Saturday 5 August 2017

मन की गहराई

तुम अपनी तरफ नहीं देखते की जिस मन में तुम भरते चले जा रहे हो वह बिना पेंदी का है। हमारा मन एक छिद्र की तरह है जिसमे नीचे कोई तलहटी नहीं है। इसलिए संतोष की तलाश हो, शांति की प्यास हो तो मन के पार जाना जरुरी है। मन से जो भी खोजेंगे वह कभी मिलेगा नहीं । ध्यान की स्थिरता में सारी demand खो जाती है और तब आप भर जाते है।अपने मन को समझना हो तो उसके स्वभाव को समझना जरुरी है। जिंदगी में आपको कितना भी मिल जाये कभी संतोष नहीं होता है। मन जितना भी तेज़ क्यों न दौड़े जीवन की एक अपनी गति भी है। तभी निरंतरता और अनिश्चितता दोनों बने रहते है। जब आप सोचते है की सब ठीक है तब कुछ बुरा हो जाता है। और जैसे ही लगता है की अब कुछ बेहतर नहीं हो सकता कुछ बेहतरीन हो जाता है। शब्द चोट पहुचाते समय सबसे बड़े और मदद देते समय सबसे छोटे रूप में होते है। 

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