Tuesday 5 September 2017

इच्छाएं

मनुष्य जीवन भर इच्छाओं , कामनाओं के पीछे भागता रहता है। जीवन कुछ इच्छाओं की पूर्ति तो हो जाती है, पर ज्यादातर इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है । मनुष्य द्वारा की गई इच्छाओं की जब पूर्ति हो जाती है तो वह फुले नहीं समाता । वह अहंकार युक्त हो जाता है । उस कार्य की पूर्ति का सारा श्रेय स्वयं को दे देता है । जब इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती है तब मनुष्य ईश्वर को दोष देने लगता है,अपने भाग्य को दोष देने लगता है। मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती है।वे धारा प्रवाह रूप से एक के बाद एक कर आती चली जाती है। एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा फिर मन में उठने लगती है । जीवन पर्यन्त यही क्रम चलता रहता है । वर्तमान के इस भौतिक युग में लोग इच्छाओं से भी बड़ी महत्वाकांक्षी होने लगते है। ऐसी ऐसी इच्छाएं संजोते है  जिनके बारे में स्वयं जानते है की वे शायद ही कभी पूरी हो पाये । इस संसार सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य सदा प्रयत्नशील रहता है । इसके लिए वह सदैव कामना करता रहता है। वह नहीं जानता है की सुख स्वरुप तो वह स्वयं ही है । गुणो के आधीन यह सांसारिक सुख तो क्षणभंगुर है। यह समाप्त होने वाला है तब फिर इन सांसारिक सुख की इच्छाओं के पीछे क्यों भागा जाये? 

मन में उठने वाली कामना यदि पूरी हो जाती है तो राग उत्पन्न हो जाता है और इसकी पूर्ति न होने पर मन में क्रोध जन्म ले लेता है । दोनों ही स्थिति मनुष्य की हानि है। संपूर्ण इच्छाओ की पूर्ति कभीं नहीं हो पाती है ,जबकि इन इच्छाओं की पूर्ति करने में मनुष्य अपना सारा श्रम लग देता है । मनुष्य को चाहिए की इन इच्छाओं का दामन छोड़कर अपने नियमित कार्यो में लग जाना चाहिए तभी वह सुख और शांति प्राप्त कर पायेगा फिर वह कामनाओं के जाल में नहीं फसेंगा । इच्छाओ के संदर्भ में मनुष्य को एक बात याद रखनी चाहिए की मानव सिमित है और इच्छाये असीमित है।सीमित कभी असीमित की पूर्ति नहीं कर सकता।

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