान कही और है।और अंत में कहते कहते-हे ईस्वर मुझे सुख दे दे, संतोष देऔर धैर्य दे, लेकिन जरा जल्दी।

Monday 10 July 2017

प्रेम में मुक्ति।

जब आदमी प्यार में डूब जाता है, तो वह स्वयं में ज्ञानी हो जाता है, श्रद्धा उसके भीतर फूट पड़ती है, कर्म उसका औजार बन जाता है और फिर वह ईश्वर के सबसे करीब हो जाता है।

सपनो की हकीकत

वह दिनभर विचारों और सपनो में खोये रहते है हम रोज न जाने कितने सपने देखते है। लेकिन उन सपनो को जमीन पर लाने के लिए कभी कभी कुछ भी नहीं करते है। हम खुद से यह भी नहीं पूछते  की जो लछ्य किसी मिशन के तहत बनाये गए है। उनकी यतार्थ स्थिति क्या है?  वर्तमान में यथार्थ पर हमारी नजर ही नहीं जाती है । इसलिए हम कभी यथार्थ को स्वीकर नहीं कर पाते। जिसके कारण हम असफल हो जाते है। जिससे बहुत सारी समस्याओं को हम बढ़ाते जाते है। इन परेशानियो की वजह हम अक्सर दुसरो को मानकर खुद को संतुष्ट कर लेते है या फिर नई समस्या कड़ी कर लेते है।

प्रेम और एकान्त

जब तुम प्रेम में होते हो, तुम एकांत महसूस करते हो। एकांत सुंदर है,एकांत आनंद है लेकिन सिर्फ प्रेमी इसे महसूस कर सकते है,क्योकि सिर्फ प्रेम तुम्हे अकेला होने का साहस देता है, सिर्फ प्रेम अकेले होने का सन्दर्भ पैदा करता है। यदि प्रेमी एक दूसरे को स्पेस को अकेला होने की जरुरत को नहीं स्वीकारेगी ,तो प्रेम नष्ट  हो जायेगा । एकांत द्वारा प्रेम नई ऊर्जा पाता है। जब तुम अकेले हो तुम उस बिंदु तक उर्जा एकत्र करते हो  जहा से प्रवाहित हो जाये, अकेले में तुम उर्जा जमा करते हो , ऊर्जा जीवन है उर्जा आनंद है ऊर्जा प्रेम है ऊर्जा नृत्य है और ऊर्जा उत्सव है।

प्रेम और एकांत

यदि एक व्यक्ति जरूरतमन्द है और दूसरा व्यक्ति भी जरूरतमन्द है,तो दोनों के बीच क्या रिश्ता होगा? दोनों एक दूसरे का सोशण करने की कोशिश करेगे । उनमे सोषण का रिश्ता होगा, न की प्रेम का , न करुणा का । यह मित्रता नहीं होगी,शत्रुता होगी। बहुत कड़वी लेकिन शक्कर चढ़ी हुई ।और देर सवेर शक्कर उतर ही जाती है। पहले वे अकेलापन महसूस करते थे, अब वे साथ साथ अकेले है, जो और भी आधिक कस्ट देता है।  जीने का एक और तल है आप अपने स्वाभाविक अद्वितीय एकांत का अनुभव करे, उसका आनंद ले। अपने आप में मस्त हो।

Sunday 9 July 2017

भरोसे की ताकत

खुद पर भरोसा ऐसी चीज है,जो हवा पानी की तरह जरुरी है।यह चीज हमे प्रेरणा और उत्साह से भर देती है। हमारी आंतरिक दृष्टी और विस्वास उन सक्तियो को देख लेता है जो हुम्म है,लेकिन जो दुसरो को दिखाई नहीं देता है।हर फैसले के पीछे खुद पर भरोसा होना चाहिए। हमेशा बिन्दु इकठ्ठा करते वक़्त यह भरोषा होना चाहिए की यह भविष्य में बड़ी रेखाये हो सकती है। कामयाब होने के लिए भरोषा होना चाहिए जीवन पर,अपने कर्मो पर।विकट से विकट परिस्थिति में भी ध्यान अपनी शक्तियों पर केन्द्रित हो। सब कुछ आपके खिलाफ हो सकता लेकिन भरोषा नहीं यह हर स्थिती में आपको उबार लेगा।

अपना कहने से डर लगता है।

  • तुम छोड़ गए मुझे मेरी तन्हाइयो के साथ भूल नहीं पाता वो दिन वो बातें किस कदर खोया रहता था मैं तुममे अपने आप को कर दिया था समर्पित तुमको दे दिया था अधिकार लेकिन आहत किया तुमने मुझे चोट दी ऐसी की अब डर लगता हैं किसी को फिर से अपना कहने में।

Saturday 8 July 2017

समस्या के आगे।

जब आप किसी समस्या से खुद को घिरा पाते है, क्या करते है? बोखलाहट हमारी सोचने समझने की सकती को कम क्र देती है और हम गलत निर्णय ले लेते है। किसी भी नकारात्मक टिप्पणी या स्थिती को सहजता से ले पाना टेढ़ी खीर है, लेकिन ऐसा किया जा सकता है। मस्तिष्क को विराम देकर । हमे मस्तिस्क को रोजाना शांत करने का तरीका सीखना चाहिए, वरना आपाधापी हमे अच्छा जीवन जीने नहीं देगी। अगर आपका दिमाग शान्त व स्थिर नहीं,तो समझिये अच्छे अवसर आपके हाथ नहीं आने वाले। अगर आपको बुरे हालात को हराना है और सफलता की सीढ़िया चढ़नी है तो भावनात्क रूप से मजबूत रहना होगा।  <iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=qf_br_asin_til&ad_type=product_link&tracking_id=mywebsite2082-21&marketplace=amazon&region=IN&placement=B01B6ASA90&asins=B01B6ASA90&linkId=95bfa0a090da23f45200d8b66a725ba9&show_border=true&link_opens_in_new_window=true&price_color=333333&title_color=0066c0&bg_color=ffffff">
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जो डरते है वही भौकते है।

आमतौर पर जब दो लोग बातें करते है तो जो खुद को कमजोर अनुभव करता है वो जोर से चिल्लाने लगता है जिसके पास शक्ति होती है वह आदमी शान्त्त् होने लगता है। दुसरो को डराने वही जाता है, जो डरा हुआ है। कुत्ते भी तभी भौकना शुरू करते है,जब वे खुद दार जाते है।https://www.amazon.in/Fico-Brown-Watch-case-Watches/dp/B014G4DV9M/ref=as_sl_pc_qf_br_asin_til?tag=mywebsite2082-21&linkCode=w00&linkId=6d22b8b7eb7d4843898885e6176006a1&creativeASIN=B014G4DV9M<iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=qf_br_asin_til&ad_type=product_link&tracking_id=mywebsite2082-21&marketplace=amazon&region=IN&placement=B014G4DV9M&asins=B014G4DV9M&linkId=6d22b8b7eb7d4843898885e6176006a1&show_border=true&link_opens_in_new_window=true&price_color=333333&title_color=0066c0&bg_color=ffffff">
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हंसना ही नहीं रोना भी।

हम करुणा से भरकर जब रोते है तो हमारे अंदर एक अजीब सी हलचल होती है जिससे दिल अधिक संतुलित हो जाता है। रोने से अंदर का तनाव और दूसरी समस्याये काफी कम हो जाती है इससे मन हल्का हो जाता हैं।

तनाव तो मेहमान है।

तनाव मेहमान है उसे आते जाते रहना चाहिए। जब तनाव अड़ जाता है तो हमे अंदर से सोख लेता है। अंदर ही अंदर हम टूटने लगते है। उसका असर हमे चिड़चिड़ाहट में दिखाई देने लगता है तो हम असहज नजर आते है।
जब हम असहज होते है तो ठीक से काम नहीं कर पाते है अक्सर बेहतरीन काम सहजता में ही होता है।

Thursday 6 July 2017

डरना जरुरी है।

हमारे डर के जन्मदाता स्वयं हम है, इसलिए निर्भय होने की सबसे सहेज विधि है खुद को अलग करके तटस्थता से हर परिस्थिति का सामना करना।
जीवन में आने वाले कई नाजुक परिस्थियों में हम ठोस निर्णय लेने में खुद को असमर्थ पाते है, हम इस चिंता में रहते है की कही किसी को नाराज न कर दे।
इंसान डरता तब है, जब वह अपनी भावनाओ के बारे में इस्पस्ट नहीं जानता।
मूल रूप से हम डरते तब है जब हम कुछ चाहते पर उसे हासिल नहीं कर पाते है। या हमारे पास कुछ है और हम उसे खोना नहीं चाहते है।