जीवन में प्राय: ऐसे पल आते रहते है जब मन उचाट और उदास होने लगता है। एक भय पैदा होने लगता है की कही कुछ गलत तो नहीं होने जा रहा है। बिना किसी कारण मन का उदास होना मन की हताशा और आत्म विश्वास की कमी को प्रकट करता है। जब प्रत्यक्ष कारण हो तो भी यह खंडित विश्वास और नकारात्मक मानसिकता का प्रतीक है। मनुष्य का विश्वास तभी डोलता है और मन तभी निराश होता है जब वह ईश्वर पर अविश्वास कर रहा होता है। चौरासी लाख योनियो में भटकने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त करने के बाद भी यदि मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और आभार का भरपूर भाव नहीं है तो इसे उसकी अज्ञानता ही कहा जायेगा । मनुष्य योनि में होना ही विश्वास और आशा का सबसे बड़ा आधार है जो कभी उसके मन को डिगने नहीं देता है। यदि उसे मनुष्य योनि मिली है तो यह सबसे बड़ा कारण है प्रसन्न और आशा से भरे रहने का की उसे आवागमन के चक्र से मुक्त करने और संसार के मायाजाल से उबरने योग्य समझा गया है। उसे मनुष्य के रूप में जो समय मिला है वह हताशा और निराशा में व्यर्थ जाने देने के लिए नहीं है । इसका सदुपयोग करना आना चाहिए । दूसरी बात भय और चिंता की है जो परमात्मा को न समझने के कारण है।
संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे अनहोनी कहा जा सके। जो हो रहा है या भविष्य में होने वाला है उसे रोका नहीं जा सकता है। ऐसा इसलिए , क्योकि इसमें ईश्वर की इच्छा है। जिसके हम पात्र है, वही हमे दे रहा है । इसलिए किसी तरह की चिंता और आशंका बेकार है। किसी भी आशंका से दूर जब ईश्वर के न्याय पर विश्वास करना आ जाता है तो मन प्रसन्नता से भर उठता है। ईश्वर की दया का इसी से पता लगता है की उसने सृष्टी में जितनी भी रचनाये रची है उन सभी में कुछ न कुछ गुण दिए है। संसार में कुछ भी गुणविहीन नहीं है । भले ही राह की धूल या रोडा ही क्यों न हो। हर चीज का कोई न कोई उपयोग है । सर्वाधिक गुण मनुष्य में है। जब उसे आभास हो जाये की वह कितनी अदभुत शक्तियों का स्वामी है तो वह ऐसे गर्व की अनुभूति से भर उठेगा की निराशा सदा के लिए उसके जीवन से पलायन कर जायेगी । ईश्वर के न्याय के प्रति विश्वास होना ही जीवन में हर्ष भाव का मुख्य उतपर
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