Sunday 13 August 2017

अहिंसा

अहिंसा का अर्थ हम प्राय: हिंसा के विलोम शब्द के रूप में लेते है, जिसका अर्थ जीव हत्या न करना और मांसाहार से दूर रहना आदि। यह बात ठीक भी जान पड़ती है मांसाहार जीवहत्या के बगैर संभव नहीं है। इसलिए दोनों ही हिंसा के category में आते है। अब सवाल उठता है की अहिंसा को क्यों यूँ एक सीमित दायरे में बाँधा जा सकता है? जी नहीं , अहिंसा का क्षेत्र बहुत बड़ा है और अहिंसा का संक्षेप में अर्थ है -समस्त हिंसक वृत्तियों का त्याग। कैसी है ये हिंसक वृतियां , इन्हे जानना होगा, समझना होगा। तभी हम उनसे मुक्ति पा सकते है । दुसरो को सताना, दुःख पहुचाना निश्चित रूप से हिंसा है। किन्तु क्या स्वयं को सातना हिंसा नहीं है?  आदमी तीन तरह के होते है पहला परपीड़क यानी ऐसे लोग जो दुसरो को सताकर सुकून का अनुभव करते है। दूसरा स्वपीड़क यानी आत्मपीडक ऐसे लोग दुसरो को न सताकर स्वयं को सताकर सुख का अनुभव करते है। ऐसे लोग धर्म के विश्वास में होकर अत्यधिक व्रत उपवास , काटो की सेज पर लेटना आदि से लेकर आत्महत्या तक कर डालने से ऐसे लोग नहीं चूकते । मेरी राय में अहिंसक वे है , जो इन दोनों के पार है। जो इन दोनों वृत्तियों का अतिक्रमण कर चूका है। यानी जो दुसरो को सताता नहीं और न ही स्वयं को सताता है, जो स्वस्थ व प्रसन्न भाव से संतोष पूर्वक जीता है। इसके अतिरिक्त कड़वे वचनो द्वारा हिंसा एक खतरनाक हिंसा है। कारण यह है की कड़वे वचन हमे यूँ ही चोट पहुचाते है की जीवन भर नहीं भूलते। मन में किया गया किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। यानी नकारत्मक विचार उठा की हिंसा हुई । कारण यह की मन में उठे विचार ही भविष्य में उठने वाले कृत्य की आधारशिला रखते है। हम पहले विचार करते है । शीघ्र ही भविष्य में वही विचार नए कर्म की पर

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