Sunday 20 August 2017

आनंद की खोज

आंतरिक आनंद एक ऐसा एहसास है जिसका हममे से ज्यादातर लोगो को एहसास नहीं होता । इसका कारण है की हम बाहरी चीजो में बसे हुए है। हम आनंद प्रदान करने वाली चीजो को आकार में पहचानते है, जबकि आनंद का अस्तित्व अनाकार में है। सौंदर्य को महसूस करने की क्षमता, अपने आप में मगन रहने की आदत , साधारण वस्तुओ की तारीफ़ करना, लोगो से स्नेह रखना और उन्हें प्यार करना , उनसे सम्बन्ध बनाना , इन पीछे जो चीज है, वह है संतोष का एहसास, यह एहसास अनाकार ही तो है और इसलिए अदृश्य है। संतो, दार्शनिको और कवियों पर नजर डाले तो यह पता चलता है की वे जीवन भर सच्ची ख़ुशी की तलाश में रहते है। वे महसूस करते है की जिसे वे खोज रहे थे वे दिखने में असाधारण , लेकिन नगण्य लगने वाली वस्तुए है। ऐसी जिसे हम जीवनभर आसपास देखते रहते है। यह और बात है की उसे महसूस नहीं कर पाते। ख़ुशी के लिए छोटी चीज काफी है। बस इसे पाने के लिए शांत रहना सीखिये। 

दरअसल छोटी छोटी चीजे हमारे अंतर्मन को विस्तार देती है। छोटी खुशियो के लिए जिस आत्मसजगता की जरुरत होती है। उसके लिए अंदर से शांत होना अनिवार्य है। सजग रहने से आंतरिक ख़ुशी के दरवाजे खुलते है। मन जितना शांत होता है उतना ही आनंद महसूस होता है। आप समर्पित होकर कर्म में जुटे रहे तो हर चीज की जीवन्तता को अपने एहसास में पायेगे। तब आप खुद को उस आनंद का हिस्सा पायेगे जो सृष्टी और प्रकृति के कण कण में विद्यमान है। एक बात समझने योग्य है की सुख और आनंद में अंतर है। सुख भौतिक वस्तुओ से सम्बन्धित है और आनंद ऐसी मन की दिशा है जिसमे भौतिक वस्तुओं के अभाव में व्यक्ति अंतर्मन में प्रसन्नता महसूस करता है।

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