Sunday 3 September 2017

स्वयं को बदले

आज हममे में अधिकतर लोगो की स्थिति उस दार्शनिक की तरह है जिसने स्वयं को अपने बिस्तर पर देखा और अपने को वहां नहीं पाया । ऐसा इसलिए, क्योकि बिस्तर ख़ाली था । कुछ देर बाद ही वह घर के बाहर आकर चिल्ला चिल्ला कर पूछने लगा, कृपया कोई मुझे बता दे की मै कहाँ हूँ, अब मै स्वयं को कहाँ खोजू । मैंने सोचा मैं बिस्तर पर हूँ पर मै वहां भी नहीं हूँ। बेशक यह एक अजीबो गरीब कहानी है, लेकिन हर मनुष्य की कहानी है । आप अपना फ़ोन नंबर , सेल नंबर , बैंक अकाउंट नंबर आदि भी अच्छी तरह से जानते है। आप अपनी पत्नी, पति,बच्चों आदि को भी जानते है । आप यह भी जानते है की कौन आपका बेटा है और कौन बेटी,पर क्या यह जानते है की आप कौन है, और कहाँ पर है? यह सवाल जिंदगी भर अधूरा रह जाता है, क्योकि आप लोग इसे छूना नहीं चाहते हैं और यू ही चले जाते है। इसलिए आपको बदलना होगा। 

यह तभी सम्भव है जब हर आदमी अपनी खोज में निकल जाये। यदि आप इसे नहीं छोड़ पायेगे तो स्वयं को संभाल ले , ईश्वर को अपने कार्य मार्ग में जाने दे और आप अपने कार्य में लग जाये। अब आप अपने बारे में सोचे और अपने आसपास के लोगों में देखे। यह आपका छोटा सा संसार है जो बड़ा बन जाता है। आप सब धार्मिक है हो सकता है कुछ लोग धार्मिक नहीं भी हो लेकिन आप सबकी अपनी अपनी दिन चर्याये है । जो धार्मिक है वे विभिन्न विचारधाराओ में बटे हुए है। इनमे से अनेक लोग जीवन को नहीं समझते ,धर्म को नहीं जानते बल्कि जो सिखाया गया है उसी में अपना जीवन काट रहे है। इन्हे लगता है जो कर रहे है वही उनका सत्य है।  जो मान रहे है वही उनका भगवान् है उनसे अलग जो दुनिया है वह अच्छे लोगों की दुनिया नहीं है  इसलिए वे ही अच्छे है सच तो यह है की ईश्वर की अनुभुति के लिए हमे कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर  ध्यानयोग की गहराइयो में उतारना होगा।

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