Sunday 27 August 2017

गुणों की शक्ति

कल्पना करे की यदि गुलाब का फूल सुगंधहीन हो जाये तो कौन उसे पाना चाहेंगे । इसके आगे कल्पना करे की फूल में सुगंध है , किन्तु प्रकट नहीं हो रही है तो उसका कितना महत्व रह जायेगा। गुलाब का रंग और रूप उसकी सुगंध से मूल्यवान हो जाता है। गुलाब का रंग और रूप ऐसा न हो फिर भी यदि सुगंध है तो उस पर मोहित होने वालो की संख्या कम नही होगी। आम का फल कैसे भी आकार का हो , अपने स्वाद के कारण मन को भाता है। सुगंध गुलाब का और स्वाद आम का गुण है। मनुष्य की जुबान से निकलने वाले मीठे वचन, हाथो से होने वाले परोपकार , मन और मस्तिष्क में उपजने वाले शुभ विचार ही उसके मोल है । कितने भी महंगे वस्त्र पहने हो, भव्य आवास और धन दौलत हो , स्वस्थ सुंदर  तन हो उनसे पहचान तो बन सकती है लेकिन सम्मान नहीं मिल सकता है। संसार में शुभ वचनो की कमी नहीं। सिद्धान्तों नीतियों के ग्रन्थ भरे पड़े है। वचन मुख तक ही सीमित हो गए, किताबों से बाहर का रास्ता भूल चुके है। इसलिए उन व्याख्यानों का कोई मोल नहीं रह गया है। ऐसे मनुष्य अपना सम्मान खो चुके है। 

सारे लोग अपने गुणों के कारण महापुरुष की श्रेणी में नहीं आ सकते है, किन्तु सारे लोग यदि अपने छोटे छोटे गुणों को भी व्यवहार में बदले तो गुणों से भरपूर समाज की रचना की जा सकती है । भिन्न भिन्न फलो के सारे वृक्ष आकर्षित करते है और विभिन्न स्वादों का आनंद देते है । गुण किसी भी प्रकार के हो , मन को अपनी ओर खीचने वाले होते है। इसी तरह  गुणवान समाज की रचना में छोटे से भी छोटे योगदान का भी महत्त्व है। समाज मात्र शब्दों की शोभा से  नहीं बनते । मनुष्य अपने कर्मो की चिंता करे , अपने गुण विकसित कर प्रकट करे। सारा समाज अपने आप बदल जायेगा। विडंबना यह है मनुष्य के पास इसके लिए समय नहीं है। उसे चिंता है तो दुसरो की । वह अनायास ही अन्यो की सफलता पर ईर्ष्यालु रहता है। सभी में दोष तलासने में उसकी ख़राब आदत संतुष्ट होती है । वह औरो से प्रतिस्पर्धा भी नहीं करना चाहता ,बस उनकी प्रगति को अवरुद्ध करने में लगा रहता है। 

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