शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा अगर उस दिन रसोईं में नहीं जाती ,तो शायद हिंदुस्तान की तस्वीर अलग होती । एक राजा की बेटी को रसोई में जाने की दरकार की क्या? खैर जहाँ आरा उस दिन रसोई में चली गई और गरम पानी उसके सरीर पर गिर पड़ा । फूल की तरह नाजुक जहाँआरा का शरीर जल गया।बादशाह ने हर संभव इलाज कराया,लेकिन बेटी के शरीर पे पड़ा निशान जा नहीं रहा था।किसी पिता के लिए इससे दुःख की बात क्या ही सकती थी। बादशाह ने कई जगहों पर पता कराया की कही कोई हो, जो जहाँआरा की जिंदगी फिर रोशन कर दे। बड़ी मशक्कत के बाद पता चला की सूरत के पास कोई अंग्रेज डॉक्टर आया है, जो जले का इलाज कर सकता है। बादशाह ने सारे घोड़े सूरत की दिशा में दौड़ा दिए । डॉक्टर हाज़िर हो गया और शुरू कर दिया इलाज । जहाँआरा ठीक हो गयी , बादशाह खुश हो गया । खुश बादशाह कुछ भी कह सकता था। कुछ भी दे सकता है । उसने डॉक्टर से कहा , जो चाहो मांग लो। डॉक्टर सोच में पड़ गया। बहुत सोच समझकर उसने कहा की उसे कुछ नहीं चाहिए। फिर भी आप कुछ देना चाहे ,तो जो अंग्रेज भारत में व्यापार की मंशा लेकर आये है, उन्हें सूरत में फ्री ट्रेड की छूट दिला दे । बादशाह के लिए यह कौन सी बड़ी बात थी। उसने कहा तथास्तु ...और भारत का भविष्य गुलाम हो गया ।
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