Monday 14 August 2017

चरित्र

जीवन यानी संघर्ष यानी ताकत यानी मनोबल। मनोबल से ही व्यक्ति स्वयं को बनाये रख सकता है, अन्यथा करोडो की भीड़ में अलग पहचान नहीं बन सकती। सभी अपनी अपनी पहचान के लिए दौड़ रहे है, चिल्ला रहे है। कोई पैसे से , कोई अपनी सुंदरता से , कोई विद्वता से ,कोई व्यवहार से अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयास कर रहा है , पर हम कितना भ्रम पालते है। पहचान चरित्र के बगैर नहीं बनती है। बाकी सब अस्थायी है। यह सही है की शक्ति और सौंदर्य का योग ही हमारा व्यक्तित्व है, पर शक्ति और सौंदर्य आंतरिक भी होते है और बाहरी भी होते है। धर्म का काम है आंतरिक व्यक्तित्व का विकास। इसके लिए मस्तिष्क और ह्रदय को सुंदर बनाना होता है। जो सदविचार और सदाचार के विकास से ही संभव है। उत्कृष्ट चिंतन से जीवन जीने का सलीका आता है। इससे अंतर्मन में संतोष और बाहर सम्मान पूर्ण वातावरण का सृजन होता है। ऐसे चरित्र और नैतिकता सम्पन्न व्यक्तियों के सामने इंद्र और कुबेर का वैभव भी समर्पित हो जाता है। चरित्र एक साधना है तपास्या है। जिस प्रकार अहंकार और अहम का पेट बड़ा होता है उसे रोज कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार चरित्र को रोज संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल से ही प्राप्त किया जा सकता है। समाज में संयमित व्यक्ति ही सम्माननीय है और वही स्वीकार्य भी। संयम ही जीवन है। अहिंसा की प्रतिष्ठा के लिए संयम प्रधान जीवनशैली का विकास जरुरी है। आशक्ति पर विजय प्राप्त किये बिना संयम का विकास नहीं हो सकता है। मानसिक और सामाजिक शांति व् सुव्यवस्था के लिए अनाशक्ति से जीवन में स्वार्थ की भावना उत्पन्न हो जाती है । अंहकार का भाव बढ़ जाता है। मनाव मन को उससे मुक्ति दिलाने के लिए आद्यात्म का आश्रय चाहिए। यह संतुलन की प्रक्रिया है। सच तो यह है की चरित्र निर्माण से ही जहाँ आपके व्यक्त्तिव का निर्माण होता है,वहीँ अच्छे चरित्र वाले लोगो से ही देश का निर्माण होता हैं।

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