जब लोग एक दूसरे से मिलते है तो इतनी विनम्रता से, इतनी भद्रता से मिलते है की ऐसा लगता है की प्रेम और मित्रता में डूबे हुए है। उनकी मुस्कान ,बातचीत का स्वर ,बॉडी लैंग्वेज सभी कुछ सकारात्मक होता है। लेकिन थोड़े करीब आते ही दो चार दिन में वे अपने दुखो का रोना शुरू कर देंगे। पहले जब मिला था ,तो उसका चेहरा और था,फिर धीरे धीरे चेहरे की ख़ुशी ,वह धोखा था, जो पलस्तर था, वह है जायेगा जैसे लोग चेहरे का मेकअप करके जाते है वैसे मन का भी मेकअप करके जाते है। इसलिए अजनबी आदमी से मिलने का सुख मिलता है । सुख का कुल कारण इतना है की दोनों थोड़ी देर एक दूसरे को धोखा देने में सफल रहते है। परिचित लोगो से बिलकुल सुख नहीं मिलता क्योकि वे सब उपद्रव प्रकट क्र देते है आकर। जो लोग करीबी दोस्त बनते है उनसे ही दुश्मनी भी शुरू हो जाती है। दुश्मन बनने से पहले दोस्त होना बहुत जरुरी होता है। आदमी अंदर बाहर से एक नहीं है। ख़ुशी बाहर सजाकर रखता है, दुःख भीतर छिपाकर रखता है। जब तक आदमी शांत और सुखी नहीं हो सकता । दिखावा करने की जरुरत भी क्या है? सभी के तराजू में कुछ ना कुछ दुःख होता ही है। आप कितना भी छिपाये दूसरे को पता चल ही जाता है। तो सुकून की जिंदगी जीनी हो तो यह धोखाधड़ी बंद करे।
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