Sunday 13 August 2017

मृत्यु

जीवन के कार्यकलापो में हलचल और चकाचौंध यानि ध्वनि और प्रकाश का समावेश है। ये दोनों भौतिक अस्मिताएं है और इनका स्वरूप अस्थायी है। अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए इन्हें source चाहिए । दूसरे छोर पर मृत्यु ,शांति और अंधकार है।इनका अस्तित्व किसी के बुते पर नहीं टीका रहता, क्योकि इनकी प्रकृति दैविक है। नवजात शिशु के आगमन और हर्षोल्लास में मनुष्य तनिक भी यह विचार नहीं करता की जो आया है उसे जाना है। जीवन जन्म और मरण की छोटी सी यात्रा का दूसरा नाम है। मृत्यु से ज्यादा निश्चित कुछ भी नहीं है। छोटी सी सोच के लिए  मनुष्य  अस्थिर साधन जुटाने में  अपने परम target से भटक जाता है।इस प्रक्रिया में वह नकारत्मक, ईर्ष्या, लालच से ग्रस्त रहता है। आये दिन होती मौतों के सन्देश नहीं पढता है । मृत्यु दुनिया का सबसे बड़ा मौन शिक्षक है हमे कल मरना है इस दृष्टी से हम जीना सीख ले, तो जीवन सार्थक हो जायेगा । मृत्यु के सत्य को समझने वाला सत्कार्य में निरत रहता है। मृत्यु के उपरान्त सत्कर्मो की पूँजी साथ ले जाता है । वह जीवन पूरी तरह जीता है और कभी भी मरने के लिए तैयार रहता है वह जानता है की दुसरो की मौत पर पुष्प अर्पित करने से अधिक important है की उसे जीते जी पुष्प भेट करना है। 

मनुष्य को जीवन का विलोम नहीं , बल्कि अंग समझने से मृत्यु का भय नहीं सताता। जीवन की सबसे बड़ा नुकसान मृत्यु नहीं, बल्कि जीते जी हौसलो का खत्म हो जाना है। मौत से वे भयभीत होते है , जो जिंदगी से दूर भागते है । कहा गया है मृत्यु तो शान्तिप्रद होती है किन्तु इसका विचार मनुष्य को विचलित करता है। मृत्यु, आत्मा,परमात्मा का मिलान पल भर का है। जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलु है । हमे केवल every moment का सदुपयोग करते रहना है। 

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