Wednesday 6 September 2017

जीवन महोत्सव

विश्व महामंच के जीवन महोत्सव में हम सभी जीव , पात्रो की भूमिका में है। हमारे अभिनय की सफलता हमारी भूमिका में निहित है। हमारी भूमिका हमारी मानसिकता से संबद्ध है । मानसिकता जितनी उन्नत होगी , अभिनय उतना ही अच्छा होगा। इसलिए जीवन को महोत्सव बनाने के लिए विचारों को सदैव उच्च और सुदृढ़ रखना होता है। मन को न केवल नियंत्रित बल्कि ऊर्ध्व गामी संचेतना से भरपूर रखना पड़ता है। एक और  महत्वपूर्ण बात यह है की भ्रम वश हम स्वयं को ही सूत्रधार  भी मान बैठते है। जबकि सूत्रधार परमात्मा है । उनके संकेतो पर चलने के लिए ही हम बाध्य है। इसलिए परमात्मा की क्षत्र छाया तो एक प्रकार से हमारा संबल है। 

  • ज्ञान और भक्ति को आत्मसात कर जीवन को सार्थक किया जा सकता है मनुष्यत्व ही मूल है यही कारण है की सभी धर्मो में कहा गया है की मनुष्य बनो। मनुष्य बनने के लिए हमे सच्चाई से जुड़ना होगा और अपनी शक्ति को पहचानना होगा। नर ही नारायण है, यह महसूस करना होगा । अपना मनोबल बढ़ाने के लिए संयम धारण करना होगा। जप, तप, ध्यान , भक्ति प्राय: एक रूप है। इनके अध्य्यन से अपनी शक्ति को बढ़ाना होगा । जीवन की वास्तविकता का बोध ही हमारा target है। विवेक के माध्य्म से दिव्य शक्ति का अनुभव किया जा सकता है। चारो पुरुषार्थों का जीवन में सुंदर सामंजस्य हो। नैतिक मूल्यों की धारणा ही धर्म है। नैतिक व्यक्ति ही धार्मिक होता है। दया,करुणा के भाव उसके जीवन को अधिक उपयोगी बना देते है। वह लोकहित को ध्यान में रखकर ही कार्य करता है । अर्थोपार्जन ,दूसरा पुरुषार्थ है। यह अर्थोपार्जन भी न्यायसंगत होना चाहिए । जो लोग अनीति से धन कमाते है। अंततः उनका विनाश होता है। दांपत्य काम, पुरुषार्थ का रूप है । संयमित प्रेममय जीवन सुख और शांति का पथ प्रशस्त करता है। फलतः व्यक्ति परम पुरुषार्थ यानि मुक्ति मार्ग का अनुयायी बन जाता हैं।

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