Tuesday 18 July 2017

जीत न हार।

ऐसा भी मुक़दमा या खेल हो सकता है, जिसमे किसी की जीत न होती हो?  इस बात पर हम सिर्फ हँस सकते है। लेकिन जिंदगी में एक ऐसा भी खेल है। जिसमे किसी की भी जीत या हार नहीं होती है। एक सामान्य व्यवहार है, हमे दुसरो के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम दूसरो से चाहते है। परन्तु जब सामने वाला आदमी निष्पछ खेल की संहिता का उलँघन करता है , तो हम नाराज हो जाते है। हम बदला लेना चाहते है, लेकिन इस बदला लेने वाले खेल में  क्या किसी की जीत होगी?  जब हम बदला लेने के बारे में सोचते है, तब इस बात पर गौर करना भूल जाते है।  प्रतिशोध  की यह भावना हमारे अंतर्मन में कही न कही छिपी चिंगारी की तरह दबी रहती है, जैसे ही अवसर मिलता है , झट बाहर निकलकर बदले की आग में बदल जाती है। जैसे आम जिंदगी में चाहे अधिकारी की कुर्सी पर  बैठे लोग हो, पति पत्नी में तलाक के बाद हिसाब चुकता करने की मानसिकता हो, सड़क दुर्घटनाओं में भी यह मानसिकता काम करती है। किसी ड्राईवर को दूसरी गाड़ी वाला कट मारता है और उसे गाड़ी सड़क से नीचे उतारनी पड़ती है।अब वह ड्राईवर कट मारने वाले को सबक सिखाना चाहता है। नातीजा दुर्घटना के रूप में सामने आता है।  यह खेल घाटे वाला है। वक्त की बर्बादी , धन की बर्बादी और चित्त की बर्बादी। इस सबका इलाज एक ही है, जिसके लिए महाभारत में वेदव्यास कहते है, क्षमा और दया जीवन के ऐसे गहने है, जिसे पहनने वाला सबका प्यारा बन जाता है। पूरा जीवन ही सुंदर हो जायेगा। 

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