- यह एक महामारी है। ऐसी महामारी जो सदियो से जारी है। महात्मा और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है- चीजो को ध्यान से सुनना । यह चीज कुछ भी हो सकती है। कौवो की कर्कश आवाज से लेकर नदियो की छलछल तक। हम सुनना चाहते नहीं। बस बोलना चाहते है।हमे लगता है की इससे लोग हमे बेहतर तरीके से समझेगे। हालाँकि ऐसा होता नहीं। जिन घरो के अभिभावक जयादा बोलते है वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान कम विकसित हो पाता है। क्योकि ज्यादा बोलना बातो को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शब्दो की चक्कर में फसकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनोपचारिक दोनों स्थिती में हम दूसरे की न सुन , बस हावी होने की कोशिश करते है। खुद ज्यादा बोलने और दुसरो को अनसुना करने से जाहिर होता है की हम अपने बारे में ज़्यादा सोचते है और दुसरो पर कम। ज़्यादा बोलने वालो के दुश्मनो की भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते है तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोले और अगर आप नए दोस्त बनाना चाहते है तो दुश्मनो से कम बोले । "लोगो को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला की जयादातर अमेरिका नागरिक उनके सुख में सुखी होते थे, उनके दुःख में दुखी। "
Saturday 22 July 2017
बात अनसुनी करना।
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