Wednesday 2 August 2017

सिर्फ सोचना काफी नहीं।

सुखद योजनाये बनाते समय आदमी को बड़ा सुख मिलता है। इस सुख के कारण विभोर होकर वह उनमे डूबकर रह जाता है। प्रत्येक दस व्यक्तियों में से नौ ऐसे होते है जो योजनाएं तो बहुत बनाते है पर करते कुछ भी नहीं । ऐसी बात नहीं की उनमे क्षमता  की कमी होती है या वे उसके योग्य ही नहीं होते बस एक सबसे बड़ी दुर्बलता होती है की सोचने के बाद अपनी सोच को वे कार्यरूप नहीं दे तो यही कारण है की असफल लोगो की संख्या सबसे ज्यादा है। नेपोलियन तत्काल सोचता ,निर्णय करता और अपने निर्णय को कार्यरूप में परीणत करता। अपनी इसी क्षमता के कारण वह यूरोप का सम्राट बना। इंग्लिश चैनल को पार करने के लिए स्मिथ ने नौ बार निरंतर प्रयास किया  तब जाकर दसवी बार में उसे कामयाबी मिली इसी तरह असंख्य लोग ऐवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश निरन्तर करते रहे पर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नार्वे ने विजय हासिल की। असफलता या पराजय की हार के बारे में सोचकर अगर यह लोग घर बैठ जाते तो क्या वे कभी विजेता बन पाते? बेंजामिन डिजरायली ने सौ बातो की एक बात लिखी है सोचो मत करो इसे एक नए अर्थ में इस तरह से लिया जा सकता है की जो सोचो सो करो। इस पथ पर चलकर अपना कायाकल्प करके अपने जीवन को क्रियाशील करके ही हम कामयाबी के नए नए शिखरों को छु सकते है। 

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