Friday 14 July 2017

झूठ और सच का खेल।

  • सामाजिक सभ्यता सदा कहती है सच बोलो मनोवैज्ञानिक मानते है की झुठ बोलना इंसान की एक मजबूरी बन गया हैऔर वह इसे आदत में सुमार कर चुका हैं । आज अधिकतर लोग सच बोलने से कतराते है और जूठ बोलने में अजीब ख़ुशी का अनुभव करते है।  लोग प्रायः उन्ही चीजों के बारे में झूठ बोलते है, जिनसे वे अच्छा महसूस करना चाहते है। जब हम किसी चीज को करना चाहते है और नहीं कर पाते है तो उसके सामने झूठ बोल जाते है  झुठ हमारे स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है जैसे ही लोगो के स्वाभिमान को चोट पहुँचती है वे ऊचे स्वर में झुठ बोलना शुरू कर देते है

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